आईसीजे का फैसला जलवायु न्याय की भारत की मांग को मजबूती प्रदान करता है: विशेषज्ञ
सुरभि पवनेश
- 24 Jul 2025, 04:24 PM
- Updated: 04:24 PM
नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) जलवायु परिवर्तन से निपटने के वास्ते अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के ऐतिहासिक परामर्श विचार पर प्रतिक्रिया देते हुए विशेषज्ञों ने बृहस्पतिवार को कहा कि यह समान नजरिया अपनाने, ऐतिहासिक जिम्मेदारी तय करने तथा जलवायु न्याय की भारत की दीर्घकालिक मांगों को कानूनी बल प्रदान करती है, साथ ही घरेलू स्तर पर कार्रवाई की अपेक्षाओं को बढ़ाती है।
आईसीजे ने जलवायु परिवर्तन के संबंध में तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देते हुए एक ऐतिहासिक घोषणा में कहा है कि जलवायु परिवर्तन ‘‘अस्तित्व के लिए खतरा’’ है। आईसीजे ने कहा कि जलवायु संबंधी कदम उठाना राष्ट्रों का दायित्व है तथा ऐसा करने के लिए वे कानूनी रूप से बाध्य हैं।
संयुक्त राष्ट्र की अदालत ने स्पष्ट किया कि देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को ‘‘सर्वोच्च संभव महत्वाकांक्षा’’ के साथ प्राप्त करना चाहिए और समय के साथ उनसे उत्तरोत्तर सुधार की अपेक्षा की जाती है।
बुधवार रात जारी की गई सलाहकार राय में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत राष्ट्र कानूनी रूप से बाध्य हैं, जिसमें लोगों को इसके हानिकारक प्रभावों से बचाना भी शामिल है।
विशेषज्ञों ने कहा कि यह फैसला भारत जैसे देशों के लिए महत्वपूर्ण है, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से जलवायु संकट में बहुत कम योगदान दिया है लेकिन इसके असमान प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
पर्यावरण रक्षा कोष में भारत के मुख्य सलाहकार हिशाम मुंडोल ने कहा, ‘‘यह एक ऐतिहासिक फैसला है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इसे स्पष्ट कर दिया है: जलवायु कार्रवाई अब केवल एक राजनीतिक या नैतिक विकल्प नहीं है, बल्कि एक कानूनी दायित्व है।’’
उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश जो ‘ग्लोबल साउथ’ का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनका ऐतिहासिक और प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम है, लेकिन जो उच्च जोखिम में हैं, उनके लिए यह निर्णय स्पष्ट और सशक्त करने वाला है।
‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया’ के वरिष्ठ सलाहकार शैलेन्द्र यशवंत ने कहा कि आईसीजे की सुनवाई सहित वैश्विक मंचों पर समानता और जलवायु न्याय पर भारत के निरंतर ध्यानाकर्षण को परामर्श विचार में मान्यता मिली है, लेकिन इसके साथ ही अधिक अपेक्षाएं भी जुड़ी हैं।
इस साल की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की सुनवाई के दौरान भारत ने दलील दी थी कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन की प्राथमिक जिम्मेदारी उठानी चाहिए, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से वैश्विक उत्सर्जन में उनका सबसे ज्यादा योगदान रहा है।
भारत की ओर से दलील देते हुए विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव लूथर एम. रंगरेजी ने कहा था, ‘‘अगर उत्सर्जन में योगदान असमान है, तो जिम्मेदारी वहन करने में भी असमानता होनी चाहिए।’’
भारत ने अदालत से मौजूदा अंतरराष्ट्रीय जलवायु व्यवस्था से परे नए दायित्व बनाने से बचने का आग्रह किया था।
भाषा
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