दक्षिण कश्मीर में आरोपी को बरी करने के खिलाफ सरकार की अपील उच्च न्यायालय ने खारिज की
देवेंद्र प्रशांत
- 08 Aug 2025, 08:40 PM
- Updated: 08:40 PM
श्रीनगर, आठ अगस्त (भाषा) जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने दक्षिण कश्मीर में गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) से संबंधित एक मामले में मुकदमे का सामना कर रहे एक आरोपी के पक्ष में विशेष एनआईए अदालत द्वारा पारित बरी करने संबंधी आदेश के खिलाफ सरकार की अपील को खारिज कर दिया है।
अनंतनाग की विशेष एनआईए अदालत ने पिछले साल 20 फरवरी को श्रीगुफवारा के एक गांव के गुलाम मोहम्मद लोन को बरी कर दिया था। उनके खिलाफ आठ सितंबर, 2012 को यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था।
यह मामला प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन द्वारा पोस्टर चिपकाने की जांच के बाद दर्ज किया गया था, जिसमें निर्वाचित पंचों और सरपंचों को इस्तीफा देने या गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई थी।
बरी किये जाने के खिलाफ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की अपील पर सुनवाई करते हुए, उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि किसी कृत्य को ‘‘गैरकानूनी गतिविधि’’ कहलाने के लिए, यह ऐसा होना चाहिए जिसका उद्देश्य भारत के क्षेत्र के किसी हिस्से का अधिग्रहण या संघ से भारत के क्षेत्र के किसी हिस्से का अलगाव लाने के किसी दावे का समर्थन करना हो या जो किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को ऐसा अलगाव लाने के लिए उकसाता हो।
न्यायमूर्ति संजय परिहार और न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने 31 जुलाई को पारित अपने आठ पृष्ठों के आदेश में कहा, ‘‘ऐसा कृत्य या कार्रवाई ‘गैरकानूनी गतिविधि’ के अंतर्गत भी आ सकती है, जैसे कि वह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को नकारती करती हो, उस पर प्रश्न उठाती हो, उसे बाधित करती हो या बाधित करने का इरादा रखती हो या जो भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करती हो या पैदा करने का इरादा रखती हो।’’
आदेश में कहा गया है कि आपत्तिजनक पोस्टरों पर लिखी बातें केवल निर्वाचित पंचों को डराने के लिए थीं और धमकी दी गई थी कि अगर वे अपने पदों से इस्तीफा नहीं देंगे तो उन्हें मार दिया जाएगा।
‘‘गैरकानूनी गतिविधियों’’ शब्द की स्पष्ट परिभाषा के अनुसार, अदालत ने कहा कि अभियुक्त द्वारा किया गया कृत्य अधिनियम की धारा 2(ओ) के तहत ‘‘गैरकानूनी गतिविधि’’ शब्द के दायरे में नहीं आता है।
अदालत ने कहा, ‘‘उपरोक्त कारणों से, हमें इस अपील में कोई दम नजर नहीं आता और तदनुसार, इसे खारिज किया जाता है।’’
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