उत्तर प्रदेश: उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव को फर्जी आर्य समाज सोसाइटी की जांच कराने का निर्देश दिया
राजेंद्र खारी
- 27 Jul 2025, 03:22 PM
- Updated: 03:22 PM
प्रयागराज, 27 जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) को फर्जी आर्य समाज सोसाइटी की जांच कराने के निर्देश दिए हैं।
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने 24 जुलाई को दिए अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि जांच पुलिस उपायुक्त स्तर से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं कराई जानी चाहिए।
उक्त निर्देश पारित करने से पूर्व अदालत ने स्पष्ट रूप से यह पाया कि याचिकाकर्ता और पीड़िता अलग अलग धर्म से आते हैं और याचिका से स्पष्ट है कि उन्होंने प्रयागराज के आर्य समाज मंदिर में विवाह किया है।
अदालत ने कहा कि हालांकि, मौजूदा कानून के मुताबिक यह विवाह बिना धर्म परिवर्तन के नहीं किया जा सकता था।
अदालत सोनू उर्फ शाहनुर नाम के व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने अपने खिलाफ 12 सितंबर 2024 को जारी समन के आदेश और महाराजगंज के विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम) की अदालत में लंबित आपराधिक मुकदमे को रद्द करने का अनुरोध किया था।
हालांकि अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता के खिलाफ महाराजगंज के निचलौल थाना में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363 (अपहरण), 366 (इच्छा के विरुद्ध विवाह के लिए विवश करना) और 376 (दुष्कर्म) एवं यौन अपराधों से बच्चे का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी, ‘‘मेरे मुव्वकिल ने 14 फरवरी, 2020 को लड़की से विवाह किया। चूंकि शादी के समय वह नाबालिग थी, इसलिए उसे नारी निकेतन भेज दिया गया और वयस्क होने पर वह याचिकाकर्ता के साथ रहने लगी।’’
सरकारी वकील ने दलील दी, ‘‘लड़की के हाईस्कूल के प्रमाणपत्र के मुताबिक वह नाबालिग थी और वह याचिकाकर्ता के साथ विवाह नहीं कर सकती थी। साथ ही दोनों अलग-अलग धर्म से हैं, इसलिए बिना धर्म परिवर्तन के उनके विवाह को वैध नहीं माना जा सकता।’’
उन्होंने कहा कि इसके अलावा याचिकाकर्ता और पीड़िता के बीच विवाह का प्रमाणपत्र आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी किया गया है जोकि एक जाली दस्तावेज प्रतीत होता है।
सरकारी वकील ने अवगत कराया कि शनिदेव एवं अन्य बनाम राज्य सरकार के मामले में इस अदालत का कहना है कि कुछ लोग स्वयं को आर्य समाज से होने का दावा कर अवैध विवाह करा रहे हैं जिसमें वर और वधु की आयु तक का सत्यापन नहीं किया जा रहा है।
अदालत ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में विवाह का पंजीकरण नहीं किया गया है। रिकॉर्ड से पता चलता है कि कथित घटना के समय लड़की नाबालिग थी और किसी भी तरह से उसकी शादी वैध नहीं कही जाएगी।’’
उच्च न्यायालय ने प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) को इस बात की जांच कराने का निर्देश दिया है कि कैसे प्रदेश में फर्जी आर्य समाज सोसाइटी संचालित की जा रही है और वे वर-वधु की आयु सत्यापित किए बगैर दुर्भावनापूर्ण इरादे से अवैध विवाह कराने के व्यवसाय में संलिप्त हैं।
सोनू उर्फ शाहनुर की याचिका खारिज करते हुए अदालत ने इस मामले को नए सिरे से 29 अगस्त को सुनने का आदेश दिया।
भाषा राजेंद्र