लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची शीर्ष प्राथमिकता: सांसद मोहम्मद हनीफा
संतोष अविनाश
- 04 Aug 2025, 08:30 PM
- Updated: 08:30 PM
नयी दिल्ली, चार अगस्त (भाषा) सांसद मोहम्मद हनीफा ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ बातचीत की धीमी गति पर अफसोस जताते हुए कहा कि छठी अनुसूची के तहत एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और संवैधानिक सुरक्षा उपाय लद्दाख के लोगों की प्राथमिकता रही है जो अब भी बरकरार है।
लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के छह साल पूरे होने पर ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में लद्दाख के कारगिल क्षेत्र से आने वाले सांसद ने कहा कि इस ठंडे रेगिस्तान की सांस्कृतिक विविधता और नाजुक पर्यावरण की संवैधानिक रूप से रक्षा की जानी चाहिए।
हनीफा ने कहा कि उस समय केंद्र शासित प्रदेश के गठन का कई लोगों ने स्वागत किया था, लेकिन लोगों को जल्द ही एहसास हो गया कि यह वह नहीं था जो वे चाहते थे।
उन्होंने कहा, ‘‘जब जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में विभाजित किया गया और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तो एक वर्ग इसका स्वागत कर रहा था और दूसरा इसके खिलाफ था।’’
उन्होंने कहा कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाना लेह के लोगों की आवाज थी, लेकिन कारगिल के लोग इसके खिलाफ थे।
हनीफा ने कहा, ‘‘वर्ष 2019 में जब उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया, जम्मू-कश्मीर का विभाजन किया और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तब इसकी मांग कर रहे लोगों में खुशी की लहर थी। उन्होंने इसका स्वागत किया और जश्न मनाया। लेकिन जैसे-जैसे लोगों को इस व्यवस्था के बारे में पता चला, उन्हें यह भी एहसास हुआ कि यह वह केंद्र शासित प्रदेश नहीं है जिसकी लद्दाख के लोग मांग कर रहे थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग केंद्र शासित प्रदेश की मांग कर रहे थे, वे एक ऐसा केंद्र शासित प्रदेश चाहते थे जिसमें लोकतंत्र हो। वे ऐसा केंद्र शासित प्रदेश चाहते थे जिसमें विधानसभा हो। साथ ही अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने के साथ ही, हमारी सभी सुरक्षा व्यवस्थाएं समाप्त हो गईं। लद्दाख को न तो सुरक्षा व्यवस्था मिली और न ही कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रदान की गई, इसलिए लद्दाख के लोगों को एहसास हुआ कि इस व्यवस्था में हमारा भविष्य अंधकारमय है।’’
हनीफा ने जोर देकर कहा कि लद्दाख के लोग- चाहे बौद्ध हों या मुसलमान, देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने को तैयार हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन लद्दाख सांस्कृतिक रूप से अलग है। लद्दाख में सात जातीय समूह हैं, और जनजातियों और क्षेत्रों के अनुसार संस्कृति बदलती रहती है। यहां का पर्यावरण नाज़ुक है, भले ही यह क्षेत्र विशाल है। यह भारत का सबसे बड़ा निर्वाचन क्षेत्र है, लेकिन जनसंख्या बहुत कम है, लगभग तीन-चार लाख। अगर बाहर से लोग आकर लद्दाख में बस जाते हैं, तो जनसांख्यिकी बदल जाएगी।’’
सामाजिक, धार्मिक हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो समूह, ‘लेह एपेक्स बॉडी’ और ‘कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस’ अपनी चार सूत्री मांगों पर सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि दोनों समूहों के चार मुद्दे हैं: लद्दाख को राज्य का दर्जा, संविधान के तहत छठी अनुसूची, नौकरियों में आरक्षण, एक अलग लोक सेवा आयोग और लेह तथा कारगिल के लिए दो संसदीय सीट प्रदान किया जाना।
लद्दाख के सांसद ने कहा कि बातचीत जारी है, लेकिन उन्हें अगली बैठक की कोई तारीख नहीं मिली है। उन्होंने जोर देकर कहा कि लोगों में असंतोष है, जो केंद्र द्वारा उनकी मांगें पूरी नहीं करने पर और बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘लद्दाख की पूरी आबादी पिछले चार-पांच सालों से विरोध प्रदर्शन कर रही है। लेकिन हमने सरकार को आश्वासन दिया है कि हम लद्दाख के शांतिपूर्ण माहौल में दखल नहीं देना चाहते। क्योंकि हमने शांति के लिए बहुत त्याग किए हैं।’’
हनीफा ने कहा कि सदियों से लद्दाख एक शांतिपूर्ण क्षेत्र रहा है और स्थानीय लोग नहीं चाहते कि इसमें कोई खलल पड़े, लेकिन लद्दाख के लोग अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं।
उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय के पैनल और लद्दाख के प्रतिनिधियों के बीच पिछली बैठक में अधिवास का मुद्दा सुलझा लिया गया था। लेकिन उसके बाद से कोई खास प्रगति नहीं हुई है और अगली बैठक की कोई तारीख तय नहीं है।
निर्दलीय सांसद ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है और उन्होंने सीमावर्ती बुनियादी ढांचे के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद दिया।
हालांकि, हनीफा ने कहा कि जोजिला सुरंग से सभी मौसमों में कनेक्टिविटी, कारगिल के लिए हवाई संपर्क और स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी स्थानीय लोगों की मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है।
भाषा संतोष