समिक भट्टाचार्य बंगाल विस चुनाव से पहले पार्टी में जान फूंकने के लिए प्रदेश अध्यक्ष चुने गये
पारुल मनीषा
- 03 Jul 2025, 05:15 PM
- Updated: 05:15 PM
कोलकाता, तीन जुलाई (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े पार्टी के एक कट्टर वफादार और स्पष्टवादी नेता समिक भट्टाचार्य को अपनी पश्चिम बंगाल इकाई का नया अध्यक्ष चुना है।
भट्टाचार्य का चयन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की प्रदेश इकाई में जान फूंकने और 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले इसे राज्य में एक विजयी ताकत में तब्दील करने की सोची-समझी रणनीति की ओर इशारा करता है।
बंगाल भाजपा प्रमुख के रूप में भट्टाचार्य (61) की नियुक्ति को उनकी दशकों की मौन प्रतिबद्धता, वैचारिक निष्ठा और व्यक्तिगत अनुशासन का इनाम माना जा रहा है। इन खूबियों ने सुर्खियों में न होने के बावजूद उन्हें पार्टी मशीनरी के केंद्र में रखने में अहम भूमिका निभाई।
राज्यसभा सदस्य भट्टाचार्य को बृहस्पतिवार को निर्विरोध भाजपा की बंगाल इकाई का नया अध्यक्ष चुना गया।
अविवाहित भट्टाचार्य का सियासी सफर 1970 के दशक के मध्य में शुरू हुआ था, जब एक स्कूली छात्र के रूप में उन्होंने पहली बार हावड़ा के मंदिरतला क्षेत्र में आरएसएस की शाखाओं में हिस्सा लिया।
शुरुआती जीवन में संघ की विचारधारा से प्रभावित हुए भट्टाचार्य अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हो गए, जिसने संघ परिवार के एक सिपाही के रूप में उनके पूर्णकालिक राजनीतिक जीवन का आगाज किया।
भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल में भाजपा से उसी समय से जुड़े हुए हैं, जब पार्टी राज्य में अपनी जमीन तलाशने के लिए संघर्ष कर रही थी। 2018 तक पश्चिम बंगाल में भाजपा की संगठनात्मक उपस्थिति या चुनावी प्रासंगिकता बहुत कम थी, इसके बावजूद भट्टाचार्य पार्टी के प्रति वफादार रहे।
धीरे-धीरे वह आगे बढ़ते गए। 1990 के दशक में तपन सिकदर के दौर में एबीवीपी से भाजयुमो तक। अगले तीन दशक में उन्होंने अध्यक्ष पद को छोड़कर हर प्रमुख संगठनात्मक पद संभाला, जिनमें प्रदेश महासचिव, उपाध्यक्ष और मुख्य प्रवक्ता पद शामिल हैं।
भाजपा की युवा शाखा, भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) में रहने के दौरान उनकी दोस्ती अपने समकालीन राहुल सिन्हा से हुई, जो बाद में 2009 में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बने।
तथागत रॉय की अध्यक्षता में भट्टाचार्य का महत्व बढ़ा, जब उन्हें प्रदेश महासचिव नियुक्त किया गया। हालांकि, दिलीप घोष के अध्यक्ष काल में भट्टाचार्य के पास बहुत ज्यादा संगठनात्मक शक्ति नहीं थी, लेकिन उन्हें मुख्य प्रवक्ता बनाया गया- एक ऐसा पद, जिससे उनकी बेबाक छवि, सौम्यता और तथ्यों पर मजबूत पकड़ सामने आई।
नौ प्रदेश अध्यक्षों के अधीन काम करने वाले भट्टाचार्य पार्टी में कई नेताओं के उनसे आगे निकलने या छिटकने के बावजूद संगठन के भीतर एक भरोसेमंद और स्वीकार्य नेता बने रहे। उनकी वैचारिक स्पष्टता और आंतरिक समन्वय के कारण पार्टी में उन पर भरोसा बढ़ता गया।
भाजपा में कई लोग इस बार को लेकर हैरान हैं कि उनके (भट्टाचार्य) जैसे अनुशासन और निष्ठा वाले व्यक्ति को प्रदेश इकाई की कमान पहले क्यों नहीं सौंपी गई। कुछ लोग अंदरूनी कलह और गुटबाजी को इस देरी के लिए कसूरवार ठहराते हैं।
भट्टाचार्य के एक करीबी सहयोगी ने कहा, ‘‘वह एक ऐसे दुर्लभ नेता हैं, जो जानते हैं कि किसने उनके रास्ते में बाधा डालने की कोशिश की, लेकिन कभी शिकायत नहीं करते। वह माफ कर देते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। यही बात उन्हें अलग बनाती है।’’
भट्टाचार्य का शुरुआती चुनावी सफर मिला-जुला रहा। 2006 में वह श्यामपुकुर विधानसभा सीट और 2014 में बशीरहाट लोकसभा सीट पर चुनाव हार गए। हालांकि, 2014 में ही उन्होंने बशीरहाट दक्षिण विधानसभा उपचुनाव जीतकर सबको चौंका दिया और क्षेत्र से भाजपा के पहले विधायक चुने गए।
भाजपा, जिसका 1999 से 2001 के बीच बंगाल विधानसभा में सिर्फ एक विधायक था, वह भी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के साथ गठबंधन के कारण उपचुनाव में मिली जीत की बदौलत, उसने भट्टाचार्य के निर्वाचन को एक अहम मोड़ के रूप में देखा। हालांकि, भट्टाचार्य 2019 में लोकसभा चुनाव और 2021 में विधानसभा चुनाव में जीत नहीं दर्ज कर सके।
बहरहाल, बंगाल विधानसभा में 2016 में अपनी सीट गंवाने के बावजूद भाजपा में भट्टाचार्य का कद बना रहा। 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद उनकी विश्वसनीयता और बढ़ गई, जब ममता बनर्जी की टीएमसी से हार के बावजूद भाजपा बंगाल में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी।
एक करीबी सहयोगी ने दावा किया कि 2016 में भट्टाचार्य को टीएमसी में शामिल होने और मंत्री बनाने की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
सहयोगी ने कहा, ‘‘विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और पार्टी के प्रति वफादारी कभी कम नहीं हुई। वह अक्सर कहते हैं कि गोपनीयता, विचारधारा में विश्वास और नेतृत्व के प्रति वफादारी किसी भी मजबूत राजनीतिक संगठन की नींव होती है।’’
अपने शांत आचरण, तीखी भाषण कला और तथ्य-आधारित संवाद के लिए जाने जाने वाले भट्टाचार्य ने 2020 से 2024 तक भाजपा के मुख्य प्रवक्ता के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान पार्टी में काफी सम्मान अर्जित किया। इस अवधि में भाजपा और टीएमसी के बीच सियासी टकराव काफी तेज था।
अप्रैल 2024 में राज्यसभा चुनाव के लिए भट्टाचार्य के नामांकन को उनकी लंबी और निरंतर सेवा को केंद्रीय नेतृत्व की मान्यता के रूप में देखा गया था। संसद में भट्टाचार्य ने चुनावी सुधारों से लेकर संघवाद और आंतरिक सुरक्षा तक, विभिन्न मुद्दों पर बोलते हुए बेहद कम समय में गहरी छाप छोड़ी।
गुटबाजी और हताशा से जूझ रही प्रदेश इकाई की कमान संभालने वाले भट्टाचार्य को संभवत: अपने सियासी सफर की सबसे कठिन अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा। पुराने नेताओं और 2019 के बाद दूसरे दलों से आए नेताओं के बीच दरार को पाटना उनके सामने तात्कालिक चुनौती है।
साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद से संगठन को कई नेताओं के अलग होने, अंदरूनी कलह और 2023 के पंचायत चुनावों तथा 2024 के लोकसभा चुनावों में असफलताओं का सामना करना पड़ा है।
भट्टाचार्य को अब बूथ स्तर पर पार्टी को फिर से मजबूत करने, अनुशासन बहाल करने और शुभेंदु अधिकारी के नेतृत्व वाले विधायक दल तथा सुकांत मजूमदार के नेतृत्व में रह चुके पार्टी संगठन के बीच तालमेल सुनिश्चित करने का जिम्मा सौंपा गया है।
दिलचस्प बात यह है कि शुभेंदु के साथ भट्टाचार्य के मधुर संबंधों को भी उनकी पदोन्नति के एक कारण के रूप में देखा जा रहा है। केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के बीच बेहतर तालमेल बना रहे।
सिर्फ शुभेंदु ही नहीं, भट्टाचार्य के अन्य दलों से भाजपा में आए मुकुल रॉय जैसे नेताओं से भी अच्छे रिश्ते हैं।
भट्टाचार्य की साफ छवि, संघ की पृष्ठभूमि और संचार कौशल के कारण भाजपा को बंगाल में पासा पलटने की उम्मीद है। उनकी नियुक्ति को प्रदेश इकाई में फोकस, सामंजस्य और जज्बा वापस लाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जिसने कभी बंगाल पर शासन करने का सपना देखा था।
भाषा पारुल