लखनऊ के जीपीओ और छेदीलाल धर्मशाला का ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ से है गहरा जुड़ाव
संतोष
- 08 Aug 2025, 10:28 PM
- Updated: 10:28 PM
(अरुणव सिन्हा)
लखनऊ, आठ अगस्त (भाषा) भारत की आजादी की लड़ाई में 100 साल पुराने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज इलाके में स्थित जनरल पोस्ट ऑफिस (जीपीओ) और जीपीओ से करीब ढाई किलोमीटर की दूरी पर भीड़-भाड़ वाले इलाके अमीनाबाद में स्थित छेदीलाल धर्मशाला का एक गहरा जुड़ाव है।
लखनऊ जिले के काकोरी में नौ अगस्त 1925 को हुए ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ ने अंग्रेजों को झकझोर दिया क्योंकि यह घटनाक्रम उनके निरंकुश शासन के खिलाफ बढ़ते आक्रोश का प्रतीक था।
अमीनाबाद स्थित छेदीलाल धर्मशाला ने ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ से पहले लखनऊ में एकत्रित स्वतंत्रता सेनानियों को आश्रय प्रदान किया था, वहीं जीपीओ (जिसे पहले रिंग थिएटर के नाम से जाना जाता था) में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गिरफ्तारी के बाद उनका मुकदमा चलाया गया।
‘पीटीआई-भाषा’ ने शुक्रवार को ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ की एक शताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रमों के समापन पर इन दोनों स्थानों का दौरा किया और पाया कि अधिकांश लोग इनके ऐतिहासिक महत्व से अनभिज्ञ थे।
स्नातक अंतिम वर्ष के छात्र मोहित कुमार ने कहा, ‘‘मैं लगभग हर दिन अपनी सैर के लिए यहां आता हूं, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि इस जगह का स्वतंत्रता संग्राम से इतना गहरा संबंध है।’’
जीपीओ में चलाये गये मुकदमे के बाद काकोरी ट्रेन एक्शन के नायक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफाक उल्ला खान, रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को 1927 में इस घटना में शामिल होने के आरोप में अंग्रेजों ने अलग-अलग जेलों में फांसी पर लटका दिया था।
रामकृष्ण खत्री (जो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे) के पोते रोहित खत्री ने स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े स्मारकों और इमारतों के इतिहास और महत्व के बारे में युवाओं को अधिक जागरूक बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
रोहित खत्री ने कहा, ‘‘युवाओं को उस महान संघर्ष और वीरतापूर्ण बलिदान के बारे में जानना चाहिए जिससे हमें आजादी मिली। लखनऊ के अमीनाबाद इलाके में ऐतिहासिक झंडेवालान पार्क के पास छेदीलाल धर्मशाला स्थित है, जहां क्रांतिकारी ट्रेन से ले जाए जा रहे ब्रिटिश खजाने की साहसिक लूट से पहले रुके थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि धर्मशाला का एक छोटा सा हिस्सा लेकर वहां एक संग्रहालय बनाया जाना चाहिए। इससे यह जानकारी फैलाने में मदद मिलेगी कि ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ में शामिल कुछ क्रांतिकारी यहां रुके थे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि युवा गौरवमयी इतिहास से परिचित हों।’’
खत्री ने आगे कहा कि काकोरी रेल कार्रवाई स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी, क्योंकि इसने युवाओं की मानसिकता बदल दी।
उन्होंने कहा कि इस घटना ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा और गति दी। काकोरी रेल कार्रवाई के बाद, स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई जिसने ब्रिटिश सरकार को सीधी चुनौती दी।
खत्री ने कहा, ‘‘मेरे पिता (उदय खत्री) मुझे काकोरी के वीरों के पराक्रम के बारे में बताया करते थे। मैं उन कहानियों का आनंद लेते हुए बड़ा हुआ हूं और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे युवा अपने अतीत से जुड़े रहें।’’
‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ की योजना कितनी गोपनीय थी, इसे याद करते हुए उन्होंने कहा कि ज्यादातर क्रांतिकारियों ने छद्म नामों से धर्मशाला में पंजीकरण कराया था।
स्वतंत्रता सेनानी के पौत्र ने कहा, ‘‘कल्पना कीजिए कि कुछ समर्पित युवा शक्तिशाली अंग्रेजों से लोहा ले रहे हैं। बिना किसी व्यवधान के उन्हें अपनी योजना की पूरी गोपनीयता सुनिश्चित करनी थी। गोपनीयता इतनी ज्यादा थी कि कई लोग फर्जी नाम और पते के साथ पंजीकरण करा रहे थे। आखिरी समय तक, उनमें से ज्यादातर एक ही जगह पर रहने के बावजूद, इस बात से अनजान थे कि वे सभी एक ही योजना पर काम कर रहे हैं।’’
छेदीलाल धर्मशाला के प्रबंधक रामनाथ गुप्ता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा,‘‘रामप्रसाद बिस्मिल और कुछ अन्य लोग यहीं रुके थे। बिस्मिल कमरा नंबर 211 में रुके थे, जिसका नवीनीकरण होने के बाद कमरा नंबर 227 हो गया। दुर्भाग्य से हमारे पास अब कोई दस्तावेज नहीं हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले साल, ट्रस्ट की एक बैठक में धर्मशाला में काकोरी के शहीदों की तस्वीरें लगाने का प्रस्ताव पारित किया गया था, लेकिन यह काम अभी तक नहीं हो सका है।’’
इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के क्रांतिकारी वास्तव में धर्मशाला में रुके थे या नहीं, इस पर मिली-जुली राय है। भट्ट ने कहा कि रोशनउद्दौला कचहरी में शुरू हुआ मुकदमा तब जीपीओ में स्थानांतरित कर दिया गया जब अंग्रेजों ने पाया कि वे मुकदमे में शामिल क्रांतिकारियों के समर्थन में आने वाली भीड़ को नियंत्रित करने में असमर्थ थे।
भट्ट ने बताया कि इस मामले की सुनवाई 1926 में शुरू हुई थी और बाद में इसे जीपीओ में स्थानांतरित कर दिया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘वहां मुकदमे के लिए एक अस्थायी अदालत स्थापित की गई थी।’’ उन्होंने आगे बताया कि ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ मामले में 42 गिरफ्तारियां हुई थीं।
भट्ट ने कहा कि राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और अशफाक उल्ला खान को मौत की सजा सुनाने वाले न्यायाधीश आर्चीबाल्ड हैमिल्टन को ‘फांसी देने वाले न्यायाधीश’ के रूप में जाना जाता था।
नौ अगस्त, 1925 को काकोरी में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने देशवासियों के खून-पसीने से कमाए गए उस खजाने को अपने कब्जे में ले लिया था जिसे ट्रेन में रखा गया था और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार इसे ब्रिटेन भेजने के फिराक में थी।
वर्ष 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस क्रांतिकारी घटना का नाम बदलकर ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ कर दिया। पहले आमतौर पर इस घटना को ‘काकोरी ट्रेन डकैती’ या ‘काकोरी ट्रेन षड्यंत्र’ के रूप में वर्णित किया जाता था।
भाषा अरुणव मनीष आनन्द