अब इजराइल-ईरान मामले में अधिक नैतिक साहस दिखाए सरकार : कांग्रेस
हक सुरभि मनीषा
- 23 Jun 2025, 11:16 AM
- Updated: 11:16 AM
नयी दिल्ली, 23 जून (भाषा) कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि मोदी सरकार ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले तथा "इजराइली आक्रामकता" की आलोचना या निंदा नहीं की है और वह गाजा में "नरसंहार" पर भी चुप है।
मुख्य विपक्षी दल के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि अब सरकार को पहले की तुलना में अधिक नैतिक साहस का परिचय देना चाहिए।
उनका यह भी कहना है कि ईरान के साथ कूटनीतिक बातचीत होनी चाहिए।
अमेरिका ने रविवार तड़के ईरान में तीन यूरेनियम संवर्धन स्थलों—फोर्दो, नतांज और इस्फहान—पर हमला किया था।
पिछले 10 दिनों से ईरान और इजराइल के बीच सैन्य संघर्ष जारी है।
रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, "ईरान पर अमेरिकी वायुसेना की ताकत का इस्तेमाल करने का राष्ट्रपति ट्रंप का निर्णय ईरान के साथ बातचीत जारी रखने के उनके अपने आह्वान का मज़ाक है।"
उन्होंने कहा कि कांग्रेस, ईरान के साथ तत्काल कूटनीति और बातचीत की अनिवार्यता को दोहराती है।
कांग्रेस नेता ने कहा, "भारत सरकार को अब तक की तुलना में अधिक नैतिक साहस का प्रदर्शन करना चाहिए।
उन्होंने दावा किया, "मोदी सरकार ने स्पष्ट रूप से अमेरिकी बमबारी और इजराइल की आक्रामकता, बमबारी और लक्षित हत्याओं की न तो आलोचना की है और न ही निंदा की है। इसने गाजा में फ़लस्तीनियों पर किए जा रहे नरसंहार पर भी चुप्पी साध रखी है। "
इससे पहले, कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने बीते शनिवार को आरोप लगाया था कि मोदी सरकार ने गाजा की स्थिति और इजराइल-ईरान सैन्य संघर्ष पर चुप्पी साधते हुए भारत के सैद्धांतिक रुख और मूल्यों को त्याग दिया है।
उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार को आवाज बुलंद करनी चाहिए और पश्चिम एशिया में संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए उपलब्ध हर राजनयिक मंच का उपयोग करना चाहिए।
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने अंग्रेजी दैनिक ‘‘द हिन्दू’’ के लिए लिखे एक लेख में कहा था, ‘‘ईरान भारत का लंबे समय से मित्र रहा है और गहरे सभ्यतागत संबंधों से हमारे साथ जुड़ा हुआ है। इसका जम्मू-कश्मीर समेत महत्वपूर्ण मौकों पर दृढ़ समर्थन का इतिहास रहा है।’’
उन्होंने उल्लेख किया कि वर्ष 1994 में ईरान ने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत की आलोचना करने वाले एक प्रस्ताव को रोकने में मदद की थी।
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने कहा, ‘‘वास्तव में, इस्लामी गणतंत्र ईरान अपने पूर्ववर्ती, ईरान के ‘शाह शासन’ की तुलना में भारत के साथ कहीं अधिक सहयोगी रहा है, जिसका झुकाव 1965 और 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर था।’’
सोनिया गांधी का कहना है, "हाल के दशकों में भारत और इजराइल के बीच भी रणनीतिक संबंध विकसित हुए हैं। इस महत्वपूर्ण स्थिति में आने से हमारे देश का तनाव कम करने और शांति बहाल करने का नैतिक दायित्व और शक्ति बढ़ी है। यह कोई कोरा सिद्धांत नहीं है। पश्चिम एशिया में लाखों भारतीय नागरिक रह रहे हैं और काम कर रहे हैं, इसलिए इस क्षेत्र में शांति स्थापना एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है।"
भाषा हक सुरभि