न्यायाधीश यशवंत वर्मा को उपनाम से संबोधित करने पर सीजेआई ने वकील को फटकार लगाई
अमित नेत्रपाल दिलीप
- 21 Jul 2025, 05:35 PM
- Updated: 05:35 PM
नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को जब एक वकील ने उच्चतम न्यायालय में उनके उपनाम से संबोधित किया तो भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने कहा कि ‘‘क्या वह आपके दोस्त हैं? वह अब भी न्यायमूर्ति वर्मा हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश गवई और न्यायमूर्ति के. वी. चंद्रन की पीठ के समक्ष पेश हुए अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा ने नकदी बरामदगी मामले में न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने के अनुरोध वाली अपनी याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया। पीठ ने याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से सोमवार को इनकार कर दिया।
दूसरी ओर, प्रधान न्यायाधीश ने नेदुम्परा द्वारा न्यायाधीश को उनके उपनाम "वर्मा" से संबोधित करने पर नाराजगी जतायी। नेदुम्परा ने इस मामले में शीर्ष अदालत में कम से कम तीन याचिकाएं दायर की हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘क्या वह आपके दोस्त हैं? वह अब भी न्यायमूर्ति वर्मा ही हैं। आप उन्हें कैसे संबोधित कर रहे हैं? थोड़ी शालीनता बरतें। आप एक विद्वान न्यायाधीश की बात कर रहे हैं। वह अब भी अदालत के न्यायाधीश हैं।’’
वकील ने जवाब देते हुए कहा कि मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर जोर दिया। वकील ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि यह प्रतिष्ठा उन पर लागू हो सकती है। मामले को सूचीबद्ध करना होगा।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "कृपया अदालत को निर्देश न दें।"
नेदुम्परा ने कहा, ‘‘मैं तो बस आग्रह कर रहा हूं।’’
इसके बाद पीठ ने कहा कि इस याचिका पर उचित समय पर सुनवाई होगी।
जब वकील अपनी दलीलों पर अड़े रहे, तो प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘क्या आप चाहते हैं कि इसे अभी खारिज कर दिया जाए?’’
वकील ने कहा, ‘‘इसे खारिज करना असंभव है। एक प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि ‘वर्मा’ भी यही चाहते हैं। एक प्राथमिकी और एक जांच होनी चाहिए।’’
हाल में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वर्मा ने एक आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य ठहराने का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया। आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट में उन्हें नकदी बरामदगी मामले में कदाचार का दोषी पाया गया था।
न्यायमूर्ति वर्मा ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा आठ मई को की गई सिफारिश को रद्द करने का अनुरोध किया है, जिसमें संसद से उनके (वर्मा के) खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है।
सरकार संसद के मानसून सत्र में न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने के लिए एक प्रस्ताव लाने की योजना बना रही है।
घटना की जांच कर रही जांच समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर परोक्ष या प्रत्यक्ष नियंत्रण था, जहां आधी जली हुई नकदी का बड़ा जखीरा बरामद किया गया था। यह घटना उनके कदाचार को साबित करती है, जो उन्हें पद से हटाए जाने के लिए पर्याप्त है।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की समिति ने 10 दिन तक जांच की, 55 गवाहों से पूछताछ की और न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास का दौरा किया, जहां 14 मार्च को रात लगभग 11 बजकर 35 मिनट पर अचानक आग लग गई थी।
वर्मा उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और वर्तमान में वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कार्यरत हैं।
रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए पूर्व प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी।
भाषा अमित नेत्रपाल