पंजाब के पांच पूर्व पुलिसकर्मियों को 1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में आजीवन कारावास की सजा
यासिर अविनाश
- 04 Aug 2025, 09:03 PM
- Updated: 09:03 PM
चंडीगढ़, चार अगस्त (भाषा) मोहाली की एक सीबीआई अदालत ने तरनतारन जिले में 1993 में फर्जी मुठभेड़ में सात लोगों की मौत मामले में पुलिस के पांच पूर्व अधिकारियों को सोमवार को आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश बलजिंदर सिंह सरा की अदालत ने फैसला सुनाते हुए प्रत्येक दोषी पर 3.50 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
अदालत ने एक अगस्त को उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की संबंधित धाराओं के तहत आपराधिक षड्यंत्र, हत्या और सबूत नष्ट करने का दोषी पाया था।
तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) भूपिंदरजीत सिंह (61), तत्कालीन सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई) देविंदर सिंह (58), तत्कालीन एएसआई गुलबर्ग सिंह (72), तत्कालीन निरीक्षक सूबा सिंह (83) और तत्कालीन एएसआई रघबीर सिंह (63) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
भूपिंदरजीत सिंह बाद में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के पद से सेवानिवृत्त हुए जबकि उपनिरीक्षक देविंदर सिंह डीएसपी के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे।
इस मामले में पांच अन्य आरोपी पुलिस अधिकारी - तत्कालीन निरीक्षक गुरदेव सिंह, तत्कालीन उप निरीक्षक ज्ञान चंद, तत्कालीन एएसआई जगीर सिंह और तत्कालीन हेड कांस्टेबल मोहिंदर सिंह और अरूर सिंह की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘विभिन्न दलीलों पर विचार करने के बाद, इस अदालत का मानना है कि दोषियों ने जिस घोर भ्रष्टाचार और लापरवाही से काम किया, उसमें कोई संदेह नहीं है, जो मानवीय गरिमा और जीवन के प्रति घोर उपेक्षा को दर्शाता है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि, उनकी बढ़ती उम्र और कई वर्षों तक मुकदमे के दौरान सहन की गई लंबी पीड़ा को देखते हुए, यह अदालत मृत्युदंड देने से बचती है।’’
आदेश में कहा गया है कि उपरोक्त निर्णय के आलोक में इन सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, दी गई जुर्माना राशि मृतकों की विधवाओं और कानूनी उत्तराधिकारियों को समान अनुपात में मुआवजे के रूप में दी जाएगी।
उन सात पीड़ितों में से तीन विशेष पुलिस अधिकारी थे।
सीबीआई द्वारा की गई जांच के अनुसार, सिरहाली थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी गुरदेव सिंह के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम ने 27 जून 1993 को एक सरकारी ठेकेदार के आवास से एसपीओ शिंदर सिंह, देसा सिंह, सुखदेव सिंह और दो अन्य बलकार सिंह और दलजीत सिंह को पकड़ लिया था।
सीबीआई जांच के अनुसार, उन्हें डकैती के एक झूठे मामले में फंसाया गया था।
इसके बाद दो जुलाई 1993 को सरहाली पुलिस ने शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया, जिसमें दावा किया गया कि वे सरकारी हथियारों के साथ फरार हो गए हैं।
तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह और तत्कालीन निरीक्षक गुरदेव सिंह के नेतृत्व में 12 जुलाई 1993 को पुलिस की एक टीम ने दावा किया कि जब वे डकैती के मामले में बरामदगी के लिए मंगल सिंह नाम के व्यक्ति को घारका गांव ले जा रहे थे, उसी दौरान आतंकवादियों ने हमला कर दिया।
गोलीबारी में मंगल सिंह, देसा सिंह, शिंदर सिंह और बलकार सिंह मारे गए।
सीबीआई जांच के अनुसार, अभिलेखों में उनकी पहचान होने के बावजूद, उनके शवों का अंतिम संस्कार लावारिस के रूप में कर दिया गया।
सीबीआई जांच के अनुसार, 28 जुलाई 1993 को तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम के साथ एक फर्जी मुठभेड़ में तीन और व्यक्ति सुखदेव सिंह, सरबजीत सिंह और हरविंदर सिंह मारे गए थे।
भाषा यासिर