1984 सिख विरोधी दंगा मामला: सीएफएसएल 40 साल पुरानी अस्पष्ट प्राथमिकी को नहीं समझ सकी-उप्र सरकार
देवेंद्र पवनेश
- 25 Jul 2025, 10:15 PM
- Updated: 10:15 PM
नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) कानपुर में 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में दर्ज 40 साल से अधिक पुरानी अस्पष्ट प्राथमिकी की सामग्री को समझने में सक्षम नहीं है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे पर विचार किया और जांच एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे जैसे ही इसकी प्रति प्राप्त कर लें, अदालत को अवगत कराएं।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि सीएफएसएल जैसी विशेषज्ञ संस्था प्राथमिकी की विषय-वस्तु को नहीं समझ पाती है तो कुछ नहीं किया जा सकता, लेकिन यदि एजेंसियों को इसकी प्रति मिल जाती है तो अदालत आगे निर्देश जारी कर सकती है।
पीठ ने कहा, ‘‘रिपोर्ट से पता चलता है कि प्राथमिकी संख्या .../1984 की विषय-वस्तु को विशेषज्ञ संस्थान, अर्थात केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल), नयी दिल्ली द्वारा भी नहीं समझा जा सका और इससे प्राप्त रिपोर्ट से पता चलता है कि दो हिंदी शब्दों को छोड़कर, जिन्हें आंशिक रूप से पढ़ा जा सकता है...अन्य सभी शब्द अस्पष्ट हैं।’’
आदेश में कहा गया, ‘‘ऐसा होने पर, हम इस बात से संतुष्ट हैं कि प्राथमिकी संख्या... के संबंध में इस स्तर पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। हालांकि, जब भी एजेंसियां इसकी सामग्री प्रति प्राप्त करने में सक्षम होंगी, तो मामले को बिना किसी देरी के इस अदालत के संज्ञान में लाया जायेगा ताकि उस प्राथमिकी के संबंध में उचित निर्देश भी जारी किए जा सकें।’’
विचाराधीन प्राथमिकी उन नौ प्राथमिकी में से एक है जिनकी 35 वर्षों के बाद एसआईटी द्वारा जांच की जा रही थी और साक्ष्य के अभाव में बंद कर दी गई थी।
उच्चतम न्यायालय 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान कानपुर में लगभग 130 सिखों की हत्या के मामले की जांच फिर से किये जाने के अनुरोध संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
इससे पहले, न्यायालय ने कानपुर में 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित 11 मामलों की शीघ्र सुनवाई का निर्देश दिया था, जिनमें मामलों की पुनः जांच के बाद आरोपपत्र दाखिल किए गए थे।
उत्तर प्रदेश की स्थायी वकील रुचिरा गोयल ने दलील दी कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में बरी किये जाने के खिलाफ दायर की गई चार आपराधिक अपीलों में, उच्च न्यायालय ने देरी को माफ कर दिया है और अब राज्य के महाधिवक्ता कार्यालय द्वारा अपीलों पर सक्रिय रूप से कार्रवाई की जा रही है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘इस संबंध में, हम उत्तर प्रदेश राज्य के महाधिवक्ता से आग्रह करना चाहते हैं कि वे लंबित आपराधिक अपीलों में उच्च न्यायालय की सहायता के लिए राज्य के सर्वश्रेष्ठ विधि अधिकारियों को तैनात करें, जिनके पास आपराधिक कानून में विशेषज्ञता हो।’’
ऐसे सभी मामलों में राज्य की वकील को आवश्यक कार्रवाई के लिए उच्चतम न्यायालय के आदेश की एक प्रति उच्च न्यायालय के समक्ष पेश करने का आदेश दिया गया और मामले की सुनवाई 15 सितंबर के लिए निर्धारित की गई।
भाषा
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