उमर ने जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर राजनीतिक दलों के प्रमुखों को लिखा पत्र
नोमान संतोष
- 06 Aug 2025, 12:34 AM
- Updated: 12:34 AM
श्रीनगर, पांच अगस्त (भाषा) मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे सहित 42 राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वे जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए संसद के मौजूदा सत्र में विधेयक लाने के लिए केंद्र पर दबाव डालें। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश के पूर्ण राज्य के दर्जे को बहाल करने को "एक रियायत के रूप में नहीं, बल्कि एक आवश्यक सुधार के रूप में देखा जाना चाहिए।"
मामले से जुड़े अधिकारियों के अनुसार, मुख्यमंत्री ने इसे ऐसा मुद्दा बताया जो क्षेत्रीय हितों से परे है और देश के संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक लोकाचार के मूल को छूता है।
उन्होंने कहा कि किसी राज्य का दर्जा घटाकर उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाना एक गंभीर और बैचेनी उत्पन्न करने वाली मिसाल पेश करता है, और यह एक संवैधानिक सीमा है जिसे कभी पार नहीं किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने 29 जुलाई को लिखे तीन पन्नों के पत्र में कहा, "2019 में जम्मू-कश्मीर को राज्य से घटाकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने का कार्य और पूर्ण राज्य के रूप में इसका दर्जा बहाल करने में लंबी देरी... इसका भारतीय राजनीति के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।"
मुख्यमंत्री ने कहा कि अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठित करने को "अस्थायी उपाय" के रूप में प्रस्तुत किया गया था और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बार-बार दिए गए सार्वजनिक आश्वासनों का हवाला दिया, जिसमें इस साल की शुरुआत में कश्मीर में किया गया वादा भी शामिल है, जिसे उन्होंने "मोदी का वादा" कहा था।
अब्दुल्ला ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष केन्द्र के रुख का भी हवाला दिया जिसमें उसने जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।
हालांकि अब्दुल्ला ने तर्क दिया कि 'जितनी जल्दी हो सके' या 'यथाशीघ्र' जैसे शब्दों की व्याख्या इस तरह नहीं की जा सकती कि वह वर्षों या दशकों तक खिंच जाए।
जम्मू-कश्मीर के लोग पहले ही काफी इंतजार कर चुके हैं - अब राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए।
पत्र के अनुसार, अब्दुल्ला ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 को हटाने के पीछे नैतिक आधार "समानता के तर्क" पर आधारित था, लेकिन इस सिद्धांत को समान रूप से लागू नहीं किया गया है।
इसमें कहा गया है, "राज्य का दर्जा न देने की बात भारत में किसी अन्य क्षेत्र पर थोपी नहीं गई है; वास्तव में, ऐतिहासिक रूप से हमेशा केंद्र शासित प्रदेश को पूर्ण राज्य बनाया जाता रहा है।"
उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लोगों के "लंबे समय तक और अभूतपूर्व अशक्तिकरण" को "अन्यायपूर्ण" बताया और कहा कि यह "उस तर्क को कमजोर करता है जिसका इस्तेमाल अगस्त 2019 के बदलावों को उचित ठहराने के लिए किया गया था।"
अब्दुल्ला ने राजनीतिक दलों से आग्रह किया कि वे जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए संसद के मौजूदा सत्र में विधेयक लाने के लिए केंद्र पर दबाव डालें।
पत्र में कहा गया है, “पूर्ण राज्य के दर्जे को बहाल करने को किसी रियायत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे एक आवश्यक सुधारात्मक कदम के रूप में समझा जाना चाहिए— ऐसा कदम जो हमें उस खतरनाक और फिसलन भरे रास्ते पर जाने से रोकता है, जहां हमारे प्रदेशों के पूर्ण राज्य के दर्जे को संविधान में निहित एक बुनियादी और पवित्र अधिकार के बजाय केंद्र सरकार की इच्छा पर निर्भर एक कृपा बना दिया गया है।"
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने पूर्ण राज्य का दर्जा तत्काल बहाल करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया था और इसे व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री को सौंपा गया था।
अब्दुल्ला ने हाल की दो घटनाओं को "ऐतिहासिक घावों को भरने और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के असाधारण अवसर" के रूप में पेश किया। इनमें हाल के चुनावों में मतदाताओं की भारी भागीदारी और पहलगाम में हुई घटना के बाद आतंकवाद की सार्वजनिक निंदा शामिल है।
भाषा नोमान