अदालत के फैसले के बाद मुंबई धमाकों के पीड़ितों ने कहा, सरकार और जांच दल की ‘सामूहिक विफलता’
आशीष नेत्रपाल
- 22 Jul 2025, 09:15 PM
- Updated: 09:15 PM
मुंबई, 22 जुलाई (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय द्वारा 11 जुलाई 2006 के ट्रेन बम विस्फोट मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी किए जाने के बाद, इस भयावह आतंकवादी हमले में जीवित बचे लोगों ने फैसले को सरकार और जांच दल की ‘‘सामूहिक विफलता’’ बताया और कहा कि अपराधियों को किसी भी कीमत पर दंडित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को उच्चतम न्यायालय का रुख कर बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देनी चाहिए। राज्य सरकार पहले ही यह कदम उठा चुकी है।
सोमवार को उच्च न्यायालय के फैसले के कुछ घंटों बाद ‘पीटीआई’ के साथ एक वीडियो साक्षात्कार में, चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) और 2006 के बम विस्फोटों में जीवित बचे लोगों में से एक, चिराग चौहान (40) ने बरी किए जाने के फैसले को ‘‘सरकार, जांच दल और न्यायिक दल की सामूहिक विफलता’’ बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि राज्य सरकार को शीर्ष अदालत जाना चाहिए और निष्पक्ष न्याय या जांच की मांग करनी चाहिए। (श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के लिए) ज़िम्मेदार लोगों को सजा मिलनी चाहिए।’’
चौहान, 11 जुलाई, 2006 को पश्चिमी रेलवे की एक लोकल ट्रेन में यात्रा कर रहे थे, जब खार और सांताक्रूज़ स्टेशन के बीच एक जोरदार धमाका हुआ। आतंकवादी हमले में रीढ़ की हड्डी में लगी चोट के कारण वह लकवाग्रस्त हो गए और अब व्हीलचेयर पर आश्रित हैं।
वहीं, एक अन्य पीड़ित, पश्चिम रेलवे के कर्मचारी महेंद्र पिताले (52) ने कहा कि सरकार को 19 साल पुराने इस मामले में न्याय सुनिश्चित करने के लिए सभी उपलब्ध कानूनी विकल्पों पर विचार करना चाहिए।
पिताले ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के फैसले से सहमत नहीं हैं और वह इस बात से भी निराश हैं कि यह फैसला बम विस्फोट के 19 साल बाद आया है।
जोगेश्वरी में हुए ट्रेन विस्फोट में अपना बायां हाथ गंवाने वाले पिताले ने उन सभी लोगों को न्याय के दायरे में लाने का आह्वान किया जिन्होंने पश्चिमी रेलवे के उपनगरीय नेटवर्क पर बम विस्फोटों की साजिश रची और उन्हें अंजाम दिया।
इन विस्फोटों में 180 से अधिक लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे।
पिताले ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि सरकार (फैसले के बाद के मामलों को देखने के लिए) एक समिति गठित करे और उच्चतम न्यायालय में अपील करे। आरोपियों को जल्द से जल्द सजा मिलनी चाहिए।’’
आतंकी हमले में जीवित बचे एक अन्य व्यक्ति हंसराज कनौजिया ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के फैसले से बहुत निराश हैं। उन्होंने कहा कि असली दोषियों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए और उन्हें कड़ी सज़ा दी जानी चाहिए।
धमाकों में अपना दाहिना पैर गंवाने वाले कनौजिया ने बताया कि वह उपनगरीय ट्रेन के जनरल डिब्बे में यात्रा कर रहे थे, तभी जोगेश्वरी में बगल के प्रथम श्रेणी डिब्बे में विस्फोट हुआ।
मुंबई की व्यस्त उपनगरीय रेलगाड़ियों में हुए सात विस्फोटों के 19 वर्ष बाद, उच्च न्यायालय ने सभी 12 आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में ‘‘पूरी तरह विफल’’ रहा और ‘‘यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने अपराध किया है।’’
विशेष अदालत ने 12 में से पांच को मौत की सजा और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मृत्युदंड प्राप्त एक दोषी की 2021 में मौत हो गई।
उच्चतम न्यायालय मुंबई में कई ट्रेन में किए गए सात बम धमाकों के मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी करने के मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर 24 जुलाई को सुनवाई करेगा।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने मंगलवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा उच्च न्यायालय के 21 जुलाई के फैसले के खिलाफ राज्य की अपील का तत्काल सुनवाई के अनुरोध का संज्ञान लिया और कहा कि बृहस्पतिवार को सुनवाई की जाएगी।
उच्च न्यायालय का यह फैसला मामले की जांच कर रही महाराष्ट्र एटीएस के लिए बड़ी शर्मिंदगी लेकर आया। एजेंसी का दावा था कि आरोपी प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य थे और उन्होंने आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के पाकिस्तानी सदस्यों के साथ मिलकर यह साजिश रची थी।
भाषा आशीष