विद्यार्थियों की आत्महत्या: युवाओं की लगातार जान जाना व्यवस्थागत विफलता को दर्शाता है:शीर्ष अदालत
संतोष नरेश
- 25 Jul 2025, 09:23 PM
- Updated: 09:23 PM
नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि आत्महत्याओं के कारण युवाओं की लगातार जान जाना ‘व्यवस्थागत विफलता’ को दर्शाता है और इस मुद्दे को ‘अनदेखा नहीं किया जा सकता’।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इस मुद्दे से निपटने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर कई दिशानिर्देश पारित किए और कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा 2022 में ‘भारत में आकस्मिक मौतें और आत्महत्याएं’ शीर्षक से प्रकाशित आंकड़े ‘बेहद चिंताजनक तस्वीर’ पेश करते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘युवाओं की लगातार जा रही जान, जो अक्सर अनदेखे मनोवैज्ञानिक संकट, शैक्षिक बोझ, सामाजिक कलंक और संस्थागत असंवेदनशीलता जैसे रोके जा सकने वाले कारणों से होती है, एक प्रणालीगत विफलता को दर्शाती है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’’
भारत में 2022 में आत्महत्या के 1,70,924 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 7.6 प्रतिशत, यानी लगभग 13,044, विद्यार्थियों द्वारा की गई आत्महत्याएं थीं।
पीठ ने कहा कि उल्लेखनीय रूप से इनमें से 2,248 मौतें सीधे तौर पर परीक्षाओं में असफलता के कारण हुईं।
एनसीआरबी के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पिछले दो दशकों में विद्यार्थियों में आत्महत्या की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2001 में 5,425 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की लेकिन यह आंकड़ा 2022 में बढ़कर 13,044 हो गया।
पीठ ने कहा, ‘‘स्कूलों, कोचिंग संस्थानों, कॉलेजों और प्रशिक्षण केंद्रों सहित शैक्षिक संस्थानों में आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए, हम देश भर के शैक्षिक संस्थानों में छात्रों को प्रभावित कर रहे मानसिक स्वास्थ्य संकट की गंभीरता को स्वीकार करने और उसका समाधान करने के लिए बाध्य महसूस करते हैं।’’
पीठ आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें विशाखापत्तनम में राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) की तैयारी कर रहे 17 वर्षीय अभ्यर्थी की अप्राकृतिक मौत की जांच सीबीआई को सौंपने की याचिका खारिज कर दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों से विद्यार्थियों में बढ़ती आत्महत्याओं का एक चिंताजनक पैटर्न सामने आया है।
पीठ ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक अभिन्न अंग है।
पीठ ने कहा कि संकट की गंभीर प्रकृति को देखते हुए खासकर कोटा, जयपुर, सीकर, विशाखापत्तनम, हैदराबाद और दिल्ली जैसे शहरों में, जहां बड़ी संख्या में विद्यार्थी पहुंचते हैं, तत्काल अंतरिम सुरक्षा उपाय करना आज की जरूरत है।
पीठ ने 15 दिशानिर्देश जारी किए, जिनमें यह भी शामिल था कि सभी शैक्षिक संस्थान छात्र और परामर्शदाता का इष्टतम अनुपात सुनिश्चित करेंगे।
पीठ ने कहा, ‘‘विद्यार्थियों के छोटे समूहों को, विशेष रूप से परीक्षा अवधि और शैक्षणिक बदलावों के दौरान, निरंतर, अनौपचारिक और गोपनीय सहायता प्रदान करने के लिए समर्पित सलाहकार या परामर्शदाता नियुक्त किए जाएंगे।’’
पीठ ने कहा कि सभी शैक्षणिक संस्थान मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, स्थानीय अस्पतालों और आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन के लिए तत्काल रेफरल के लिए लिखित प्रोटोकॉल स्थापित करेंगे।
पीठ ने कहा, ‘‘टेली-मानस और अन्य राष्ट्रीय सेवाओं सहित आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन नंबर छात्रावासों, कक्षाओं, सामान्य क्षेत्रों और वेबसाइटों पर बड़े और सुपाठ्य अक्षरों में प्रमुखता से प्रदर्शित किए जाएंगे।’’
इसने कहा कि सभी शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा, चेतावनी के संकेतों की पहचान, आत्म-क्षति के प्रति प्रतिक्रिया और रेफरल तंत्र पर प्रमाणित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा वर्ष में कम से कम दो बार अनिवार्य प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा।
पीठ ने कहा कि सभी शैक्षिक संस्थान यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी कर्मचारी संवेदनशील, समावेशी और गैर-भेदभावपूर्ण तरीके से कमजोर और हाशिए की पृष्ठभूमि के छात्रों के साथ जुड़ने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित हों।
पीठ ने कहा कि इसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस), एलजीबीटीक्यू+ समुदाय, दिव्यांग छात्र, घर से बाहर रहने वाले छात्र, शोक, आघात, या पूर्व में आत्महत्या के प्रयास करने वाले छात्र शामिल होंगे, लेकिन केवल इन्हीं तक सीमित नहीं होंगे।
पीठ ने कहा कि ऐसा प्रत्येक संस्थान एक आंतरिक समिति या नामित प्राधिकारी का गठन करेगा, जिसे यौन उत्पीड़न, रैगिंग और अन्य शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई करने और पीड़ितों को मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता प्रदान करने का अधिकार होगा।
पीठ ने कहा कि सभी शैक्षणिक संस्थान नियमित रूप से छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर माता-पिता और अभिभावकों के लिए संवेदीकरण कार्यक्रम (प्रत्यक्ष या ऑनलाइन) आयोजित करेंगे।
पीठ ने कहा कि सभी शैक्षिक संस्थान गोपनीय रिकॉर्ड रखेंगे और एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेंगे जिसमें स्वास्थ्य हस्तक्षेपों, छात्र रेफरल, प्रशिक्षण सत्रों और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियों की संख्या दर्शायी जाएगी।
पीठ ने कहा कि शैक्षिक बोझ को कम करने और छात्रों में परीक्षा के अंकों और रैंक से परे पहचान की व्यापक भावना विकसित करने के लिए परीक्षा पैटर्न की समय-समय पर समीक्षा की जाएगी।
पीठ ने कहा, ‘‘छात्रावास मालिकों, वार्डन और ‘केयरटेकर’ सहित सभी आवासीय शिक्षण संस्थानों को यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे कि परिसर उत्पीड़न, दबंगई, नशीली दवाओं आदि से मुक्त रहें।’’
इसने केंद्र से 90 दिनों के भीतर न्यायालय के समक्ष अनुपालन हलफनामा दाखिल करने को कहा। हलफनामे में विद्यार्थियों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर राष्ट्रीय कार्यबल की रिपोर्ट और उसकी सिफारिशों को पूरा करने की अपेक्षित समय-सीमा का भी उल्लेख होना चाहिए।
भाषा संतोष