सरकार के बेदखली अभियान के बाद ऊपरी असम के जातीय समूहों ने अवैध रूप से बसने वालों को चेतावनी दी
यासिर मनीषा
- 14 Aug 2025, 02:05 PM
- Updated: 02:05 PM
डिब्रूगढ़, 14 अगस्त (भाषा) असम में विभिन्न वनों से कथित अतिक्रमणों को हटाने की राज्य सरकार की पहल का समर्थन करते हुए, कई जातीय संगठनों ने राज्य के विभिन्न जिलों में ‘मिया खेड़ा आंदोलन’ (मियाओं को बाहर निकालने के लिए आंदोलन) शुरू किया है।
हाल के दिनों में ऊपरी असम के जिलों में ‘मिया खेड़ा आंदोलन’ तेज हो गया है और इस आंदोलन के तहत स्थानीय समूह ‘मिया’ बांशिदों पर यहां के लोगों की पैतृक भूमि और जंगलों पर अतिक्रमण किए जाने का आरोप लगा रहे हैं।
स्थानीय नेता, छात्र नेता और सामुदायिक कार्यकर्ता इन आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका तर्क है कि ‘मिया’ मुसलमानों की लगातार मौजूदगी असमिया पहचान के मूल तत्व के लिए खतरा है।
‘मिया’ मूल रूप से असम में बंगाली भाषी मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक अपमानजनक शब्द है और गैर-बांग्ला भाषी लोग आमतौर पर उन्हें बांग्लादेशी अप्रवासी मानते हैं। हाल के वर्षों में समुदाय के कार्यकर्ताओं ने विरोध के संकेत के रूप में इस शब्द का इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
‘ऑल ताई अहोम स्टूडेंट्स यूनियन’ (एटीएएसयू) के अध्यक्ष मिलन बुरागोहेन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘अवैध बांग्लादेशी मुसलमानों को असम से निर्वासित किया जाना चाहिए। इसलिए, असम सरकार को उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। मिया मुसलमान ऊपरी असम में जनसांख्यिकी परिवर्तन शुरू कर रहे हैं, जैसा कि उन्होंने निचले असम में पहले ही कर दिया है।’’
बुरागोहेन ने कहा, ‘‘वे विभिन्न हिस्सों के ग्रामीण इलाकों में अवैध रूप से बसकर और व्यापार करके पूरे असम को मुस्लिम राज्य बनाने की योजना बना रहे हैं। इसलिए, एटीएएसयू ने मिया लोगों को तुरंत ऊपरी असम छोड़ने का आदेश दिया है।’’
बुरागोहेन ने कहा, ‘‘हमने सभी पक्षों और कंपनियों को चेतावनी दी है कि वे विभिन्न व्यापारिक प्रतिष्ठानों, ईंट भट्टों और अन्य इकाइयों में मिया लोगों को कर्मचारी और दैनिक मजदूर के रूप में काम पर न रखें।’’
कुछ दिन पहले, एटीएएसयू ने डिब्रूगढ़ में एक रैली आयोजित की थी जिसमें ‘मिया’ लोगों से ऊपरी असम छोड़ने का आग्रह किया गया था।
असम सरकार ने पिछले 15 दिनों में गोलाघाट जिले में रेंगमा वन क्षेत्र, नंबोर साउथ वन क्षेत्र और दोयांग वन क्षेत्र तथा लखीमपुर में विलेज ग्रेजिंग वन से कुल मिलाकर 11,500 बीघा (1,500 हेक्टेयर से अधिक) भूमि से कथित अतिक्रमण हटा दिया है।
इन अभियानों से 2,200 से अधिक परिवार विस्थापित हुए हैं, जिनमें से अधिकतर बांग्ला भाषी मुस्लिम समुदाय से हैं।
ऊपरी असम स्थित एक अन्य समूह, बीर लचित सेना ने पिछले कुछ दिनों में मुख्य रूप से शिवसागर, जोरहाट और तिनसुकिया जिलों में कई बार मार्च निकाले तथा ‘संदिग्ध’ नागरिकों से उन क्षेत्रों को तुरंत छोड़ने को कहा।
बीर लचित सेना के अध्यक्ष श्रींखल चालिहा ने कहा, ‘‘यह हिंदू-मुस्लिम मुद्दा नहीं है। यह स्वदेशी पहचान की रक्षा की लड़ाई है। हम तब तक आंदोलन जारी रखने का संकल्प लेते हैं जब तक अवैध प्रवासियों को बाहर नहीं निकाला जाता और उनका समर्थन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती।’’
भाषा यासिर