धनखड़ ने न्यायपालिका में जवाबदेही की कमी, अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण को लेकर सवाल उठाए थे
पारुल नेत्रपाल
- 22 Jul 2025, 07:59 PM
- Updated: 07:59 PM
नयी दिल्ली, 22 जुलाई (भाषा) उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भी जगदीप धनखड़ अकसर विवादास्पद मुद्दों पर अपनी राय रखते थे और उनके बयान मीडिया की सुर्खियां बनते थे। वह विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष तक की आलोचना करने से पीछे नहीं हटते थे। यहां तक कि उन्होंने भ्रष्टाचार, अधिकार क्षेत्र के कथित अतिक्रमण और जवाबदेही की कथित कमी जैसे मुद्दों को लेकर कई मौकों पर न्यायपालिका पर भी तीखे हमले किए।
धनखड़ ने सोमवार शाम स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।
मार्च में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास पर बड़े पैमाने पर नोटों की अधजली गड्डियां मिलने से उठे विवाद ने धनखड़ को भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कथित कमी के मुद्दे पर उच्च न्यायपालिका पर निशाना साधने का एक और मौका दे दिया था।
धनखड़ ने अदालतों और उनके विभिन्न फैसलों पर सवाल उठाए। उन्होंने एक वकील के तौर पर खुद को न्यायपालिका का ‘‘पैदल सिपाही’’ बताया।
उन्होंने अपने सार्वजनिक भाषणों में न्यायपालिका सहित अन्य संस्थाओं को निशाना बनाने के लिए ‘‘हानिकारक एजेंडे वाली ताकतों’’ को आड़े हाथों लिया।
उपराष्ट्रपति के तौर पर अपने कई भाषणों में उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को रद्द करने के शीर्ष अदालत के फैसले पर सवाल उठाए, जिसका उद्देश्य वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को पलटना था। उन्होंने सवाल किया था कि उच्चतम न्यायालय संसद के दोनों सदनों की ओर से लगभग सर्वसम्मति से पारित कानून को कैसे रद्द कर सकता है।
धनखड़ ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ न बोलने के लिए सांसदों पर भी निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि शीर्ष अदालत के एनजेएसी अधिनियम को रद्द करने के बाद संसद में ‘‘कोई चर्चा’’ नहीं हुई, जो एक ‘‘बहुत गंभीर मुद्दा’’ है।
उन्होंने न्यायपालिका के राष्ट्रपति के लिए फैसले लेने की समयसीमा निर्धारित करने और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में काम करने पर भी सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि शीर्ष अदालत लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘‘परमाणु मिसाइल’’ नहीं दाग सकती।
धनखड़ ने न्यायालय के संबंध में यह कड़ी टिप्पणी तब की थी जब शीर्ष अदालत ने कुछ दिन पहले ही अपने एक अहम फैसले में राज्यपाल की ओर से राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित की थी।
उन्होंने कहा था, “तो हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं, जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका के कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।”
न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर नकदी की अधजली गड्डियां मिलने के बाद धनखड़ ने मामले में प्राथमिकी न दर्ज किए जाने पर सवाल उठाया। उन्होंने घटना की जांच के लिए भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश की ओर से गठित तीन सदस्यीय आंतरिक समिति को असंवैधानिक करार दिया था।
भाषा पारुल