खिलाड़ी से लेकर चिकित्सक तक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे डॉ. वेस पेस
पंत
- 14 Aug 2025, 01:27 PM
- Updated: 01:27 PM
नयी दिल्ली, 14 अगस्त (भाषा) हॉकी के महान खिलाड़ी डॉ. वेस पेस बहुमुखी प्रतिभा के धनी से जिन्होंने न केवल एक खिलाड़ी बल्कि चिकित्सक के रूप में भी विशेष छाप छोड़ी।
वेस पेस ने आज सुबह कोलकाता में अंतिम सांस ली। वह पार्किंसन रोग सहित बढ़ती उम्र से जुड़ी कई बीमारियों से जूझ रहे थे। वह 80 वर्ष के थे।
जो लोग उन्हें करीब से जानते थे, उनके लिए पेस एक सौम्य स्वभाव वाले और अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति थे, जिन्होंने हॉकी के मैदान पर ओलंपिक पदक (1972 म्यूनिख खेलों में कांस्य) जीतकर देश को गौरवान्वित किया और बाद में अपनी खेल चिकित्सा विशेषज्ञता से हॉकी, क्रिकेट, टेनिस और यहां तक कि फुटबॉल की भी मदद की।
उनके पुत्र और दिग्गज टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस दुनिया को यह बताने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे कि उनके पिता उनके के लिए कितने मायने रखते हैं। पेस सीनियर लंबे समय तक उनके मैनेजर भी रहे और एक दशक तक भारतीय डेविस कप टीम के डॉक्टर भी रहे। पिता-पुत्र की यह जोड़ी भारत में सबसे प्रसिद्ध खेल जोड़ियों में से एक थी।
पूर्व खिलाड़ी और 1972 के ओलंपिक खेलों के दौरान पेस के साथी खिलाड़ी अजीत पाल सिंह ने कहा, ‘‘वह खेल चिकित्सा के प्रति इतने समर्पित थे कि उन्होंने अपने हॉकी करियर के बाद भी पूरी तरह से इसी पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अपने खेल चिकित्सा करियर में कई भारतीय खिलाड़ियों की मदद की थी।‘‘
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान वीरेन रासकिन्हा ने कहा, ‘‘अब डॉक्टर (डॉ. पेस) जैसे लोग नहीं मिलते। इतने ज्ञानी, इतने स्नेही, इतने दयालु, इतने विनम्र, इतने खुशमिजाज़। हमेशा मदद को तैयार। हमेशा मज़ाक करते रहते। मैं आपको हमेशा याद करूंगा डॉक्टर। आप सबसे बेहतरीन इंसान थे।’’
हॉकी के अलावा पेस ने डिवीजन स्तर पर फुटबॉल, क्रिकेट और रग्बी में भी भाग लिया और 1996 से 2002 तक भारतीय रग्बी यूनियन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने इन सभी खेलों में अपना योगदान दिया।
पेस कई वर्षों तक भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के डोपिंग रोधी कार्यक्रम का हिस्सा रहे। इसके अलावा उन्होंने एशियाई क्रिकेट परिषद और भारतीय डेविस कप टीम के साथ भी काम किया।
उन्होंने ईस्ट बंगाल के तत्कालीन कोच सुभाष भौमिक के आग्रह पर ईस्ट बंगाल फुटबॉल टीम और पूर्व भारतीय कप्तान बाईचुंग भूटिया जैसे खिलाड़ियों के साथ भी काम किया।
पेस कलकत्ता क्रिकेट और फुटबॉल क्लब के अध्यक्ष भी रहे। उनका विवाह पूर्व बास्केटबॉल खिलाड़ी जेनिफर पेस से हुआ था।
अजीत पाल ने कहा, ‘‘यह भारतीय खेलों, खासकर हॉकी के लिए बहुत दुखद दिन है। पेस एक उच्च शिक्षित और मृदुभाषी व्यक्ति थे। वह खेल चिकित्सा के बारे में मार्गदर्शन देकर हमारी मदद करते थे।’’
पेस ने 1964-65 में कोलकाता के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने लखनऊ के ला मार्टिनियर कॉलेज में भी पढ़ाई की।
भारतीय पुरुष हॉकी टीम के पूर्व कप्तान बी पी गोविंदा ने उन्हें एक बेहद प्रतिभाशाली और जानकार व्यक्ति के रूप में याद किया और कहा कि अगर महासंघ के भीतर राजनीति न होती तो वह 1968 के ओलंपिक का हिस्सा हो सकते थे।
गोविंदा ने कहा, ‘‘वह खेल और खेल चिकित्सा दोनों में बेहद प्रतिभाशाली थे। खेल चिकित्सा उनका जुनून था। हम 1972 के ओलंपिक में साथ खेले थे, लेकिन मुझे लगता है कि अगर अंदरूनी राजनीति न होती तो उन्हें 1968 के ओलंपिक टीम में भी होना चाहिए था। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि वह बहुत मृदुभाषी और सच्चे सज्जन व्यक्ति थे। उन्होंने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की।’’
उनके एक अन्य साथी हरबिंदर सिंह ने कहा, ‘‘वह एक सच्चे सज्जन व्यक्ति थे। यह भारतीय हॉकी के लिए एक दुखद दिन है। मैंने घरेलू स्तर पर उनके खिलाफ काफी हॉकी खेली है। वह बंगाल और मैं रेलवे की तरफ से खेलता था।’’
भाषा