अदालती निर्णय की तुलना में विवादों का अधिक समग्र समाधान प्रदान करती है मध्यस्थता : सीजेआई खन्ना
अमित दिलीप
- 03 May 2025, 09:21 PM
- Updated: 09:21 PM
नयी दिल्ली, तीन मई (भाषा) प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने शनिवार को कहा कि मध्यस्थता न्याय का ‘निम्नतर रूप’ नहीं है बल्कि यह ‘अधिक समझदारी भरा रूप’ है तथा मध्यस्थता विवादों का अदालती फैसलों की तुलना में अधिक समग्र समाधान पेश करती है।
न्यायमूर्ति खन्ना ने मध्यस्थता की प्रभावशीलता और पहुंच पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा कि अदालती फैसले में एक पक्ष विजेता बनता है और दूसरा पराजित, जिसके परिणामस्वरूप संबंध तनावपूर्ण हो जाते हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि दूसरी ओर, मध्यस्थता से संबंधों में सुधार हो सकता है और इसके द्वारा प्रस्तुत समाधान कम आघात देने वाले तथा अधिक मानवीय होते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘अदालती मुकदमे और न्यायिक निर्णय एक तरह से कठोर और सतही होते हैं। कई बार मूल कारण का समाधान नहीं हो पाता और पीड़ा और व्यथा बरकरार रहती है। रिश्ते अगर टूटते नहीं, तो भी तनावपूर्ण हो जाते हैं। इसमें कोई विजेता होता है तो कोई हारने वाला।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मध्यस्थता इसके विपरीत काम करती है। यह मूल कारण की पहचान करके उसका समाधान करने का प्रयास करती है। यह मुद्दे की गहराई में जाती है, गलतफहमी के कारण की गहराई में जाती है। यह उन मूल और अंतर्निहित चिंताओं का समाधान करती है, जो विवाद का कारण हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक अधिक समग्र समाधान की अनुमति देता है, जो न केवल कानूनी मुद्दे का समाधान करता है, बल्कि उससे भी आगे जाता है। यह संबंधों को ठीक करता है और पुनर्स्थापित करता है। यह सच्चा न्याय है, न कि तीसरे पक्ष के अनुसार किया गया न्याय।’’
सीजेआई ने कहा कि पिछले दो दशकों में, विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
उन्होंने कहा, ‘‘2016 से 2025 की शुरुआत के बीच, मध्यस्थता के माध्यम से 7.57 लाख मामलों का निपटारा किया गया। फिर भी, मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मध्यस्थता अभी भी गांवों तक नहीं पहुंच पायी है। इसलिए, भारत एक तरह से मध्यस्थता तक पहुंचने और इसके महत्व को समझने में धीमा रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य हर वादी, हर नागरिक, हर व्यवसायी, हर व्यक्ति को यह दिखाना होना चाहिए कि मध्यस्थता न्याय का कमतर रूप नहीं, बल्कि इसका एक बेहतर रूप है।’’
न्यायमूर्ति बी आर गवई ने इस अवसर पर कहा कि जब व्यक्तियों को संवाद करने के लिए सुरक्षित स्थान दिया जाता है, तो टकराव सहयोग में बदल सकता है।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘भारत ने वैकल्पिक विवाद समाधान को बढ़ावा देने और अदालतों पर बोझ कम करने के साधन के रूप में मध्यस्थता को अपनी कानूनी प्रणाली में शामिल करने के लिये एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। हालांकि, मध्यस्थता अधिनियम, 2023 जैसे प्रगतिशील कानून का वास्तविक लाभ तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब हम कानून से परे जाकर मध्यस्थता की मानसिकता बनाने की दिशा में काम करें।’’
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि भारत में मध्यस्थता की संस्कृति धीरे-धीरे विकसित हो रही है। उन्होंने कहा, ‘‘एनएएलएसए जैसी संस्थाओं ने पहले ही वकीलों के लिए मध्यस्थता और उन्नत वाणिज्यिक मध्यस्थता में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करके एक सराहनीय कदम उठाया है। हालांकि, मध्यस्थता को सही मायने में साकार करने के लिए, हमें इन प्रयासों को बढ़ाने और विविधता लाने की आवश्यकता है। यह इस मोड़ पर है कि ‘मेडिएशन एसोसिएशन आफ इंडिया’ की स्थापना महत्वपूर्ण महत्व रखती है।’’
इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित अन्य गणमान्य लोगों ने भी अपने विचार रखे।
भाषा
अमित