मुझे अपने हिंदुस्तान की कमी खलेगी: न्यायमूर्ति धूलिया ने विदाई संदेश में कहा
वैभव नेत्रपाल
- 08 Aug 2025, 02:24 PM
- Updated: 02:24 PM
नयी दिल्ली, आठ अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय के निवर्तमान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने शुक्रवार को कहा कि उन्हें देश भर के मुकदमों और वकीलों की दलील सुनने की आदत हो गई थी तथा ‘‘मुझे अपने हिंदुस्तान की कमी खलेगी।’’
नौ अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे न्यायमूर्ति धूलिया को औपचारिक पीठ के समक्ष हुई कार्यवाही के दौरान गर्मजोशी से और भावनात्मक विदाई दी गई। इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया भी शामिल थे।
आज सुबह का एक किस्सा सुनाते हुए न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, ‘‘हम नाश्ता कर रहे थे, मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा, ‘अब जब आप पद छोड़ रहे हैं, तो आपको सबसे ज्यादा कमी किस चीज की खलेगी?’ मैंने तुरंत उनसे कहा, मुझे सबसे ज्यादा कमी जिस चीज की खलेगी, वह है मेरा हिंदुस्तान।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वह मेरी बात समझ नहीं पाईं। शायद उन्होंने सोचा होगा कि मैं बे सिर पैर की बात कर रहा हूं। तो फिर हिंदुस्तान क्या है? और किसी के लिए भी हिंदुस्तान को समझना मुश्किल है। मेरा मतलब है, हिंदुस्तान आप (वकील) हैं... शायद यही इकलौती अदालत है जहां देश भर से मुकदमे आते हैं। देश के हर कोने से वकील यहां आते हैं। और यही बात मुझे सबसे ज्यादा खलेगी कि अब हर सुबह मेरे सामने यह हिंदुस्तान नहीं होगा।’’
प्रधान न्यायाधीश ने मई 2022 से शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत न्यायमूर्ति धूलिया की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘न्यायमूर्ति धूलिया ने देश के कुछ सबसे दूरस्थ और सबसे खूबसूरत हिस्सों में सेवा की। वह अपने साथ स्वतंत्रता सेनानियों और न्यायविदों की विरासत लेकर आए।’’
उन्होंने अपने व्यक्तिगत संबंधों पर बात की और बताया कि कैसे न्यायमूर्ति धूलिया उन्हें किताबें उपहार में देते थे।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘वह एक उत्साही पाठक, एक उत्साही गोल्फर और रंगमंच प्रेमी हैं। हम आपके योगदान के लिए आभारी हैं और 24 नवंबर के बाद दिल्ली में आपके साथ और समय बिताने के लिए उत्सुक हैं।’’
न्यायमूर्ति धूलिया ने अदालत से उन्हें मिली गहन समझ को बयां करने के लिए सिनेमा का एक उदाहरण दिया।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने न्यायाधीश की सराहना करते हुए कहा, ‘‘न्यायमूर्ति धूलिया ने अदालत में हमेशा हमारा साथ दिया। उन्होंने हर मामले में मानवीय पहलू देखा, और यह एक ऐसी बात है जिसे हम हमेशा याद रखेंगे।’’
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायाधीश की निष्पक्षता और बौद्धिक क्रियाकलापों की प्रशंसा की।
बार के अन्य सदस्यों ने वरिष्ठ वकीलों द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं को दोहराया।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा, ‘‘मैं आपके सामने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में पेश हुई थी, तब से आप एक दिन भी बड़े नहीं लगते।’’
दस अगस्त, 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति धूलिया के पिता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे, उनकी मां एक शिक्षाविद थीं और उनके दादा प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे।
उन्होंने देहरादून, इलाहाबाद और लखनऊ में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, 1981 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और आधुनिक इतिहास में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद 1986 में एलएलबी की डिग्री पूरी की।
न्यायमूर्ति धूलिया ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय से अपनी वकालत शुरू की, और बाद में 2000 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के गठन के बाद वहां चले गए, जहां वह वरिष्ठ अधिवक्ता के पद तक पहुंचे और अंततः 2008 में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने।
भाषा वैभव