आईसीएमआर ने भारत की पहली राष्ट्रीय दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री तैयार की
आशीष रंजन
- 21 Jun 2025, 07:18 PM
- Updated: 07:18 PM
(पायल बनर्जी)
नयी दिल्ली, 21 जून (भाषा) भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के तहत मुंबई स्थित राष्ट्रीय प्रतिरक्षा रुधिर विज्ञान संस्थान (एनआईआईएच) ने पहली बार दुर्लभ और असामान्य रक्त प्रकार वाले रोगियों के लिए एक राष्ट्रीय 'दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री' बनाई है, जिन्हें विशेष रूप से थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग जैसी स्थितियों में बार-बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
नागपुर स्थित आईसीएमआर-एनआईआईएच (आईसीएमआर-एनआईआईएच) हीमोग्लोबिनोपथी अनुसंधान, प्रबंधन और नियंत्रण केंद्र (सीआरएचसीएम) की निदेशक डॉ मनीषा मडकाइकर ने बताया कि आईसीएमआर-एनआईआईएच अब स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) के साथ बातचीत कर रहा है, ताकि दुर्लभ दाता रजिस्ट्री पोर्टल को ई-रक्तकोष के साथ एकीकृत किया जा सके। ई-रक्तकोष एक ऐसा मंच है, जो वर्तमान में रक्त की उपलब्धता के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
इस एकीकरण से दुर्लभ रक्त समूहों वाले लोगों को आसानी से रक्त बैंकों का पता लगाने और रक्त प्राप्त करने में मदद मिलेगी। इससे रक्त बैंकों को एक केंद्रीकृत प्रणाली के माध्यम से अपने स्टॉक और दाताओं का प्रबंधन करने में भी मदद मिलेगी।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के अनुसार, 142 करोड़ से अधिक की आबादी वाले भारत में 4,000 से अधिक लाइसेंस प्राप्त रक्त बैंक हैं। डॉ. मडकाइकर ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान रक्त संबंधी बीमारियों और जटिलताओं के अधिक प्रचलन के कारण भारत में रक्त आधान पर बहुत अधिक निर्भरता है।
उन्होंने कहा, ‘‘थैलेसीमिया के कारण अकेले एक लाख से 1.5 लाख रोगियों को बार-बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है।’’
उन्होंने कहा कि भारत में प्रतिदिन 1,200 से अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, तथा प्रतिवर्ष 6 करोड़ सर्जरी, 24 करोड़ बड़े ऑपरेशन, 33.1 करोड़ कैंसर संबंधी प्रक्रियाएं, तथा एक करोड़ गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं होती हैं, जिसके कारण रक्त चढ़ाने की आवश्यकता गंभीर हो जाती है।
भारत में अधिकांश रक्त बैंकों में, लाल रक्त कोशिका घटकों को जारी करने के लिए क्रॉस-मैचिंग से पहले केवल एबीओ और आरएचडी एंटीजन का मिलान किया जाता है। हालांकि, इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ़ ब्लड ट्रांसफ़्यूज़न (आईएसबीटी) ने 47 रक्त समूह प्रणालियों में 360 से अधिक एंटीजन की पहचान की है। डॉ. मडकाइकर ने बताया कि रक्त बैंक इन छोटे रक्त समूह एंटीजन का नियमित रूप से परीक्षण नहीं करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘परिणामस्वरूप, दाता और रोगी के रक्त समूह (बीजी) प्रोफाइल के बीच मामूली एंटीजन का बेमेल होना लाल रक्त कोशिका एलोइम्यूनाइजेशन (सामान्य आबादी में 1-3 प्रतिशत, थैलेसीमिया रोगियों में 8-18 प्रतिशत) को जन्म दे सकता है। सभी प्रतिरक्षित रोगियों में से लगभग 25 प्रतिशत को कई एंटीबॉडी या उच्च आवृत्ति एंटीजन (एचएफए) के प्रति एंटीबॉडी की उपस्थिति के कारण असंतोषजनक रक्ताधान सहायता प्राप्त होने की सूचना मिली है।’’
दुर्लभ रक्त समूह वे हैं जिनमें एचएफए (1:1000 या इससे कम) की कमी होती है, या जो सामान्य एंटीजन के संयोजन के लिए नकारात्मक होते हैं, या जिनका फेनोटाइप शून्य होता है।
डॉ. मडकाइकर ने कहा कि ऐसे रोगियों के लिए दुर्लभ रक्त की आपूर्ति की मांग को पूरा करना चुनौतीपूर्ण और समय लेने वाला होता है। उन्होंने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए व्यापक रूप से रक्त प्रकार वाले रक्तदाताओं और दुर्लभ रक्त प्रकार वाले रक्तदाताओं की सूची की आवश्यकता है।
भाषा आशीष