पंजाब भूमि समेकन नीति जल्दबाजी में अधिसूचित की गई प्रतीत होती है: उच्च न्यायालय
धीरज पवनेश
- 09 Aug 2025, 10:17 PM
- Updated: 10:17 PM
चंडीगड़, नौ अगस्त (भाषा)पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पंजाब की भूमि समेकन नीति जल्दबाजी में अधिसूचित की गई प्रतीत होती है। उसने कहा कि नीति की अधिसूचना जारी करने से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन सहित अन्य चिंताओं का समाधान किया जाना चाहिए था।
न्यायमूर्ति अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और न्यायमूर्ति दीपक मनचंदा की पीठ ने बृहस्पतिवार को ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) सरकार की भूमि समेकन नीति के क्रियान्वयन पर चार सप्ताह के लिए अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया था।
अदालत का यह निर्देश गुरदीप सिंह गिल द्वारा दायर याचिका पर आया था, जिसमें पंजाब सरकार की भूमि समेकन नीति 2025 को चुनौती दी गई थी। अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 10 सितंबर तय की है।
अदालत के फैसले की विस्तृत प्रति शनिवार को जारी की गई। इसमें कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 बहु-फसलीय भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाता है और ऐसा अधिग्रहण केवल असाधारण परिस्थितियों में ही स्वीकार्य है।
पीठ ने कहा, ‘‘हम यह जोड़ना चाहते हैं कि जिस भूमि का अधिग्रहण किया जाना है, वह पंजाब राज्य की सबसे उपजाऊ भूमि में से एक है और यह संभव है कि इससे सामाजिक परिवेश पर प्रभाव पड़े।’’
लुधियाना के याचिकाकर्ता गिल ने राज्य सरकार की 24 जून की अधिसूचना और भूमि समेकन नीति 2025 को रद्द करने के निर्देश देने का अनुरोध किया। उन्होंने दलील दी कि यह अधिकार क्षेत्र से बाहर है और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए एक ‘‘छद्म कानून’’ है।
‘छद्म विधान’ से तात्पर्य ऐसे कानून से है जो संविधान के नियमों का उल्लंघन करता हो या अपनी सीमा से बाहर जाकर बनाया गया हो। यह कानून के वास्तविक उद्देश्य को छिपाकर संवैधानिक सीमाओं को दरकिनार करने का एक तरीका है।
अदालत ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया हमारा यह भी मानना है कि नीति को जल्दबाजी में अधिसूचित किया गया है और सामाजिक प्रभाव आकलन, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, समयसीमा और शिकायत निवारण तंत्र सहित सभी चिंताओं को नीति की अधिसूचना से पहले ही इसमें शामिल किया जाना चाहिए था।’’
पीठ ने कहा कि इस स्तर पर पंजाब की ओर से उपस्थित महाधिवक्ता और वरिष्ठ वकील ने कहा कि अदालत की सभी चिंताओं को सुनवाई की अगली तारीख तक संबोधित किया जाएगा और इस संबंध में कुछ समय चाहिए।
अदालत के आदेश में कहा गया है, ‘‘अंतरिम उपाय के रूप में, किसी भी अधिकार का सृजन न हो, इसके लिए 14 मई और 6 जून को अधिसूचित तथा बाद में 25 जुलाई को संशोधित भूमि समेकन नीति, 2025 पर रोक रहेगी।’’
आदेश में कहा गया है,‘‘सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, इस न्यायालय की राय है कि राज्य सरकार अपने प्रस्तावित विकास कार्यों के लिए समूचे पंजाब राज्य में हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि को बिना किसी सामाजिक प्रभाव आकलन या पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन के अपने अधीन लेने का प्रस्ताव कर रही है, हालांकि यह रुख अपनाया गया है कि आकलन बाद में किया जाएगा, जब उनके पास इस योजना को चुनने वाले भूमि मालिकों की संख्या के बारे में निश्चित जानकारी होगी।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने कई मामलों में कहा है कि शहरी विकास की अनुमति देने से पहले राज्य को पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि यह भी स्पष्ट है कि न तो कोई समय-सीमा निर्धारित की गई है और न ही कोई तंत्र प्रदान किया गया है जो प्रभावित व्यक्तियों की शिकायतों का समाधान करेगा।
अदालत ने न्यायमित्र द्वारा प्रदान की गई जानकारी का हवाला देते हुए कहा कि उसके सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें मालिकों ने अपनी जमीन पहले की भूमि समेकन नीति के तहत राज्य विकास प्राधिकरण को सौंप दी है, लेकिन विकसित भूखंडों का आवंटन 10 साल बाद भी नहीं किया गया है।
भाषा धीरज