मराठी भाषा राष्ट्रीय मान्यता की हकदार, शिवाजी की रणनीति आज भी प्रासंगिक: जेएनयू कुलगुरु
आशीष नरेश
- 21 Jul 2025, 08:15 PM
- Updated: 08:15 PM
(मोहित सैनी)
नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) 24 जुलाई को दो नए शैक्षणिक केंद्रों कुसुमाग्रज मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति के लिए विशेष केंद्र तथा श्री छत्रपति शिवाजी महाराज सुरक्षा और सामरिक अध्ययन के लिए विशेष केंद्र की शुरुआत करने वाला है।
उद्घाटन समारोह का नेतृत्व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ‘जेएनयू कन्वेंशन सेंटर’ में करेंगे, जिसमें उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार तथा राज्य के अन्य वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री भी उपस्थित रहेंगे।
सोमवार को ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में, जेएनयू की कुलगुरु शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 और भारतीय ज्ञान प्रणालियों और भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता के प्रतिबिंब के रूप में दो नए केंद्रों के महत्व पर प्रकाश डाला।
मराठी केंद्र शुरू किए जाने पर उन्होंने कहा, "वर्तमान राज्य सरकार मराठी को महत्व दे रही है, जिसे केंद्र द्वारा शास्त्रीय भाषाओं में से एक घोषित किया गया है, क्योंकि मराठी एक बहुत प्रतिष्ठित भाषा है और अपने साहित्य के लिए जानी जाती है।"
कुसुमाग्रज विशेष केंद्र मराठी भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक परंपराओं पर ध्यान केंद्रित करेगा और इसका नाम ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध मराठी कवि के नाम पर रखा गया है।
पंडित ने कहा, "कुसुमाग्रज महानतम मराठी कवियों में से एक हैं, जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिला है। वह मुक्ति और सामाजिक समानता के कवि हैं, इसलिए इसका (केंद्र का) नाम उनके नाम पर रखा गया है और यहां मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति पर मुख्य ध्यान दिया जाएगा।"
यह केंद्र बहुभाषावाद और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के लिए स्नातकोत्तर और प्रमाणपत्र स्तर के कार्यक्रम प्रदान करेगा।
कुलगुरु ने कहा, "यह तमिल भाषी जैसे गैर-मराठी भाषियों के लिए नयी शिक्षा नीति के अनुरूप मराठी में एमए और प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम प्रदान करेगा। बिहार और उत्तर प्रदेश के बहुत से छात्रों ने तमिल भाषा को चुना है और जब भी हमारे कोई कार्यक्रम होते हैं, तो कई छात्र तमिल बोलते हैं। यह उत्साहजनक है क्योंकि इससे भारत एकजुट होगा और लोग देश की अन्य भाषाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनेंगे।"
विभिन्न विषयों और राज्यों के छात्रों को इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। उन्होंने कहा, "जैसे कोई भी पीजी या पीएचडी का छात्र एक साथ मराठी में ये सर्टिफिकेट कोर्स कर सकता है और इससे सभी को अवसर मिलेगा क्योंकि जेएनयू में सभी राज्यों के छात्र हैं। हम सम्मेलन भी आयोजित करेंगे।"
श्री छत्रपति शिवाजी महाराज विशेष सुरक्षा एवं सामरिक अध्ययन केंद्र, मराठा साम्राज्य पर आधारित स्वदेशी सामरिक परंपराओं पर ध्यान केंद्रित करेगा। इस केंद्र का उद्देश्य भारत के अतीत में निहित सैन्य इतिहास, रणनीति और भविष्य की नीति निर्माण का केंद्र बनना है।
पंडित ने कहा, "यह बहुत जरूरी है कि छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महापुरुषों को भारत के सर्वोच्च विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित किया जाए।"
उन्होंने उन ऐतिहासिक कमियों के बारे में विस्तार से बताया जिन्हें केंद्र दूर करना चाहता है। कुलगुरु ने कहा, "दूसरा केंद्र भारत के सबसे महान विस्मृत नायकों में से एक, छत्रपति शिवाजी महाराज को सम्मानित करने के लिए है। छत्रपति शिवाजी महाराज को एक महान रणनीतिकार माना जाता है, इसलिए हम मराठों द्वारा इस्तेमाल की गई रणनीतियों पर विचार कर रहे हैं, जिन्होंने एक बहुत बड़ा साम्राज्य बनाया था।"
पंडित ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बहुत से लोग मराठा शक्ति के पूरे विस्तार से अनजान हैं। पंडित ने कहा, "उन्होंने 30 साल तक दिल्ली पर राज किया। बहुत से लोग यह नहीं जानते कि मराठों ने दिल्ली पर राज किया और वे लाहौर तक गए... दक्षिण में, वे तंजावुर तक गए।"
उन्होंने कहा कि इस केंद्र में न केवल इतिहास का अध्ययन होगा, बल्कि समकालीन सुरक्षा चिंतन के लिए दृष्टिकोण भी प्रदान करेगा।
उन्होंने कहा, "आप जानते हैं कि रक्षा संस्थान एनडीए, भारतीय नौसेना अकादमी और अन्य जेएनयू के अधीन हैं-- इसलिए वर्तमान सेना प्रमुख और नौसेना प्रमुख जेएनयू के पूर्व छात्र हैं और हम भारत के लिए एक रणनीतिक भविष्य की नीति भी चाहते हैं। हम देखेंगे कि छत्रपति शिवाजी महाराज, कान्होजी आंग्रे और उनके कई सेनापतियों की नौसेना और गुरिल्ला युद्ध की रणनीति का उपयोग करके पाठ्यक्रम कैसे विकसित कर सकते हैं, क्योंकि यह आज की रणनीति में बहुत प्रासंगिक है।"
उन्होंने कहा कि इन केंद्रों की शुरुआत के साथ, जेएनयू का उद्देश्य भारतीय परंपराओं के अकादमिक अध्ययन को गहरा करना है, साथ ही एनईपी, 2020 के अनुरूप एक आधुनिक, ज्ञान-संचालित समाज में योगदान देना है।
भाषा आशीष