तथ्य छिपाने के आरोपों वाले वैवाहिक मामलों में संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता: अदालत
अमित सुरेश
- 04 Aug 2025, 05:28 PM
- Updated: 05:28 PM
नयी दिल्ली, चार अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक मामलों, विशेष तौर पर आर्थिक निर्भरता और तथ्य छुपाने के आरोपों से जुड़े मामलों में एक ‘‘संवेदनशील और व्यावहारिक’’ दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
अदालत ने इसके साथ ही एक महिला की अलग रह रहे अपने पति के खिलाफ अपने दावों के समर्थन में गवाहों को समन करने के अनुरोध वाली याचिका स्वीकार कर ली।
न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा का 31 जुलाई का आदेश उस याचिका पर आया, जिसमें एक महिला ने अलग रह रहे अपने पति के साथ जारी वैवाहिक विवाद में गवाहों को समन करने का अनुरोध किया था।
अदालत ने कहा, ‘‘वैवाहिक विवादों से संबंधित न्यायिक प्रक्रिया, विशेष रूप से जहां वित्तीय निर्भरता और तथ्य छिपाने का आरोप लगाया जाता है, एक संवेदनशील और व्यावहारिक दृष्टिकोण की मांग करती है। यह असामान्य नहीं है कि जब पति और पत्नी के बीच वैवाहिक मतभेद होते हैं, तो कई बार पति अपनी वास्तविक आय छुपाने लगते हैं और अपनी पत्नी को वैध बकाया भुगतान से बचने के लिए अपनी संपत्ति हस्तांतरित करने जैसे उपायों का भी सहारा लेते हैं।’’
महिला ने अलग रह रहे अपने पति द्वारा संपत्ति की बिक्री से प्राप्त धनराशि के हेरफेर को रिकॉर्ड में लाने के लिए, बैंक अधिकारियों को संबंधित दस्तावेजों के साथ समन करने का अनुरोध किया।
न्यायमूर्ति डुडेजा ने कुटुंब अदालत के सात जून, 2024 के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें गवाहों को समन करने की महिला की याचिका खारिज कर दी गई थी।
महिला ने दावा किया कि उसे पता चला कि अलग रह रहे उसके पति ने अदालत को गुमराह करने और वैध भरण-पोषण बकाया का भुगतान करने से बचने के लिए अपनी संपत्ति अपनी मां और भाई सहित अपने परिवार के अन्य सदस्यों के नाम कर दी थी।
इसके विपरीत, व्यक्ति ने दलील दी कि जिन गवाहों को समन करने का अनुरोध किया गया है, वे महिला के मामले से संबंधित नहीं हैं और सीआरपीसी की धारा 311 (महत्वपूर्ण गवाह को समन करने या पेश व्यक्ति से जिरह करने की शक्ति) का उपयोग केवल मामले में देरी करने की रणनीति का एक हिस्सा है।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि पति की आय, संपत्ति और साधन सहित वित्तीय स्थिति, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका में भरण-पोषण की मात्रा निर्धारित करने में प्रासंगिक विचारणीय विषय है।
अदालत ने कहा, ‘‘प्रतिवादी (पति) के परिवार के सदस्यों के खातों के विवरण तलब करने का अनुरोध करके, याचिकाकर्ता (पत्नी) नोएडा की संपत्ति की बिक्री से प्राप्त धनराशि के हेरफेर की शृंखला को रिकॉर्ड में लाना चाहती है, ताकि यह साबित किया जा सके कि उक्त धनराशि का इस्तेमाल प्रतिवादी द्वारा शक्ति नगर स्थित संपत्ति की खरीद में किया गया था। याचिकाकर्ता को इसे साबित करने का अवसर न देने से भरण-पोषण कार्यवाही का उद्देश्य विफल हो जाएगा।’’
न्यायमूर्ति डुडेजा ने कहा कि भरण-पोषण के अनुरोध वाली याचिका 2013 में दायर की गई थी, जबकि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत आवेदन अंतिम बहस के चरण में दायर किए गए थे।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हालांकि, सीआरपीसी की धारा 311 के तहत शक्ति का प्रयोग जांच, मुकदमे और अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में किया जा सकता है। इस शक्ति का प्रयोग अंतिम बहस के चरण में भी किया जा सकता है।"
आदेश में कहा गया कि कुटुंब अदालत द्वारा अपने इनकार को उचित ठहराने के लिए कथित देरी और कई आवेदनों जैसे प्रक्रियात्मक इतिहास पर भरोसा करना, याचिकाकर्ता के अपने दावे को प्रमाणित करने के लिए उचित अवसर पाने के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है।
आदेश में कहा गया है, "पारिवारिक अदालत को अति-तकनीकी दृष्टिकोण अपनाने के बजाय, सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अपनी सक्षम शक्तियों की अधिक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या करनी चाहिए थी।’’
भाषा अमित