देश में 1,787 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों में 1,051 ही चालू हालत में: संसदीय समिति
सुभाष अविनाश
- 11 Aug 2025, 09:20 PM
- Updated: 09:20 PM
नयी दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा) संसद की एक समिति ने इस बात को लेकर चिंता जताई है कि देश में 1,787 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों (पीडब्लूएमयू) में से केवल 1,051 ही चालू हालत में हैं तथा हरियाणा, असम, गोवा और राजस्थान जैसे राज्यों और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में इनका प्रदर्शन विशेष रूप से खराब है।
सोमवार को संसद में पेश की गई रिपोर्ट में राष्ट्रव्यापी अपशिष्ट मात्रा निर्धारण सर्वेक्षण की योजनाओं का स्वागत किया गया, जो ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत में अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण है। हालांकि, इस बात पर जोर दिया गया कि स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी) के अगले चरण को ध्यान में रखते हुए इसे प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाए।
जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग पर जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पीडब्लूएम पहल के अंतर्गत आने वाले ब्लॉक की संख्या बढ़कर 1,988 हो गई है और 66 प्रतिशत इकाइयां और सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएं कार्यरत हैं, फिर भी कई राज्यों में प्रगति असमान और अपर्याप्त है।
समिति ने चेतावनी दी कि प्लास्टिक कचरा पारिस्थितिकी तंत्र, आजीविका और वन्यजीवों के लिए खतरा है। इसके साथ ही उसने समीक्षा बैठकों और नीतिगत घोषणाओं से परे ‘‘इस खतरे से निपटने के लिए ठोस प्रयास’’ करने का आह्वान किया।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘हरियाणा राज्य में 143 ब्लॉक के मुकाबले केवल 8 पीडब्लूएमयू थे और इन 8 में से एक भी पीडब्लूएमयू काम नहीं कर रहा था।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘असम, गोवा, लद्दाख, राजस्थान, त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़, गुजरात और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में भी लगभग यही स्थिति है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘तमिलनाडु राज्य ने पीडब्लूएमयू कवरेज और कार्यक्षमता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है।’’
समिति ने पेयजल सुरक्षा पर भी चिंता व्यक्त की और बताया कि पंजाब के नौ जिलों की 32 बस्तियां यूरेनियम संदूषण से प्रभावित हैं, जिनमें से केवल 23 में ही अल्पकालिक शोधन उपाय किए जा रहे हैं।
इसने इसी तरह के संदूषण का सामना कर रहे अन्य राज्यों की पहचान न करने के लिए मंत्रालय की आलोचना की और नीतिगत कार्रवाई के मार्गदर्शन के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण पर ज़ोर दिया।
जल गुणवत्ता निगरानी पर, समिति ने पाया कि देश भर में 2,183 प्रयोगशालाओं में से केवल 1,620 ही मान्यता प्राप्त हैं, कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला नहीं है। इसने सिफारिश की कि जून 2025 तक प्रत्येक जिले में कम से कम एक मान्यता प्राप्त इकाई हो।
रिपोर्ट में राजस्थान, ओडिशा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और मेघालय जैसे राज्यों में स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों में नल का पानी उपलब्ध कराने में हो रही देरी की ओर भी ध्यान दिलाया गया और सभी बच्चों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए एक समयबद्ध योजना बनाने का आग्रह किया गया।
रिपोर्ट में बजट योजना की भी आलोचना की गई। समिति ने कहा कि जल जीवन मिशन के लिए आवंटन में बार-बार कटौती की जा रही है।
भाषा सुभाष