लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए दस बार दिल्ली मार्च करना पड़े तो करेंगे : सोनम वांगचुक
धीरज रंजन
- 08 Aug 2025, 10:40 PM
- Updated: 10:40 PM
नयी दिल्ली, आठ अगस्त (भाषा) जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने लद्दाख को राज्य का दर्जा और इलाके को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को दोहराते हुए शुक्रवार को कहा कि वे अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं, और यदि आवश्यक हो तो फिर से दिल्ली तक मार्च भी कर सकते हैं।
वांगचुक अपनी मांगों को लेकर शनिवार से कारगिल में तीन दिवसीय अनशन की शुरुआत करेंगे।
वांगचुक ने शनिवार को कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के बैनर तले अनशन शुरू करने से पहले ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये साक्षात्कार में कहा कि जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा देने की बात की जा रही है, लेकिन लद्दाख को नजरअंदाज किया गया है।
मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित वांगचुक ने अफसोस जताया कि लद्दाख समूहों की गृह मंत्रालय के साथ बातचीत फिर से अटक गई है, क्योंकि अगली बैठक की कोई तारीख घोषित नहीं की गई है।
लद्दाख समूह में केडीए और लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के सदस्य शामिल हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह दुख के साथ कह रहा हूं। वार्ता में बहुत देरी हुई है। पिछले आठ महीनों में केवल दो बार बातचीत हुई है।’’
वांगचुक ने कहा कि मुख्य मुद्दों - छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा - पर चर्चा अब तक शुरू भी नहीं हुई है।
जलवायु कार्यकर्ता ने कहा कि देरी के कारण लद्दाख में लोगों में असंतोष फैल रहा है और चूंकि दलाई लामा इस समय लेह में हैं, इसलिए यह निर्णय लिया गया कि विरोध प्रदर्शन कारगिल में किया जाएगा।
उन्होंने कहा, ‘‘नेताओं ने कहा कि इस समय लद्दाख में पूज्य दलाई लामा हैं। इसलिए, जब तक वे मौजूद हैं, हमें ऐसा विरोध प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। अस्थिरता नहीं होनी चाहिए। इसलिए, कारगिल के नेता यह मुद्दा उठा रहे हैं।’’
वांगचुक ने कहा कि उन्हें अब भी उम्मीद है कि सरकार उनकी पीड़ा को समझेगी और उनकी मांगों पर ध्यान देगी। उन्होंने साथ ही कहा कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वे कई बार दिल्ली तक मार्च करने के लिए तैयार हैं।
वांगचुक ने कहा, ‘‘हमारा दोबारा दिल्ली आने का कोई इरादा नहीं है... लेकिन अगर यह जारी रहा, अगर लोकतंत्र नहीं रहा, तो हमें ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पांच-छह हफ्तों की लंबी भूख हड़ताल हो सकती है... भले ही हमें लेह से दिल्ली दस बार आना पड़े, हम ऐसा करेंगे। दुनिया को देखना चाहिए कि गांधी के रास्ते पर चलना कितना मुश्किल है।’’
वांगचुक ने कहा, ‘‘इसलिए यह संभव है कि इस बार हम सितंबर में आएं और दो अक्टूबर को फिर से दिल्ली पहुंचें...।’’
उन्होंने जोर देकर कहा कि छठी अनुसूची पर्वतीय परिषद के पिछले चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का चुनावी वादा था और इसे पूरा किया जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर बात हो रही है, लेकिन लद्दाख को छोड़ दिया गया है।
वांगचुक ने कहा, ‘‘राज्य का दर्जा लोकतंत्र का आधार है... जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अलग हुए थे, तब दोनों लोकतांत्रिक राज्य थे, इसलिए दोनों को राज्य का दर्जा मिलना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लद्दाख के लोगों का सीमावर्ती क्षेत्र में रहना कठिन है, फिर भी वे भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं... ऐसा कोई युद्ध नहीं है जिसमें लद्दाख के लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई हो।’’
वांगचुक ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह बहुत ही अदूरदर्शितापूर्ण है। कुछ नेता संकीर्ण दृष्टिकोण वाली कुछ कंपनियों के लाभ के लिए ऐसा कर रहे हैं। लेकिन इससे देश को बहुत नुकसान होगा, जिसका दुर्भाग्य से हमारी सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।’’
छठी अनुसूची के संदर्भ में उन्होंने कहा कि लद्दाख की 95 प्रतिशत से अधिक आबादी जनजातियों की है।
उन्होंने कहा कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद वहां बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि भारत-चीन सीमा के दूसरी ओर भी विकास हुआ है, लेकिन स्वतंत्रता के बिना विकास निरर्थक है।
वांगचुक ने कहा, ‘‘लोग कहते हैं कि काफी प्रगति और विकास हुआ है। प्रगति से मेरा मतलब है कि सड़कें बनी हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दूसरी ओर ये भी कहते हैं कि सिर्फ पैसे और विकास से लोग कैसे खुश रह सकते हैं? क्या चीन में विकास कम है? वहां भी काफी विकास हुआ है। लेकिन क्या तिब्बत के लोग खुश हैं? नहीं...।’’
वांगचुक ने कहा, ‘‘यदि लद्दाख के लोगों को बाहर रखा गया और लद्दाख का विकास किया गया तो यह सोने का पिंजरा बन जाएगा।’
भाषा धीरज