एशिया के सबसे बड़े ऑटो टेस्टिंग ट्रैक में नीलगायों का बसेरा, हादसों के खतरे से स्थानांतरण तेज
हर्ष मनीषा
- 21 May 2025, 01:56 PM
- Updated: 01:56 PM
इंदौर (मध्यप्रदेश), 21 मई (भाषा) इंदौर के पास पीथमपुर में राष्ट्रीय वाहन परीक्षण पथ (नेट्रैक्स) के करीब 3,000 एकड़ में फैले परिसर में नीलगायों ने अपना बसेरा बना लिया है और हादसों के बढ़ते खतरे के मद्देनजर इन जंगली जानवरों को इस परिसर से बचाकर उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ने की मुहिम तेज कर दी गई है। अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी।
अधिकारियों ने बताया कि केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय के नेट्रैक्स परिसर से बचाई गई करीब 50 नीलगायों को चीतों की बसाहट वाले गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में हाल ही में छोड़ा गया है।
उन्होंने बताया कि पीथमपुर का नेट्रैक्स, एशिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा ऑटो टेस्टिंग ट्रैक है जिसके जरिये गाड़ियों और उनके कल-पुर्जों को बाजार में उतारे जाने से पहले उनके दम-खम को विश्वस्तरीय पैमानों पर परखा जाता है।
इंदौर के रालामंडल अभयारण्य के अधीक्षक योहान कटारा ने ‘‘पीटीआई-भाषा’’ को बताया, ‘‘हमने गुजरे पांच दिनों के दौरान पीथमपुर के नेट्रैक्स से लगभग 50 नीलगायों को बचाकर गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ा है।"
गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य देश में चीतों का नया घर है जहां 20 अप्रैल को दो चीतों ‘प्रभाष’ और ‘पावक’ को छोड़ा गया था। यह अभयारण्य मध्यप्रदेश के नीमच और मंदसौर जिलों में फैला है और पीथमपुर के नेट्रैक्स से इसकी दूरी 300 किलोमीटर के आस-पास है।
कटारा ने बताया, ‘‘फिलहाल नेट्रैक्स में 90 और नीलगाय होने का अनुमान है। इन जंगली जानवरों को इस परिसर से बचाकर उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ने का हमारा अभियान जारी रहेगा।’’
अधिकारियों ने बताया कि पीथमपुर में नेट्रैक्स की औपचारिक शुरुआत 28 जनवरी 2018 को हुई थी और इसके विशाल परिसर में बड़ी बाड़ लगाए जाने से पहले नीलगायों ने इसमें अपना बसेरा बना लिया था।
उन्होंने बताया कि नेट्रैक्स परिसर में आवास, भोजन और पानी का प्राकृतिक इंतजाम होने के चलते इसमें नीलगायों की तादाद साल-दर-साल बढ़ती चली गई।
नेट्रैक्स के निदेशक मनीष जायसवाल ने बताया, ‘‘हमारे परिसर में नीलगाय के चलते अब तक कोई भी हादसा नहीं हुआ है, लेकिन इस जंगली जानवर के कारण हादसों का खतरा जाहिर तौर पर बना हुआ है।’’
जायसवाल ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वाहन निर्माताओं की गाड़ियां हमारे ट्रैक पर परीक्षण के दौरान अक्सर 200 से 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी दौड़ती हैं। हम भाग्यशाली हैं कि परीक्षण के दौरान ट्रैक पर दौड़ती किसी गाड़ी की नीलगाय से अब तक भिड़ंत नहीं हुई है।’’
उन्होंने बताया कि पिछले दो साल में नेट्रैक्स परिसर से 80 से ज्यादा नीलगायों को सुरक्षित बचाकर उनके प्राकृतिक आवास में भेजा गया है।
जायसवाल ने बताया कि इस परिसर में नीलगायों को वन विभाग के प्रशिक्षित कर्मचारियों की मदद से 'बोमा तकनीक' के जरिये बचाया जा रहा है।
'बोमा तकनीक' वन्यजीव प्रबंधन की एक पद्धति है जो विशेष रूप से अफ्रीका में मशहूर है। इस तकनीक के तहत जानवरों को एक खास बाड़े में लाया जाता है ताकि उन्हें स्थानांतरण या अन्य उद्देश्यों के लिए पकड़ा जा सके।
भाषा हर्ष