ओबीसी प्रतिनिधित्व में अंतर, फीस राहत और आंकड़ों की पारदर्शिता को लेकर संसदीय समिति ने सरकार को घेरा
सुरेश सुरेश देवेंद्र
- 08 Aug 2025, 10:43 PM
- Updated: 10:43 PM
नयी दिल्ली, आठ अगस्त (भाषा) अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कल्याण से जुड़े विषयों पर विचार कर रही संसद की एक समिति ने शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में पेश अपनी रिपोर्ट में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उसने ओबीसी के प्रतिनिधित्व को मजबूत करने, आर्थिक रूप से कमजोर उम्मीदवारों पर बोझ कम करने और आंकड़ों की पारदर्शिता बढ़ाने से जुड़ी अहम सिफारिशों पर ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
समिति ने अपनी नौवीं रिपोर्ट में कहा कि सरकार ने भले ही पिछली कई सिफारिशों को स्वीकार कर लिया हो, लेकिन तीन प्रमुख सुझावों पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं की गई है, जिनमें हर चयन और पदोन्नति बोर्ड में अनिवार्य रूप से एक ओबीसी सदस्य की नियुक्ति, ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आवेदन और प्रवेश परीक्षाओं में पूर्ण शुल्क छूट और ओबीसी प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़ों को सार्वजनिक रूप से साझा करना शामिल हैं।
चयन समितियों में ओबीसी सदस्य की अनिवार्यता को लेकर समिति ने डीओपीटी के “ढीले और अस्पष्ट” जवाब पर असंतोष जताया। समिति ने कहा कि यह प्रावधान 10 से कम पदों पर भर्ती होने की स्थिति में भी लागू होना चाहिए।
समिति ने मंत्रालय की इस बात के लिए आलोचना की कि उसने इस बदलाव को लागू करने के लिए कोई ठोस उपाय या समयसीमा नहीं बताई। इसने कहा कि सिर्फ भर्तियों के आंकड़े पेश करना और बैकलॉग खत्म करने की बात करना समिति की सिफारिशों को पूरा करना नहीं माना जा सकता।
समिति ने एक बार फिर ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आवेदन शुल्क पूरी तरह माफ करने की मांग दोहराई और कहा कि बड़ी संख्या में ओबीसी अभ्यर्थी आर्थिक रूप से कमजोर तबकों से आते हैं और उन्हें शिक्षा या सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने में आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता है।
डीओपीटी ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में शुल्क पहले ही बहुत कम है, लेकिन समिति ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों की प्रवेश परीक्षा फीस पर मंत्रालय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और इस मुद्दे पर अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर कार्रवाई करने की जरूरत बताई।
आंकड़ों की पारदर्शिता के मुद्दे पर समिति ने डीओपीटी की वार्षिक रिपोर्ट में ओबीसी प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़े शामिल करने का स्वागत किया, लेकिन डेटा एकत्र करने में देरी पर चिंता जताई। समिति ने सुझाव दिया कि 'आरक्षित श्रेणियों के पदों एवं सेवाओं में प्रतिनिधित्व' पोर्टल को सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाया जाए।
रिपोर्ट में उन क्षेत्रों की भी समीक्षा की गई जहां सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं, जिनमें फर्जी जाति प्रमाण पत्रों पर रोक लगाने के उपाय, आरक्षण नीति के पालन के लिए संपर्क अधिकारियों को प्रशिक्षण देना और पिछले दशक में ओबीसी की सीधी भर्ती में 27 प्रतिशत से अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से जुड़ी निगरानी प्रणाली शामिल हैं।
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