उच्च न्यायालय ने इन्फोसिस के सह-संस्थापक गोपालकृष्णन, अन्य के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द किया
आशीष सुरेश
- 28 Apr 2025, 08:39 PM
- Updated: 08:39 PM
बेंगलुरु, 28 अप्रैल (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 के तहत इन्फोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन और अन्य के खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया है।
अदालत ने शिकायत को ‘‘कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग’’ करार दिया और शिकायतकर्ता के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की छूट दी।
न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर ने 16 अप्रैल को आदेश पारित करते हुए कहा कि शिकायत ‘‘याचिकाकर्ताओं को परेशान करने का एक प्रयास था।’’
प्राथमिकी भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के पूर्व संकाय सदस्य डी सना दुर्गप्पा द्वारा दायर एक निजी शिकायत पर आधारित थी। दुर्गप्पा को 2014 में यौन उत्पीड़न के आरोपों की आंतरिक जांच के बाद सेवा से हटा दिया गया था।
दुर्गप्पा ने दावा किया कि 2014 में, उन्हें ‘हनीट्रैप’ के मामले में फंसाया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। दुर्गप्पा ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ जातिवादी टिप्पणी की गई और धमकी भी दी गई।
अदालत ने कहा कि 2015 में उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका के बाद सेवा से बर्खास्तगी को इस्तीफा में बदल दिया गया था। तब मामले में समझौते के तहत दुर्गप्पा ने संस्थान और उसके प्रतिनिधियों के खिलाफ सभी शिकायतों और कानूनी कार्यवाही को वापस लेने के लिए सहमति व्यक्त की थी।
इसके बावजूद, दुर्गप्पा ने दो और प्राथमिकी दर्ज कराई, जिन्हें 2022 और 2023 में रद्द कर दिया गया। अदालत ने कहा कि मौजूदा प्राथमिकी में भी इसी तरह के आरोप थे और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हुआ।
फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, गोपालकृष्णन ने बयान में कहा, ‘‘मुझे हमारी अदालतों और न्याय प्रणाली में पूर्ण विश्वास है। यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि न्याय व्यवस्था में कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। मैं आभारी हूं कि उच्च न्यायालय ने झूठ को खारिज करते हुए सच को कायम रखा।’’
अदालत ने कहा कि एससी-एसटी (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत किसी भी तरह का अपराध नहीं हुआ। न्यायाधीश ने कहा कि मामला दीवानी प्रकृति का था, लेकिन गलत तरीके से इसे आपराधिक रंग दिया गया।
अदालत ने गोपालकृष्णन और अन्य याचिकाकर्ताओं को दुर्गप्पा के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मंजूरी के लिए महाधिवक्ता से संपर्क करने की भी अनुमति दी।
भाषा आशीष