त्रिपुरा में बाल विवाह अभी भी चिंता का सबब, सिपाहीजाला में तीन महीने के भीतर 103 मामले सामने आए
यासिर पवनेश
- 05 Aug 2025, 04:05 PM
- Updated: 04:05 PM
(प्रबीर सिल)
अगरतला, पांच अगस्त (भाषा) त्रिपुरा के सिपाहीजाला जिले में इस वर्ष अप्रैल से जून के बीच बाल विवाह के राज्य में सबसे अधिक 103 मामले दर्ज किए गए हैं। यहां एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
इस मुद्दे पर चिंताओं के बीच, जिला प्रशासन ने अपने प्रमुख पहल ‘मिशन संकल्प’ के तहत इसी अवधि के दौरान बाल विवाह के 101 प्रयासों को सफलतापूर्वक विफल किया। ‘मिशन संकल्प’ पहल का उद्देश्य बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों पर अंकुश लगाना है।
दक्षिण त्रिपुरा जिला 43 मामलों के साथ बाल विवाह के लिए दूसरे स्थान पर रहा। आकांक्षी ज़िला धलाई में बाल विवाह के 33 मामले दर्ज किए गए जबकि यहां 31 बाल विवाह के प्रयासों को विफल किया गया।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट के अनुसार, बाल विवाह के मामलों में त्रिपुरा देश में तीसरे स्थान पर है।
बाल विवाह को त्रिपुरा में सबसे गंभीर सामाजिक चुनौतियों में से एक बताते हुए समाज कल्याण एवं सामाजिक शिक्षा विभाग के निदेशक तपन कुमार दास ने कहा कि इस मुद्दे ने पूर्वोत्तर राज्य में गंभीर रूप ले लिया है।
उन्होंने विभागीय निष्कर्षों का हवाला देते हुए कहा, ‘‘आर्थिक रूप से पिछड़ापन इसका असल कारण है। निरक्षरता, सामाजिक समर्थन का अभाव और सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव भी इसके लिए जिम्मेदार कारक हैं।’’
दास ने कहा कि विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को अभी भी बोझ समझा जाता है और कई माता-पिता अपनी बेटियों को शिक्षित करने को लेकर अनिच्छुक हैं।
इस समस्या के समाधान के लिए समाज कल्याण विभाग ने जिला प्रशासन के साथ समन्वय करके कई उपाय किए हैं।
दास ने बताया, ‘‘ऐसी ही एक पहल ‘बालिका मंच’ है, जो ज़्यादातर स्कूलों में गठित एक स्कूल-स्तरीय समिति है। इसमें शिक्षक और छात्राएं दोनों शामिल होते हैं। अगर कोई छात्रा कई दिनों तक अनुपस्थित रहती है, तो उसके सहपाठियों को समिति को इसकी सूचना देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसके बाद मामले की जांच की जाती है और ज़रूरत पड़ने पर पंचायत को भेजा जाता है।’’
बाल विवाह विरोधी पहल में अग्रणी रहे सिपाहीजाला के जिलाधिकारी सिद्धार्थ शिव जायसवाल ने कहा कि ‘मिशन संकल्प’ विशेष रूप से बाल विवाह, किशोर गर्भावस्था और युवाओं में मादक पदार्थों के सेवन की समस्या से निपटने के लिए बनाया गया है।
जायसवाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘बांग्लादेश की सीमा से लगे 10 गांवों को आकांक्षी बाल विवाह मुक्त प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ है, जहां पिछले छह महीनों में बाल विवाह का कोई मामला सामने नहीं आया है।’’
उन्होंने कहा कि ऐसे गांवों की पहचान करना और उन्हें प्रोत्साहित करना इस पहल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
नाबालिगों के भागकर शादी करने के मामलों में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका पर समाज कल्याण विभाग की उपनिदेशक टिफ़नी कलाई ने कहा, "कई लड़के-लड़कियां सोशल मीडिया के ज़रिए एक-दूसरे से जुड़ते हैं और बिना परिणामों को समझे भाग जाते हैं। ऐसे मामलों में हम अक्सर उनकी तलाश नहीं कर पाते, जो बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी चुनौती बन जाता है।"
भाषा यासिर