भ्रष्टाचार रोधी कानून ईमानदार अधिकारियों को बचाता है, बेईमानों को दंडित करता है: केंद्र
सुभाष नरेश
- 06 Aug 2025, 06:21 PM
- Updated: 06:21 PM
नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) केंद्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि भ्रष्टाचार के मामलों में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए पूर्व मंजूरी अनिवार्य करने संबंधी भ्रष्टाचार रोधी कानून का प्रावधान ‘‘निर्भीक शासन’’ उपलब्ध कराने का प्रयास है।
सरकार ने न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ को सूचित किया कि ‘‘निर्भीक सुशासन’’ भी ‘‘किसी संवैधानिक शासन का एक मूलभूत हिस्सा’’ है।
इसके बाद, पीठ ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस धारा के तहत, भ्रष्टाचार के मामलों में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए पूर्व मंजूरी लेना अनिवार्य है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘(धारा) 17ए, जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, वह निर्भीक शासन सुनिश्चित करने का विधायिका का एक और प्रयास है ताकि ईमानदार अधिकारियों को दंडित न किया जाए और बेईमान अधिकारी बच न सकें।’’
पीठ ने 2018 में अधिनियम की संशोधित धारा 17ए के लागू होने के बाद से प्राप्त भ्रष्टाचार की शिकायतों की संख्या के बारे में जानकारी मांगी।
मेहता ने कहा कि वह सीबीआई को प्राप्त शिकायतों के आंकड़े दे सकते हैं।
उन्होंने कहा कि 60 प्रतिशत शिकायतों को मंजूरी दे दी गई।
याचिकाकर्ता एनजीओ(गैर सरकारी संगठन) ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘उनका कहना है कि पिछले छह वर्षों में 2,395 शिकायतें प्रारंभिक जांच या जांच के लिए आईं।’’
भूषण ने उल्लेख किया, ‘‘उन्होंने कहा है कि इनमें से 989 को, यानी लगभग 41 प्रतिशत को, अस्वीकार कर दिया गया और 1,406 को मंज़ूरी दी गई।’’
मेहता ने कहा कि मंजूरी देते या न देते समय तर्कसंगत आदेश पारित किये गए।
उन्होंने कहा कि अंततः, ये आदेश न्यायिक जांच का विषय हो सकते हैं और पीड़ित पक्ष इन्हें चुनौती दे सकता है।
मेहता ने कहा, ‘‘मौजूदा समय में, जैसे ही इसे अस्वीकार किया जाता है, शिकायतकर्ता आरटीआई लेकर आ जाता है। वह दस्तावेजों के साथ आता है और मंजूरी न दिये जाने को चुनौती देने के लिए तुरंत अदालत पहुंच जाता है।’’
उन्होंने कहा कि अधिकारी मंजूरी देने या न देने में बहुत सावधानी बरतते हैं।
पीठ ने भूषण का प्रत्युत्तर भी सुना।
मेहता ने कहा, ‘‘संभवतः, वह (याचिकाकर्ता) अब आपसे कुछ दिशानिर्देश वगैरह तय करने का आग्रह करेंगे। कृपया ऐसा करने से बचें। इस विषय पर न्यायिक निर्णय और वैधानिक व्यवस्था मौजूद है।’’
भूषण ने कहा कि किसी शिकायत की प्रारंभिक जांच से ही पता चल जाएगा कि उसमें कोई तथ्य है या नहीं।
पीठ ने पूछा, ‘‘उन्हें (ईमानदार अधिकारियों को) इस तरह के उत्पीड़न का सामना क्यों करना पड़ रहा है?’’
इसने एक ऐसी स्थिति की ओर भी इशारा किया, जिसमें अधिकारियों द्वारा ईमानदारी से लिए गए फैसलों पर तुच्छ आरोप लगाए गए।
भूषण ने कहा कि प्रारंभिक जांच के स्तर पर कोई उत्पीड़न, कोई बलपूर्वक कार्रवाई, कोई गिरफ्तारी, कोई तलाशी या जब्ती नहीं हुई।
सुनवाई की शुरुआत में, मेहता ने कहा कि उन्होंने सीबीआई के निदेशक और संयुक्त निदेशक के साथ विस्तृत चर्चा की और जांच एजेंसी द्वारा मानव संसाधन के चयन से संबंधित एक संक्षिप्त नोट तैयार किया।
उन्होंने कहा कि बैंक, वित्त और अन्य विभागों सहित विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को प्रतिनियुक्ति के आधार पर अपनी विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए लिया गया।
पांच अगस्त को दलीलों पर सुनवाई करते हुए, पीठ ने अपने आधिकारिक कार्यों का निर्वहन करने वाले ईमानदार सरकारी कर्मचारियों को तुच्छ शिकायतों से बचाने के लिए संतुलन बनाने पर जोर दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने को कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों को बचाया न जाए।
भाषा सुभाष