दुनिया की नौ फीसदी से अधिक भू-भाग को पशुओं से इंसानों में फैलने वाले संक्रमण का खतरा अधिक : अध्ययन
जितेंद्र दिलीप
- 25 Jul 2025, 04:43 PM
- Updated: 04:43 PM
नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) दुनिया के नौ प्रतिशत से अधिक भू-भाग को जूनोटिक प्रकोप यानी जानवरों से इंसानों में फैलने वाले संक्रमण का ‘उच्च’ या ‘अत्यधिक’ खतरा है। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
‘साइंस एडवांसेज’ पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों में यह भी अनुमान लगाया गया कि वैश्विक आबादी का तीन प्रतिशत हिस्सा अत्यधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में और लगभग पांचवां हिस्सा मध्यम जोखिम वाले क्षेत्रों में रह रहा है।
शोधकर्ताओं ने ‘वैश्विक संक्रामक रोग एवं महामारी विज्ञान नेटवर्क’ आंकड़ों और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की प्राथमिकता वाली बीमारियों की सूची से स्थान-विशिष्ट जानकारी का विश्लेषण किया। इन स्थानों को स्थानिक महामारी या वैश्विक महामारी के पनपने की उनकी क्षमता के अनुसार वर्गीकृत किया गया।
शोधकर्ताओं में इटली स्थित यूरोपीय आयोग के संयुक्त अनुसंधान केंद्र (जेआरसी) की वैज्ञानिक विकास कार्यक्रम इकाई के शोधकर्ता भी शामिल थे।
कोविड, इबोला, कोरोनावायरस से संबंधित एमईआरएस व एसएआरएस और निपाह डब्ल्यूएचओ की सूची में सबसे ज्यादा प्राथमिकता वाले संक्रमणों में शामिल हैं। शोधकर्ताओं के विश्लेषण से पता चला कि जलवायु परिवर्तन से प्रेरित परिस्थितियां जैसे उच्च तापमान व वर्षा और पानी की कमी ‘जूनोसिस’ (जानवरों से इंसानों में होने वाली बीमारी) के जोखिम को बढ़ाती हैं।
यह अध्ययन ‘वैश्विक जोखिम मानचित्र’ और महामारी जोखिम सूचकांक प्रस्तुत करता है, जो विशिष्ट जोखिम वाले देशों को ‘जूनोटिक’ खतरों (एसएआरएस कोविड को छोड़कर) से निपटने व तैयारी करने की उनकी क्षमताओं के साथ जोड़ता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, “हमारे परिणाम बताते हैं कि दुनिया का 9.3 प्रतिशत हिस्सा उच्च (6.3 प्रतिशत) या अत्यधिक (तीन प्रतिशत) जोखिम में है।”
उन्होंने यह भी अनुमान जताया कि एशिया का लगभग सात प्रतिशत और अफ्रीका का पांच प्रतिशत भू-भाग प्रकोप के उच्च व अत्यधिक जोखिम में है।
शोध के मुताबिक, लैटिन अमेरिका को 27 प्रतिशत और ओशिनिया को 18.6 प्रतिशत खतरा है। शोधकर्ताओं ने पाया कि पर्यावरण में जलवायु-संबंधी परिवर्तनों ने किसी क्षेत्र को जोखिम के प्रति संवेदनशीलता को काफी हद तक बढ़ा दिया है।
उन्होंने बताया, “यह निरंतर निगरानी, जनस्वास्थ्य योजना में जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों के एकीकरण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।”
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के एक अध्ययन में पाया गया कि देश में 2018 से 2023 के बीच दर्ज किए गए आठ प्रतिशत से ज्यादा प्रकोप ‘जूनोटिक’ थे।
अध्ययन में कुल 6,948 प्रकोपों का विश्लेषण किया गया, जिसमें से 583 (8.3 प्रतिशत) जानवरों से मनुष्यों में फैले थे।
अध्ययन के मुताबिक, जून, जुलाई और अगस्त के दौरान प्रकोप लगातार चरम पर पाए गए।
ये निष्कर्ष इस साल मई में ‘द लैंसेट रीजनल साउथईस्ट एशिया जर्नल’ में प्रकाशित हुए थे।
भाषा जितेंद्र