भारत के तटीय जल परिवहन को सुगम बनाने के लिए ‘तटीय पोत परिवहन विधेयक, 2025’ को संसद की मंजूरी
मनीषा माधव
- 07 Aug 2025, 06:20 PM
- Updated: 06:20 PM
नयी दिल्ली, सात अगस्त (भाषा) भारत के तटीय जल परिवहन को प्रोत्साहित करने और माल परिवहन को सुगम बनाने के उद्देश्य से तैयार ‘तटीय पोत परिवहन विधेयक, 2025’ को बृहस्पतिवार को संसद की मंजूरी मिल गई।
राज्यसभा में यह विधेयक विपक्ष के हंगामे के बीच ध्वनिमत के जरिए पारित हुआ। विपक्षी सदस्य बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सदन में हंगामा कर रहे था।
यह विधेयक तीन अप्रैल, 2025 को लोकसभा में पारित किया गया था। इसका उद्देश्य भारत के विस्तृत और रणनीतिक तटीय क्षेत्र की पूरी क्षमता को उपयोग में लाना, तटीय व्यापार के लिए एक समर्पित कानूनी ढांचा उपलब्ध कराना और घरेलू भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।
पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने तटीय पोत परिवहन विधेयक 2025 को चर्चा करने एवं पारित करने के लिए पेश किया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यावासयिक जरूरतों को लेकर भारतीय नागरिकों के स्वामित्व वाले और उनके द्वारा संचालित भारत के ध्वज लगे जहाजों की तटीय व्यापार में सहभागिता को प्रोत्साहित करेगा।
उन्होंने कहा कि मसौदा कानून में तटीय पोत परिवहन के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के प्रावधान हैं, जो जलक्षेत्र में देश की सामरिक सैन्य योजनाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
कहा कि यह कानून भारतीय जहाजों के लिए अनुपालन बोझ को कम करेगा, जो ‘‘कारोबार की सुगमता’’ की भावना के अनुरूप है।
उन्होंने कहा ‘‘इसके साथ ही यह देश के लिए आपूर्ति श्रृंखला की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।’’
सोनोवाल ने कहा, ‘‘यह विधेयक भारत के तटीय क्षेत्र की पूरी क्षमता को खोलने के लिए मददगार होगा। तटीय माल ढुलाई को 2030 तक 230 मिलियन टन तक पहुंचाने के लक्ष्य को समर्थन देने के लिए हमें एक ऐसा ढांचा चाहिए जो न्यूनतम विनियम और अधिकतम अवसर प्रदान करे।’’
सोनोवाल ने बताया कि फिलहाल तटीय नौवहन का विनियमन ‘मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958’ के तहत होता है, लेकिन नया विधेयक आज के व्यावसायिक परिदृश्य और वैश्विक मानकों के अनुरूप एक समग्र और प्रगतिशील ढांचा प्रस्तुत करता है।
विधेयक पर संक्षिप्त बहस भी हुई, हालांकि सदन में विरोध और नारेबाजी जारी रही। बहस में वाईएसआरसीपी के गोल्ला बाबूराव, अन्नाद्रमुक के एम. थंबीदुरई, भाजपा की कल्पना सैनी, के रामभाई मोकरिया और दर्शना सिंह शिवसेना के मिलिंद देवरा, तेदेपा के मस्तान राव यादव और असम गण परिषद के बी. पी. बैश्य ने भाग लिया।
बहस के दौरान थंबीदुरई ने तमिल मछुआरों और कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा उठाया, जिस पर द्रमुक सदस्य तिरुचि शिवा ने विधेयक से असंबंधित विषय उठाने पर व्यवस्था का प्रश्न उठाया और मांग की कि इसे कार्यवाही से हटाया जाए।
पीठासीन अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि विधेयक से असंबंधित कोई भी बात रिकॉर्ड में नहीं आएगी।
विधेयक के मुख्य प्रावधानों के अनुसार, यह विधेयक तटीय नौवहन से संबंधित कानूनों को समेकित और संशोधित करता है।
इसका उद्देश्य तटीय व्यापार को बढ़ावा देना, घरेलू भागीदारी को प्रोत्साहित करना, और भारत को स्वदेशी स्वामित्व और संचालन वाले तटीय बेड़े से सुसज्जित करना है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और वाणिज्यिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
विदेशी पोतों को तटीय व्यापार में भाग लेने के लिए नौवहन महानिदेशक से लाइसेंस लेना होगा। इसके लिए भारतीय जहाज निर्माण और नाविकों के लिए रोजगार को समर्थन देने की शर्तें होंगी।
विधेयक के अंतर्गत एक राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय नौवहन रणनीतिक योजना बनाई जाएगी, जिसे हर दो साल में अद्यतन किया जाएगा। इसका उद्देश्य रूट प्लानिंग में सुधार, यातायात का पूर्वानुमान और तटीय नौवहन को अंतर्देशीय जलमार्गों से जोड़ना होगा।
विधेयक के कारणों एवं उद्देश्यों में बताया गया है कि इसका उद्देश्य तटीय नौवहन से संबंधित कानूनों का समेकन और संशोधन, तटीय व्यापार को बढ़ावा देना, घरेलू भागीदारी को प्रोत्साहित करना और यह सुनिश्चित करना है कि भारत के पास एक स्वदेशी तटीय पोत बेड़ा हो जो राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यापारिक जरूरतों को पूरा कर सके।
विधेयक के तहत ‘तटीय जल’ का अर्थ भारत के भूभागीय जल और उससे सटे समुद्री क्षेत्र से है।
भूभागीय जल तट से 12 समुद्री मील (12 नॉटिकल मील यानी करीब लगभग 22 किमी) तक फैला होता है, वहीं सटे समुद्री क्षेत्र तट से यह जल 200 समुद्री मील (200 नॉटिकल मील यानी लगभग 370 किमी) तक फैला होता है।
यह विधेयक भारत को एक मजबूत तटीय जल परिवहन प्रणाली के साथ सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
भाषा मनीषा