उच्चतम न्यायालय ने कमला नेहरू ट्रस्ट को दी गयी जमीन का आवंटन रद्द करने का फैसला बरकरार रखा
सुरेश दिलीप
- 30 May 2025, 10:34 PM
- Updated: 10:34 PM
नयी दिल्ली, 30 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसके तहत राज्य में कमला नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट (केएनएमटी) को दी गई 125 एकड़ भूमि का आवंटन रद्द कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि औद्योगिक भूमि आवंटन का प्रबंधन उचित प्रक्रिया एवं निष्पक्षता के आधार पर तथा जनहित के अनुरूप किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 1975 में शुरू की गई एक परमार्थ संस्था केएनएमटी की अपील खारिज कर दी।
यह अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2017 के आदेश के खिलाफ थी, जिसमें राज्य के सुल्तानपुर जिले में जगदीशपुर के उतेलवा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित भूमि का आवंटन रद्द कर दिया गया था।
न्यायालय ने यूपीएसआईडीसी द्वारा वर्ष 2003 में ट्रस्ट को फूलों की खेती के उद्देश्य से भूमि के बड़े हिस्से का जल्दबाजी में आवंटन करने तथा मुकदमा शुरू होने के बाद जगदीशपुर पेपर मिल्स लिमिटेड को वैकल्पिक आवंटन पर विचार करने में निगम द्वारा दिखाई गई ‘उल्लेखनीय तत्परता’ की भी आलोचना की।
पीठ ने कहा, ‘‘पक्षकारों की दलीलों की हमारी विस्तृत जांच, तथ्यात्मक और कानूनी मैट्रिक्स के व्यापक विश्लेषण तथा परिणामी निष्कर्षों के आलोक में, हम यूपीएसआईडीसी द्वारा आवंटन को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखते हैं।’’
पीठ ने कहा कि यूपीएसआईडीसी द्वारा जगदीशपुर पेपर मिल्स लिमिटेड के पक्ष में उक्त भूमि के लिए किया गया वास्तविक आवंटन या उसका कोई प्रस्ताव ‘‘अवैध, सार्वजनिक नीति के विपरीत घोषित किया जाता है तथा फलस्वरूप उसे रद्द किया जाता है।’’
पीठ ने कहा कि यदि उक्त संभावित आवंटी से कोई बयाना राशि या भुगतान प्राप्त हुआ है, तो उसे राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा दी गई दर पर ब्याज सहित वापस करने का निर्देश दिया जाता है।
न्यायालय ने कहा कि केएनएमटी द्वारा शुरू किया गया लंबा मुकदमा 15 वर्षों से अधिक समय तक चला है, जिससे न्यायिक प्रणाली पर अनावश्यक रूप से बोझ पड़ा है और सार्वजनिक प्राधिकरणों के कुशल कामकाज में बाधा उत्पन्न हुई है।
इसने कहा कि इस तरह के लंबे विवाद पुरानी चूक को रोकने के लिए अधिक कठोर प्रारंभिक मूल्यांकन प्रक्रियाओं की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
न्यायालय ने कहा कि यह आवश्यक है कि औद्योगिक भूमि आवंटन की प्रक्रिया प्रशासनिक औचित्य के मानकों को पूरा करे, विशेष रूप से सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत के आलोक में, जो यह अनिवार्य करता है कि ‘‘सार्वजनिक संसाधनों का प्रबंधन उचित परिश्रम, निष्पक्षता और सार्वजनिक हित के अनुरूप किया जाए’’।
भाषा सुरेश