पूर्व सांसद आत्महत्या मामला : प्राथमिकी रद्द करने के खिलाफ बेटे की याचिका पर फैसला सुरक्षित
पारुल नरेश
- 04 Aug 2025, 04:37 PM
- Updated: 04:37 PM
नयी दिल्ली, चार अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने पूर्व लोकसभा सदस्य मोहन डेलकर को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में केंद्र-शासित प्रदेश दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव के प्रशासक प्रफुल खोड़ा पटेल सहित नौ लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सोमवार को सुरक्षित रख लिया।
बंबई उच्च न्यायालय ने इस मामले में नौ लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को आठ सितंबर 2022 को रद्द कर दिया था।
यह प्राथमिकी दादरा एवं नगर हवेली से सात बार सांसद रह चुके डेलकर की मौत के बाद दर्ज की गई थी, जो 2021 में मुंबई के एक होटल में मृत पाए गए थे।
डेलकर के कथित सुसाइड नोट में उत्पीड़न और धमकी का विस्तृत विवरण दिया गया था, जिसके कारण पुलिस ने शीर्ष नौकरशाहों और राजनीतिक हस्तियों सहित कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई की थी।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने दिवंगत सांसद के बेटे अभिनव डेलकर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा, राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कुछ आरोपियों के वकील महेश जेठमलानी की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
सुनवाई के दौरान पीठ ने इस बात पर विस्तृत चर्चा की कि क्या मृतक सांसद द्वारा छोड़े गए 30 पन्नों के सुसाइड नोट सहित रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य सामग्री के आधार पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत आरोपों को बरकरार रखा जा सकता है।
प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया, “उस व्यक्ति के पास सोचने और 30 पन्ने लिखने का समय था। क्या हम कह सकते हैं कि यह (आत्महत्या) अचानक उठाया गया कदम था?”
उन्होंने कहा कि तनाव या उत्पीड़न के प्रति लोगों की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग हो सकती हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “संवेदनशील व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है, जबकि कठोर हृदय वाला व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता।”
अरोड़ा ने कहा कि घटना के समय डेलकर की मानसिक स्थिति सार्वजनिक तौर पर अपमानित होने की तीव्र भावना का नतीजा थी।
उन्होंने कहा, “वह दुखी थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि उनकी छवि धूमिल हो गई है। देखिए उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को क्या लिखा है। उनके परिवार का नाम उनके लिए बहुत मायने रखता था।”
वहीं, मेहता ने कहा, “बदलते मामलों के बावजूद कानून एक जैसा ही रहता है। तथ्यों के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने का उच्च न्यायालय का फैसला सही है।”
उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय में अपने कार्यकाल के दौरान प्रधान न्यायाधीश गवई द्वारा दिए गए एक फैसले सहित अन्य उदाहरणों का जिक्र किया।
वरिष्ठ अधिवक्ता जेठमलानी ने कहा, “सुसाइड नोट या रिकॉर्ड में कहीं भी 24 करोड़ रुपये की कथित जबरन वसूली का कोई विशेष उल्लेख नहीं है। यह दावा जांच के दायरे में नहीं आता।”
पीठ ने कहा कि अगर जबरन वसूली के आरोपों को उच्च न्यायालय के समक्ष पेश दलीलों में शामिल नहीं किया गया, तो वे अब स्वीकार्य नहीं हो सकते।
प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, “क्या यह दलील उच्च न्यायालय के समक्ष पेश की गई थी?” इस पर अरोड़ा ने कहा कि वह इसके बारे में पता करेंगी।
फैसला सुरक्षित रखते हुए पीठ ने पक्षकारों के वकीलों से 8 अगस्त तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा।
भाषा पारुल