नींद में खलल पड़ने से पक्षियों की आवाज में आता है बदलाव
(द कन्वरसेशन) आशीष सुभाष
- 06 Aug 2025, 04:25 PM
- Updated: 04:25 PM
(जूली गविराघी मुसोई, वाइकाटो विश्वविद्यालय और क्रिस्टाल कैन, ऑकलैंड विश्वविद्यालय)
ऑकलैंड, छह अगस्त (द कन्वरसेशन) हम सभी ने कभी न कभी रात में अच्छी नींद नहीं ली होगी, चाहे साथी खर्राटे ले रहा हो, बच्चा रो रहा हो या पड़ोसी बहुत ज़्यादा मौज-मस्ती कर रहे हों। नींद में खलल पड़ना आम बात है और अगले दिन इसके अप्रिय परिणाम हो सकते हैं, जैसे कि सुस्ती महसूस करना और संवाद करने में कठिनाई होना।
लेकिन पता चला है कि हम अकेले नहीं हैं। हमारे नये अध्ययन से पता चलता है कि पक्षियों को भी नींद में खलल पड़ने पर तकलीफ होती है, और यह उनके गायन में भी दिखाई देता है।
पक्षी क्यों गाते हैं
पक्षियों की आवाज असाधारण रूप से विविध होती है। यह साधारण आवाज, जैसे मुर्गा के कुकड़ू-कु, से लेकर अन्य ध्वनियों की जटिल नकल, कभी-कभी तो मानव आवाज की नकल तक होती है।
यह आवाज पक्षियों के लिए अपने और अपने परिवेश के बारे में जानकारी साझा करने के वास्ते महत्वपूर्ण है।
यह आमतौर पर छोटी और सरल होती है। इसका इस्तेमाल अक्सर सामाजिक संवाद के लिए किया जाता है, जैसे खतरे या भोजन का संकेत देना, रिश्तेदारों की पहचान के लिए या सामाजिक जुड़ाव बनाए रखने के लिए।
गीत ज़्यादा जटिल और मधुर होते हैं और इनका इस्तेमाल साथी को आकर्षित करने, किसी क्षेत्र की रक्षा करने या नये क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए किया जाता है।
ऐसी ध्वनियां उत्पन्न करने के लिए, पक्षियों को मस्तिष्क, फेफड़े और गले की मांसपेशियों सहित कई शारीरिक प्रणालियों का समन्वय करना पड़ता है। चूंकि स्वर-निर्माण जटिल होते हैं और सटीक समय की आवश्यकता होती है, इसलिए उनमें त्रुटियां होने की संभावना अधिक होती है।
कई प्रजातियों में, जो पक्षी अधिक बार और अधिक जटिलता से गाते हैं, वे बेहतर साथी आकर्षित कर सकते हैं और अपने क्षेत्रों की रक्षा कर सकते हैं। इसलिए, खराब गुणवत्ता वाला गीत पक्षी की प्रजनन और जीवित रहने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
शोरगुल वाले वातावरण में सोना
वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि अब तक अध्ययन किये गए सभी जीव-जंतुओं को नींद की जरूरत होती है। इसमें जेलीफ़िश और कीड़ों से लेकर व्हेल और पक्षी तक शामिल हैं।
कई जानवर अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा सोते हुए बिताते हैं, और चमगादड़ जैसे के बारे में बताया गया है कि वे प्रतिदिन 20 घंटे तक सोते हैं।
लेकिन शहरीकरण के कारण नींद की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही है। लगातार फैलते शहरों के साथ, रात में रोशनी, ध्वनि प्रदूषण और शिकारी जानवरों जैसी परेशानियां, दूर-दराज़ के इलाकों में भी आम हो गई हैं। इसका मतलब है कि कई पक्षी बेहद अशांत वातावरण में रहते और सोते हैं।
अध्ययनों से पता चलता है कि ध्वनि और प्रकाश प्रदूषण का सामना करने वाले पक्षी कम सोते हैं, ज़्यादा बार जागते हैं और उनकी नींद कम गहरी होती है। मनुष्यों की तरह, पक्षियों के लिए भी मस्तिष्क के विकास, स्मृति, सीखने, प्रेरणा, तनाव के स्तर, अनुभूति और संवाद के लिए नींद महत्वपूर्ण है।
नींद की कमी वाले पक्षी कम गाते हैं और ज़्यादा आराम करते हैं।
अपने अध्ययन में, हमने मैना पर ध्यान केंद्रित किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि जब पक्षियों को पर्याप्त नींद नहीं मिलती, तो उनकी आवाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।
हमने सामान्य नींद की रातों और शोरगुल वाली रातों के बाद उनके गीतों और आवाज की मात्रा और जटिलता को मापा।
नींद में खलल वाली रात के बाद, मैना कम और कम जटिल गीत गाती थीं। वे दिन में आराम करने में भी ज़्यादा समय बिताती थीं। इससे पता चलता है कि इन पक्षियों ने अगले दिन गायन को प्राथमिकता नहीं दी और इसके बजाय उन्होंने झपकी ली।
ऑस्ट्रेलियाई मैगपाई पर किये गए पिछले अध्ययन में भी हमें ऐसा ही नतीजा मिला था। एक रात नींद की कमी के बाद मैगपाई कम गाते थे और यहां तक कि अपने पसंदीदा भोजन खाने में भी उनकी रुचि कम हो जाती थी।
दिलचस्प बात यह है कि रात के पहले पहर में नींद प्रभावित होने वाले पक्षियों ने दूसरे पहर में नींद में खलल से प्रभावित पक्षियों की तुलना में कम गायन किए, हालांकि, पूरी रात व्यवधान का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा।
पक्षियों के लिए यह क्यों मायने रखता है
हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि कुछ समय के लिए नींद की गड़बड़ी भी पक्षियों की आवाज की गुणवत्ता और मात्रा को प्रभावित कर सकती है। लेकिन प्रकृति में, नींद में खलल शायद ही कभी एक बार की घटना होती है। प्रकाश और ध्वनि प्रदूषण दीर्घकालिक समस्याएं हैं, जो साल भर मौजूद रहती हैं।
इसका मतलब है कि पक्षियों के गीतों और आवाजों की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आने की संभावना है। इससे पक्षियों के संवाद, प्रजनन और अस्तित्व पर शहरीकरण के प्रभाव को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं।
शहरी क्षेत्र रात में होने वाली गड़बड़ी को कम करने और पक्षियों की नींद की आदतों में सुधार लाने के लिए कदम उठा सकते हैं। इसमें पेड़ों और शहरी पार्कों जैसे सुरक्षित और शांत बसेरा क्षेत्रों की संख्या बढ़ाना शामिल है। इसमें अनावश्यक रोशनी को खत्म करना और नीचे की ओर करना तथा गर्म रोशनी का उपयोग करना भी शामिल हो सकता है।
भारी या तेज आवाज वाले वाहनों और आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाने से रात में ध्वनि प्रदूषण कम होगा और हमारे शहरों में रहने वाले वन्यजीवों की प्राकृतिक नींद की आदतों की रक्षा होगी।
(द कन्वरसेशन) आशीष