असम ध्वस्तीकरण: न्यायालय अवमानना कार्रवाई की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत
सुरभि नरेश
- 24 Jul 2025, 02:24 PM
- Updated: 02:24 PM
नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने असम के गोवालपाड़ा जिले में ध्वस्तीकरण अभियान के दौरान शीर्ष अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करने के आरोप में असम सरकार के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने के संबंध में बृहस्पतिवार को सहमति जताई।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने असम के मुख्य सचिव और अन्य को दो सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि जून में बड़े पैमाने पर बेदखली और ध्वस्तीकरण अभियान से 667 से ज्यादा परिवार प्रभावित हुए।
गोवालपाड़ा जिले के आठ निवासियों की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई व्यक्तिगत सुनवाई और अपील या न्यायिक समीक्षा के लिए पर्याप्त समय दिए बिना की गई।
वकील अदील अहमद के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘संबंधित अधिकारियों ने बेदखली अभियान का भेदभावपूर्ण कार्यान्वयन और संचालन किया... बेदखली और ध्वस्तीकरण की कार्रवाई मुख्य रूप से अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर की गई, जबकि इसी तरह के मामलों में बहुसंख्यक समुदाय के लोगों को अछूता छोड़ दिया गया।’’
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि केवल दो दिनों का नोटिस दिया गया और उसके तुरंत बाद ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई।
प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाते?’’
हेगड़े ने कहा कि कई लोग उच्च न्यायालय गए थे और वहां भी पुनर्वास के बारे में ही याचिका दायर की गई थी।
उन्होंने कहा कि अतिक्रमणकारियों को भी कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल करने का अधिकार है।
हेगड़े ने कहा, ‘‘ये 667 गरीब परिवार हैं जो 60 से 70 सालों से उस जमीन पर रह रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि ब्रह्मपुत्र समय-समय पर अपना रास्ता बदलती रहती है और लोगों को ऊंचाई वाले स्थानों पर जाना पड़ता है।
पीठ ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘हम नोटिस जारी करना चाहते हैं, लेकिन अगर सरकार यह कहकर बचाव करती है कि यह सरकारी जमीन है तो हम पहले ही कह चुके हैं कि हमारा आदेश सरकार के स्वामित्व वाली जमीन, सड़कों, सार्वजनिक स्थानों, नदियों और जलाशयों पर किसी भी अतिक्रमण पर लागू नहीं होगा।’’
शीर्ष अदालत द्वारा याचिका पर नोटिस जारी करने की बात कहने के बाद हेगड़े ने यथास्थिति बनाए रखने का अनुरोध किया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अगर यह सरकारी जमीन है, तो यह लागू नहीं होगा। हम अपने निर्णय के विपरीत कोई आदेश पारित नहीं कर सकते।’’
याचिका में शीर्ष अदालत के 13 नवंबर, 2024 के फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें न्यायालय ने अखिल भारतीय दिशानिर्देश निर्धारित किए गए थे। निर्देश में पूर्व में कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना और पीड़ित पक्ष को जवाब देने के लिए 15 दिनों का समय दिए बिना संपत्ति को गिराने पर रोक लगा दी गई थी।
याचिकाकर्ताओं के बारे में कहा गया था कि वे पिछले 60 वर्षों से हसीलाबील राजस्व गांव में अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं और हाल तक किसी भी सरकारी प्राधिकरण द्वारा कोई आपत्ति नहीं उठाई गई थी।
याचिका में कहा गया है कि 13 जून को प्राधिकरण ने सभी निवासियों को 15 जून तक निर्माण हटाने का निर्देश देते हुए एक नोटिस जारी किया था।
याचिका में कहा गया है कि निवासियों को पर्याप्त समय या सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया और नोटिस ‘‘मनमाने तरीके से’’ जारी किया गया।
याचिका में कहा गया है कि कुछ ही दिनों में अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर बेदखली और ध्वस्तीकरण अभियान चलाया और यह कार्य बिना कोई नया कारण बताओ नोटिस जारी किए या व्यक्तिगत सुनवाई किए बिना किया गया।
याचिका में ध्वस्त किए गए घरों, स्कूलों आदि के लिए मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के माध्यम से अंतरिम राहत के निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।
शीर्ष अदालत ने कई निर्देश पारित करते हुए नवंबर 2024 के अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ये निर्देश सार्वजनिक स्थानों जैसे सड़कों, गलियों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों से सटे या नदी या जल स्रोतों में अनधिकृत संरचनाओं के मामले में लागू नहीं होंगे, सिवाय उन मामलों के जहां ध्वस्तीकरण का अदालती आदेश हो।
भाषा सुरभि