ब्रिटेन के साथ एफटीए से भारत को फायदा, अन्य देशों के साथ भी ऐसे समझौतों की जरूरत: आरबीआई गवर्नर
निहारिका रमण
- 25 Jul 2025, 04:46 PM
- Updated: 04:46 PM
(फाइल फोटो के साथ)
मुंबई, 25 जुलाई (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर का शुक्रवार को स्वागत करते हुए कहा कि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को मदद मिलेगी।
एफई मॉडर्न बीएफएसआई (बैंक, वित्तीय सेवा और बीमा) शिखर सम्मेलन में यहां मल्होत्रा ने कहा कि बहुपक्षवाद अब बीते दिन की बात है और भारत को अन्य देशों के साथ भी ऐसे समझौतों (जैसे ब्रिटेन एफटीए) की जरूरत है।
लंदन में ब्रिटेन के साथ हुए व्यापार समझौते पर केंद्रीय बैंक की यह पहली टिप्पणी है।
मल्होत्रा ने कहा, ‘‘ उम्मीद है कि ब्रिटेन के साथ एफटीए से हमें मदद मिलेगी... अब आगे बढ़ने का यही रास्ता है, क्योंकि दुर्भाग्य से बहुपक्षवाद पीछे छूट गया है।’’
उन्होंने साथ ही कहा कि अमेरिका के साथ बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है।
आरबीआई के गवर्नर ने कहा कि वर्तमान वास्तविकताओं को देखते हुए जहां बहुपक्षवाद पीछे छूट गया है ...भारत के लिए अन्य देशों के साथ ऐसे और अधिक समझौते करना आवश्यक है।
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ऐसे कई समझौतों पर बातचीत जारी है।
इस समझौते को आधिकारिक तौर पर व्यापक आर्थिक एवं व्यापार समझौता (सीईटीए) कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केअर स्टार्मर की उपस्थिति में इस पर लंदन में बृहस्पतिवार को हस्ताक्षर किए गए। इससे दोनों देशों के लिए वस्तुओं और सेवाओं के बाजार खुलेंगे।
इस बीच, मल्होत्रा ने अमेरिकी केंद्रीय बैंक प्रमुख जेरोम पॉवेल के काम का समर्थन किया है। यह समर्थन उन्होंने ऐसे समय किया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसकी (फेडरल की) नीतियों पर अपनी निराशा सार्वजनिक तौर पर व्यक्त की है।
मल्होत्रा ने कहा, ‘‘ ... वह (पॉवेल) बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता बनाए रखना बेहद जरूरी है। मुझे लगता है कि उन्होंने सराहनीय काम किया है।’’
क्रिप्टोकरेंसी विनियमन पर मल्होत्रा ने कहा कि भारत में इस मुद्दे पर विचार करने के लिए सरकार द्वारा नियुक्त सीमित, आरबीआई की चिंताओं पर गौर करेगी।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि ब्रिक्स समूह के लिए अलग मुद्रा पर कोई काम नहीं जारी है। किसी भी अन्य देश की तरह भारत भी अपनी मुद्रा को लोकप्रिय बनाने पर काम कर रहा है और अमेरिकी डॉलर यहां बना रहेगा।
उन्होंने कहा कि भारत का संयुक्त अरब अमीरात के साथ समझौता है और वह मालदीव के साथ भी रुपये में व्यापार के संबंध में कुछ समझौते पर विचार कर रहा है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि अमेरिकी डॉलर वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अपनी प्रमुख स्थिति बनाए रखेगा और निकट भविष्य में इस स्थिति में कोई बड़ा बदलाव आने की संभावना नहीं है क्योंकि आपको एक सार्वभौमिक सीमा-पार मुद्रा की आवश्यकता है।
उन्होंने रूस पर प्रतिबंधों के बावजूद तेल खरीद के प्रबंधन में पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा किए गए कार्यों की भी सराहना की।
भाषा निहारिका