कुल मनरेगा श्रमिकों में से लगभग 27 प्रतिशत अब भी एबीपीएस के लिए अपात्र: रिपोर्ट
शुभम सुरेश
- 21 May 2025, 09:21 PM
- Updated: 09:21 PM
नयी दिल्ली, 21 मई (भाषा) सभी मनरेगा श्रमिकों में से लगभग 27 प्रतिशत तथा सक्रिय श्रमिकों में से 1.5 प्रतिशत अब भी आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के लिए अपात्र हैं। एक नयी रिपोर्ट में यह कहा गया है।
साथ ही, इसने सरकार के इस दावे को भी खारिज कर दिया है कि यह बैंक खाता-आधारित भुगतान प्रणाली की तुलना में अधिक कुशल है।
इस सप्ताह के प्रारंभ में जारी एक रिपोर्ट में लिबटेक इंडिया ने भी सिफारिश की कि पश्चिम बंगाल में मनरेगा निधि को तत्काल बहाल किया जाना चाहिए, जिसे केंद्र सरकार ने तीन वर्षों से अधिक समय से रोक रखा है।
लिबटेक इंडिया शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं का एक संघ है।
एबीपीएस, मजदूरी और सब्सिडी को आधार से जुड़े बैंक खाते में इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्थानांतरित करने की एक प्रणाली है, जो नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) के साथ संबद्ध है। इसे जनवरी 2024 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) के तहत अनिवार्य कर दिया गया था।
केंद्र की भाजपा-नीत सरकार और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार के बीच इस मुद्दे पर बार-बार टकराव होता रहा है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि एबीपीएस की शुरुआत मनरेगा के तहत लाभार्थियों को समय पर मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए की गई थी और दावा किया है कि मार्च 2022 से पहले जारी धन के उपयोग में अनियमितताएं थीं।
हाल ही में बजट सत्र के दौरान लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री कमलेश पासवान ने कहा कि एबीपीएस लाभार्थियों के बैंक खाता संख्या में बार-बार परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दों का समाधान करती है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा है कि केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करने के कारण मनरेगा कानून की धारा 27 के प्रावधान के अनुसार नौ मार्च, 2022 से मनरेगा के तहत धनराशि जारी करना बंद कर दिया गया है।
लिबटेक इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, आठ अप्रैल, 2024 को सभी कर्मचारियों में से लगभग 31 प्रतिशत और सक्रिय कर्मचारियों में से आठ प्रतिशत एबीपीएस के लिए अपात्र थे। वर्ष 2025 में स्थिति में मामूली सुधार हुआ और सात अप्रैल 2025 तक सभी कर्मचारियों में से 27.5 प्रतिशत और सक्रिय कर्मचारियों में से 1.5 प्रतिशत अब भी एबीपीएस के लिए अपात्र हैं।
भाषा
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