आवारा कुत्तों के मुद्दे को सुलझाने की जरूरत है, विवाद उत्पन्न करने की नहीं: दिल्ली सरकार
सुरभि पवनेश
- 14 Aug 2025, 05:09 PM
- Updated: 05:09 PM
नयी दिल्ली, 14 अगस्त (भाषा) दिल्ली सरकार ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान आवश्यक है और इस पर विवाद उत्पन्न करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कुत्तों के काटने से बच्चों की ‘रेबीज’ से मौत हो रही है।
दिल्ली सरकार ने जहां अपने तर्कों के समर्थन में कुत्तों के काटने के आंकड़ों का हवाला दिया, वहीं उच्चतम न्यायालय के 11 अगस्त के आदेश पर स्थगन की मांग करने वालों ने कहा कि सरकार को रेबीज से मौतों को लेकर "भयावह स्थिति" पैदा करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
इसके बाद न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने दिल्ली-एनसीआर के अधिकारियों से सभी आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। अधिकारियों को शुरुआत में 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाने को कहा गया।
यह मामला बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया।
पीठ ने 11 अगस्त के कुछ निर्देशों पर रोक लगाने की अंतरिम याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया और कहा कि आवारा कुत्तों से जुड़ी ‘‘सारी समस्या’’ स्थानीय अधिकारियों की ‘‘निष्क्रियता’’ का नतीजा है।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हर देश में एक मुखर अल्पसंख्यक और एक मूक पीड़ित बहुसंख्यक होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘एक मुखर अल्पसंख्यक है। मैंने वीडियो और साक्षात्कार देखे हैं। लोग मांस, चिकन आदि खाते हैं और अब पशु प्रेमी बनकर इस पर आपत्ति जता रहे हैं।’’
मेहता ने कहा, ‘‘यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका समाधान किया जाना चाहिए, न कि विवाद उत्पन्न किया जाना चाहिए। बच्चे मर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि कुत्तों के बधियाकरण से रेबीज नहीं रुका और टीकाकरण से बच्चों और वयस्कों के अंग-भंग होने की घटनाएं नहीं रुकीं।
उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ 2024 में ही देश में कुत्तों के काटने के 37 लाख से ज्यादा मामले सामने आए।
मेहता ने एक मीडिया रिपोर्ट का भी हवाला दिया और कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सरकारी और अन्य प्रामाणिक स्रोतों का उपयोग करते हुए एक वर्ष में 305 मौत की सूचना दी है।
मेहता ने कहा, ‘‘आखिरकार, समाधान नियमों (पशु जन्म नियंत्रण नियमों) में नहीं है। माननीय न्यायाधीशों को हस्तक्षेप करना होगा।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल 11 अगस्त के कुछ निर्देशों पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
उन्होंने कहा, ‘‘वे (अधिकारी) जाकर कुत्तों को उठा रहे हैं। वे (कुत्ते) कहां जाएंगे? उन्हें मार दिया जाएगा और यही होने वाला है।’’
सिब्बल ने आवारा कुत्तों का बधियाकरण नहीं किए जाने पर अधिकारियों से सवाल किया।
उन्होंने कहा, ‘‘नगर निगम ने इतने साल में क्या किया है? क्या उन्होंने आश्रय गृह बनाए हैं? क्या उन्होंने बधियाकरण किया? होता यह है कि उनके पास बधियाकरण के लिए पैसा होता है, लेकिन जैसा कि माननीय जानते हैं, पैसे का गबन हो जाता है।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने संसद में दिए गए आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि 2022 से 2025 तक दिल्ली में रेबीज से कोई मौत नहीं हुई है।
सिंघवी ने कहा, ‘‘लेकिन यह भयावह स्थिति पैदा करने की कोशिश है कि हर तरफ लोग रेबीज से मर रहे हैं। कम से कम सरकार को अपने ही मंत्री द्वारा कुछ हफ्ते पहले सदन में दिए गए आंकड़ों को देखना चाहिए।’’
एक वकील ने कहा कि हर कोई कुत्तों की रक्षा के लिए ‘‘शोर मचा रहा है’’ और पूछा, ‘‘इंसानों का क्या?’’
उच्चतम न्यायालय के 11 अगस्त के निर्देशों पर रोक लगाने का अनुरोध कर रहे एक अन्य वकील ने कहा कि यह एक ‘‘जटिल मुद्दा’’ है और गैर-सरकारी संगठनों के लोग आदेश पारित होने से पहले संबंधित सामग्री पेश नहीं कर पाए।
न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने 11 अगस्त को स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली-एनसीआर के अधिकारियों से कुत्तों के लिए तुरंत आश्रय स्थल बनाने और आठ हफ्तों के भीतर ऐसे बुनियादी ढांचे के निर्माण के बारे में रिपोर्ट देने को कहा था।
पीठ ने आश्रय स्थलों से आवारा कुत्तों को छोड़ने पर रोक लगा दी थी।
भाषा सुरभि