माधुरी के जन्मदिन पर उनके प्रशंसक ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से प्रेरित होकर विधवाओं को दी नई उम्मीद
धीरज प्रशांत
- 15 May 2025, 08:14 PM
- Updated: 08:14 PM
(तस्वीर के साथ)
(नमिता तिवारी और बी श्रीनिवास)
जमशेदपुर, 15 मई (भाषा) झारखंड में जमशेदपुर शहर के व्यस्त साकची बाजार हर सुबह चहल-पहल होने से पहले यहां के एक छोटे से ढाबे में शांति से एक अनुष्ठान किया जाता है।
इस ढाबे के मालिक पप्पू सरदार (50) रोजाना अपना काम शुरू करने से पहले धूपबत्ती जलाते हैं, हाथ जोड़ते हैं और एक बड़े फ्रेम वाले चित्र के सामने सिर झुकाते हैं, लेकिन फ्रेम में किसी देवी-देवता की तस्वीर नहीं है, बल्कि बॉलीवुड स्टार और ‘धक-धक गर्ल’ के नाम से मशहूर माधुरी दीक्षित की है, जिन्हें वे प्यार से अपनी ‘बड़ी बहन’ कहते हैं।
पप्पू पिछले 25 वर्षों से 15 मई को माधुरी का जन्मदिन अटूट श्रद्धा के साथ मनाते आ रहे हैं। पप्पू अकसर माधुरी के जन्मदिन पर वृक्षारोपण, रक्तदान अभियान और लड़कियों के लिए शिक्षा अभियान जैसे सामुदायिक पहल करते आ रहे हैं।
लेकिन इस साल,पहलगाम आतंकी हमले और उसकी बाद की घटनाओं से स्थिति असधारण बन गई है और ऐसे में पप्पू ने भी इसबार अलग तरीके से माधुरी का जन्मदिन मनाया।
पप्पू पहलगाम में हुए नृशंस आतंकवादी हमले से बहुत दुखी हैं जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी।
पहलगाम हमले का बदला लेने के लिए भारतीय सेना द्वारा अंजाम दिये गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से प्रेरणा लेते हुए पप्पू ने गरीब परिवारों की तीन युवा विधवाओं की शादी कराकर माधुरी दीक्षित के जन्मदिन को मनाने का फैसला किया।
उन्होंने कहा, ‘‘जब लोगों की जिंदगी में इतना अंधकार हो तो मैं मोमबत्तियां नहीं जला सकता।’’ पप्पू के ढाबे की दीवारें बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री माधुरी दीक्षित की तस्वीरों से सजी हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘इस वर्ष मेरी दीदी को मेरा उपहार तीन महिलाओं को सिंदूर लौटाना है, जिन्होंने सोचा था कि वे इसे फिर कभी नहीं लगाएंगी।’’
विवाहित हिंदू महिलाएं सुहाग के प्रतीक के रूप में मांग में सिंदूर लगाती है। हाल के हफ्तों में यह गौरव का राष्ट्रीय प्रतीक बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए पहलगाम हमले की निंदा करते हुए इसे ‘‘आतंकवाद का सबसे बर्बर चेहरा’’ करार दिया था। उन्होंने कहा कि दुश्मन ने ‘‘हमारी बहनों के माथे से सिंदूर मिटाने’’ का प्रयास किया है।
पप्पू ने कहा कि मोदी के शब्दों ने उन्हें प्रभावित किया और इस वर्ष के समारोह को और अधिक सार्थक बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा, ‘‘जब मैंने पहलगाम की तस्वीरें देखीं, टूटे हुए परिवार, अपने बच्चों को गोद में लिए विधवाएं... तो मैं इसे नजरअंदाज नहीं कर सका।’’
पप्पू ने कहा, ‘‘मैंने सोचा, यदि हम खोए हुए लोगों को वापस नहीं ला सकते, तो कम से कम जो पीछे रह गए हैं, उनकी गरिमा तो वापस ला सकते हैं।’’
उन्होंने करीब एक सप्ताह तक जमीनी स्तर पर काम करने के बाद तीन युवा विधवाओं की पहचान की जो क्रमश: जमशेदपुर और उसके आसपास के पटमदा, चाकुलिया और बागुनहातु की हैं।
पप्पू द्वारा शादी कराए गए जोड़ों का नाम सुलेखा प्रमाणिक व खाकन, मद्रिनारेखा कुमारी व नवीन और देसुमिता व नयन है।
ये तीनों महिलाएं कम उम्र में ही विधवा हो गई थी और घरेलू सहायक या दिहाड़ी मजदूर के तौर पर गुजर-बसर करने की कोशिश कर रही थीं।
पप्पू ने कहा, ‘‘मैं चाहता था कि वे महसूस करें कि उन्हें चुना गया है न कि यह भाव उत्पन्न हो कि उनपर दया की जा रही है।’’
उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इन युवतियों को उपयुक्त वर ढूंढने में मदद की - जिनकी नौकरी साधारण हो, लेकिन जिनमें सहृदयता हो, जो न केवल महिलाओं को बल्कि उनके अतीत को भी सम्मान के साथ स्वीकार करने को तैयार हों।
पप्पू ने कहा, ‘‘ये लोग धन के मामले में अमीर नहीं हैं, लेकिन चरित्र के मामले में अमीर हैं।’’
उनकी दुकान 15 मई की शाम को विवाह स्थल में तब्दील हो गई। कन्यादान युवतियों के परिजनों ने किया।
पप्पू ने बताया, ‘‘शादी का जोड़ा, गहने, बर्तन, बिस्तर, कुर्सियां, यहां तक कि प्लास्टिक की डाइनिंग टेबल आदि का पूरा खर्च मैंने लोगों की मदद से उठाया है।’’
यह पूछे जाने पर कि वह कितना खर्च कर रहे हैं, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा: ‘‘सांसें कितनी लेते हैं, उसका कोई हिसाब नहीं, माधुरी दीक्षित से मिला प्यार भी अनमोल है, और हम भाई-बहन मिलकर दान कितना करते हैं, उसका तो कोई हिसाब हो ही नहीं सकता।’’
भाषा धीरज