भूमि हड़पने का मामला: उच्चतम न्यायालय ने एचडी कुमारस्वामी के खिलाफ अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाई
सुरेश वैभव
- 17 Jul 2025, 04:14 PM
- Updated: 04:14 PM
नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक के एक गांव में कथित तौर पर बड़े पैमाने पर भूमि अतिक्रमण के मामले में चल रही अवमानना कार्यवाही में केंद्रीय मंत्री एवं जनता दल (सेक्यूलर) नेता एचडी कुमारस्वामी को पक्षकार बनाने के आदेश पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 17 अप्रैल के आदेश के खिलाफ केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री कुमारस्वामी की याचिका पर संज्ञान लिया और गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘‘समाज परिवर्तन समुदाय’’ को नोटिस जारी किया।
एनजीओ का प्रतिनिधित्व वकील प्रशांत भूषण कर रहे हैं।
एनजीओ ने बिदादी के केथागनहल्ली गांव में कुमारस्वामी और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि अतिक्रमण का आरोप लगाया है।
शीर्ष अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि एक खंडपीठ द्वारा पारित 14 जनवरी, 2020 के आदेश की कथित अवज्ञा के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष अवमानना कार्यवाही लंबित है।
पीठ ने कहा, ‘‘रिट याचिका में उपरोक्त आदेश अतिरिक्त महाधिवक्ता के उस बयान के आधार पर उच्च न्यायालय द्वारा पारित किया गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कर्नाटक सरकार लोकायुक्त द्वारा पांच अगस्त, 2014 को पारित आदेश का तीन सप्ताह के भीतर पालन करेगी।’’
पीठ ने कहा कि लोकायुक्त का आदेश विस्तृत, लेकिन अंतरिम प्रकृति का था और बाद में, लोकायुक्त ने अंततः तीन मार्च, 2021 को कार्यवाही बंद कर दी।
शीर्ष अदालत ने जद(एस) नेता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी. ए. सुंदरम की दलीलें दर्ज कीं, जिसमें कहा गया कि लोकायुक्त के अंतरिम आदेश पर अवमानना की कार्यवाही नहीं हो सकती, क्योंकि उन्होंने (लोकायुक्त ने) बाद में मामला खुद ही बंद कर दिया था।
न्यायालय ने कहा, ‘‘दूसरा तर्क यह है कि प्रासंगिक समय पर, याचिकाकर्ता अवमानना कार्यवाही में पक्षकार नहीं थे, लेकिन फिर भी, उनके खिलाफ बेदखली की कार्रवाई की गई। इसलिए, इस न्यायालय ने 28 मई, 2025 के आदेश के तहत याचिकाकर्ता द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका का निपटारा करते हुए उन्हें उच्च न्यायालय के संज्ञान में यह बात लाने की स्वतंत्रता दी कि उनका नाम अवमानना कार्यवाही से हटा दिया गया है।’’
सुंदरम ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद कुमारस्वामी ने उच्च न्यायालय में एक अर्जी दायर की, लेकिन उन्हें चल रही अवमानना कार्यवाही में पक्षकार बना दिया गया।
पीठ ने आदेश दिया, ‘‘अर्जी यह है कि उन्होंने (याचिकाकर्ता ने) पक्षकार बनने के लिए आवेदन नहीं किया है, बल्कि इस न्यायालय के निर्देशानुसार इसे अदालत के संज्ञान में लाया है। नोटिस जारी करें।’’
नेता की याचिका पर कोई भी प्रतिक्रिया चार सप्ताह के भीतर दाखिल करने का निर्देश दिया गया।
शीर्ष अदालत ने आगे कहा, ‘‘इस बीच, 17 अप्रैल 2025 के आदेश का प्रभाव और संचालन स्थगित रहेगा।’’
हालांकि, पीठ ने मंत्री की याचिका पर कर्नाटक सरकार सहित अन्य पक्षों को नोटिस जारी नहीं किये।
वर्तमान अवमानना कार्यवाही एनजीओ की उस याचिका पर आधारित है जिसमें 2011 की लोकायुक्त की एक अंतरिम रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे की बात कही गई थी।
राज्य सरकार ने बाद में एक विशेष जांच दल का गठन किया, जिसने कथित तौर पर आरोपों का समर्थन करने वाले प्रथम दृष्टया साक्ष्य पाए।
उच्च न्यायालय ने तत्कालीन महाधिवक्ता द्वारा 2020 में दिए गए इस आश्वासन के बाद मामला बंद कर दिया गया कि सरकार लोकायुक्त के निष्कर्षों पर कार्रवाई करेगी।
बाद में, लोकायुक्त ने भी अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के कारण 2021 में अपनी कार्यवाही औपचारिक रूप से बंद कर दी।
हालांकि, बाद में उच्च न्यायालय ने राज्य के अधिकारियों के खिलाफ एक अवमानना याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें कथित तौर पर अतिक्रमित भूमि को पुनः प्राप्त करने में विफल रहने का आरोप लगाया गया था, जैसा कि शुरू में सिफारिश की गई थी।
भाषा सुरेश