पुणे पोर्श मामला : किशोर न्याय बोर्ड ने आरोपी पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने की अर्जी खारिज की
पारुल नरेश
- 15 Jul 2025, 05:33 PM
- Updated: 05:33 PM
पुणे, 15 जुलाई (भाषा) किशोर न्याय बोर्ड ने पुणे पुलिस की उस अर्जी को मंगलवार को खारिज कर दिया, जिसमें शहर में पिछले साल नशे की हालत में पोर्श कार चलाने और दो लोगों को कुचलने के आरोपी 17 वर्षीय लड़के पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का अनुरोध किया गया था।
देशभर में सुर्खियां बटोरने वाली यह घटना पिछले साल 19 मई को पुणे के कल्याणी नगर इलाके में घटी थी, जिसमें मोटरसाइकिल सवार आईटी पेशेवर अनीश अवधिया और उसकी दोस्त अश्विनी कोस्टा की मौत हो गई थी।
पुणे पुलिस ने पिछले साल यह कहते हुए आरोपी पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाने की अनुमति देने का अनुरोध किया था कि उसने एक ‘‘जघन्य’’ कृत्य किया है और उस पर न केवल दो लोगों की हत्या, बल्कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने के भी आरोप हैं।
बचाव पक्ष के वकील प्रशांत पाटिल के मुताबिक, किशोर न्याय बोर्ड ने आरोपी पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का पुलिस का अनुरोध मंगलवार को ठुकरा दिया।
पाटिल ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा कि उन्होंने कुछ कानूनों का हवाला देते हुए किशोर के साथ वयस्क की तरह पेश आने की अभियोजन पक्ष की अपील का विरोध किया था।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने शिल्पा मित्तल बनाम राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया था, जिसमें शीर्ष अदालत ने जघन्य अपराध को परिभाषित किया है। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से तय किए गए दिशा-निर्देश सभी पर लागू होते हैं। हालांकि, अभियोजन पक्ष की याचिका शीर्ष अदालत के फैसले के विपरीत थी। हमने दलील दी कि चूंकि याचिका सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के विपरीत है, इसलिए यह विचार करने योग्य नहीं है।’’
पाटिल ने कहा कि किसी अपराध को जघन्य अपराध के रूप में परिभाषित करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास ऐसी धारा (मामले में प्रयुक्त) होनी चाहिए, जिसमें सात साल की न्यूनतम सजा का प्रावधान हो।
उन्होंने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में एक भी धारा ऐसी नहीं है, जिसमें सात साल की न्यूनतम सजा का प्रावधान हो। इसलिए हमने दलील दी कि यह याचिका कैसे विचार करने योग्य नहीं है।’’
पाटिल ने कहा कि ''कानून के उल्लंघन के आरोपी बच्चे'' (सीसीएल) के साथ वयस्क या नाबालिग के रूप में पेश आया जाना चाहिए, यह तय करना किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) की जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा, ‘‘जेजेबी को यह निर्धारित करने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन करना चाहिए कि क्या सीसीएल को वयस्क या नाबालिग माना जाना चाहिए। मौजूदा मामले में जेजेबी ने पहले ही ऐसा कर लिया है और यह उनके प्रारंभिक मूल्यांकन में नहीं आया है कि उसे वयस्क माना जाना चाहिए।’’
आरोपी किशोर को पिछले साल 19 मई को हादसे के कुछ घंटों बाद ही जमानत मिल गई थी।
उससे सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने के लिए कहने सहित जमानत की अन्य नरम शर्तों को लेकर विवाद खड़ा हो गया था, जिसके तीन दिन बाद आरोपी को पुणे शहर के एक सुधार गृह में भेज दिया गया था।
बंबई उच्च न्यायालय ने 25 जून 2024 को आरोपी को तुरंत रिहा करने का निर्देश देते हुए कहा था कि किशोर न्याय बोर्ड का उसे सुधार गृह भेजने का आदेश गैरकानूनी था और किशोरों से संबंधित कानून का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।
पुणे की एक सत्र अदालत में इस मामले में 10 अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए बहस जारी है।
आरोपियों में किशोर के माता-पिता के अलावा ससून अस्पताल के डॉ. अजय टावरे और श्रीहरि हल्नोर तथा कर्मचारी अतुल घाटकांबले, बिचौलिये बशपक मकंदर और अमर गायकवाड़ तथा आदित्य अविनाश सूद, आशीष मित्तल और अरुण कुमार सिंह भी शामिल हैं।
किशोर की मां जमानत पर बाहर है, जबकि अन्य नौ आरोपी जेल में हैं।
भाषा पारुल