कश्मीर के लिए ट्रेन: महाराजा प्रताप सिंह का सपना वास्तविकता में बदला
देवेंद्र रंजन
- 04 Jun 2025, 06:40 PM
- Updated: 06:40 PM
(अनिल भट्ट)
रियासी, चार जून (भाषा) शिवालिक और पीर पंजाल पर्वत श्रृंखलाओं के बीच से कश्मीर घाटी तक ट्रेन चलाने की एक शताब्दी से भी अधिक पुरानी महत्वाकांक्षी योजना शुक्रवार को तब साकार हो जायेगी, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कटरा से कश्मीर तक वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे।
मोदी चिनाब पुल का भी उद्घाटन करेंगे, जो दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ‘आर्च ब्रिज’ होगा।
रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘19वीं शताब्दी में डोगरा महाराजा प्रताप सिंह द्वारा प्रस्तावित एक परिकल्पना अब स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचागत उपलब्धियों में से एक बन गई है।’’
महाराजा हरि सिंह के पोते एवं पूर्व सदर-ए-रियासत कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि उन्हें गर्व है कि डोगरा शासक की लगभग 130 साल पहले बनाई गई योजना आखिरकार साकार हो गई है।
सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘कश्मीर घाटी तक रेलवे लाइन परियोजना की परिकल्पना और रूपरेखा महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में बनाई गई थी। यह न केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है कि यह सपना हमारे प्रधानमंत्री द्वारा साकार किया जायेगा।’’
डोगरा शासक ने ब्रिटिश अभियंताओं को कश्मीर तक रेल मार्ग के लिए इलाके का सर्वेक्षण करने का काम सौंपा था, यह एक महत्वाकांक्षी परियोजना थी जो एक शताब्दी से भी अधिक समय तक अधूरी रही।
उन्होंने विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने के लिए तीन ब्रिटिश अभियंताओं को नियुक्त किया। हालांकि, 1898 से 1909 के बीच 11 वर्षों में तैयार की गई तीन में से दो रिपोर्ट अस्वीकार कर दी गईं थी।
जम्मू-कश्मीर अभिलेखागार विभाग के विशेष दस्तावेजों के अनुसार, कश्मीर तक रेल संपर्क का विचार पहली बार एक मार्च 1892 को महाराजा द्वारा प्रस्तावित किया गया था। इसके बाद, जून 1898 में, ब्रिटिश इंजीनियरिंग फर्म ‘एस आर स्कॉट स्ट्रैटन एंड कंपनी’ को सर्वेक्षण करने और परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए नियुक्त किया गया।
डी ए एडम द्वारा प्रस्तुत पहली रिपोर्ट में जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों के बीच एक इलेक्ट्रिक रेलवे की सिफारिश की गई थी, जिसमें दो फुट छह इंच की एक संकरी लाइन पर भाप इंजन का इस्तेमाल किया गया था। चुनौतीपूर्ण ऊंचाई स्तरों के कारण इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया था।
वर्ष 1902 में डब्ल्यू जे वेटमैन द्वारा प्रस्तुत एक अन्य प्रस्ताव में झेलम नदी के किनारे एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) से कश्मीर को जोड़ने वाली रेलवे लाइन का सुझाव दिया गया था। इसे भी अस्वीकार कर दिया गया।
वाइल्ड ब्लड द्वारा प्रस्तुत तीसरे प्रस्ताव में रियासी क्षेत्र से होकर चिनाब नदी के किनारे रेलवे लाइन बिछाने की सिफारिश की गई थी। इस रिपोर्ट को मंजूरी दे दी गई।
बाद में, उधमपुर, रामसू और बनिहाल के निकट विद्युत रेलगाड़ियां चलाने और बिजली स्टेशन स्थापित करने की योजनाओं की भी जांच-पड़ताल की गई, लेकिन अंततः उन्हें अस्वीकार कर दिया गया।
अधिकारियों ने बताया कि यह विचार लगभग छह दशक बाद पुनर्जीवित हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1983 में जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर रेलवे लाइन की आधारशिला रखी। उन्होंने बताया कि उस समय इस परियोजना की लागत 50 करोड़ रुपये आंकी गई थी और इसके पांच साल में पूरा होने की उम्मीद थी।
उन्होंने बताया कि हालांकि, 13 वर्षों में केवल 11 किलोमीटर लाइन का निर्माण किया जा सका, जिसमें 19 सुरंग और 11 पुल शामिल थे - जिसकी लागत 300 करोड़ रुपये थी।
इसके बाद उधमपुर-कटरा-बारामूला रेलवे परियोजना आई, जिसकी अनुमानित लागत 2,500 करोड़ रुपये थी, जिसकी आधारशिला 1996 और 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्रियों एच.डी. देवेगौड़ा और आई.के. गुजराल ने उधमपुर, काजीगुंड और बारामूला में रखी थी।
अधिकारियों ने बताया कि निर्माण कार्य 1997 में शुरू हुआ, लेकिन चुनौतीपूर्ण भूवैज्ञानिक, स्थलाकृतिक और मौसम संबंधी परिस्थितियों के कारण इसमें बार-बार देरी हुई, जिससे इसकी लागत बढ़कर अब 43,800 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है।
अधिकारियों ने बताया कि उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लाइन (यूएसबीआरएल) के सामरिक महत्व को देखते हुए इसे 2002 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था।
भाषा
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