न्यायालय ने स्थायी कमीशन से वंचित सेना की महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की
सुभाष नरेश
- 06 Aug 2025, 05:27 PM
- Updated: 05:27 PM
नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को ‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’ (एसएससी) की उन महिला सैन्य अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी जिन्होंने दावा किया है कि भेदभाव के कारण उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिया जा रहा है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने दो बैच के अधिकारियों -- सेवारत और सेवा मुक्त -- द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
शीर्ष अदालत ने कहा कि थलसेना की अधिकारियों के बैच की याचिका के बाद, वह नौसेना की अधिकारियों और फिर वायुसेना की अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई करेगी, जिन्होंने उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिये जाने को चुनौती दी है।
वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफा अहमदी, मेनका गुरुस्वामी और वी. मोहना तथा अन्य वकीलों ने एसएससी महिला अधिकारियों का प्रतिनिधित्व किया, जिन्होंने दलील दी कि उन्हें स्थायी कमीशन न देकर भेदभाव किया जा रहा है।
महिला अधिकारियों ने दलील दी कि उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में लापरवाह तरीके से ‘ग्रेडिंग’ की जा रही है और उन्हें पुरुष समकक्षों की तुलना में समान अवसर नहीं दिये जा रहे हैं।
पीठ ने स्थायी कमीशन देने के लिए समान दिशानिर्देश प्रस्तावित किये, लेकिन विशेष प्रशिक्षण जैसे कारकों को भी ध्यान में रखने की बात कही।
इसने अधिकारियों से यह भी पूछा कि उनके अनुसार स्थायी कमीशन के मूल्यांकन का आधार क्या होना चाहिए।
शीर्ष अदालत विभिन्न आधारों पर उन्हें स्थायी कमीशन देने से इनकार करने को चुनौती देने वाली 75 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
सुनवाई 7 अगस्त को भी जारी रहेगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले पारित अंतरिम आदेश लागू रहेंगे, जिसके तहत केंद्र को अधिकारियों की याचिकाओं पर निर्णय होने तक उन्हें सेवा मुक्त करने से रोका गया था।
न्यायालय ने 9 मई को, केंद्र से उन एसएससी महिला सैन्य अधिकारियों को सेवा मुक्त न करने का निर्देश दिया था जिन्होंने स्थायी कमीशन देने से इनकार करने के फैसले को चुनौती दी थी।
शीर्ष अदालत ने ‘‘मौजूदा स्थिति’’ में ‘‘उनका मनोबल कम न करने’’ को कहा था।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी कि यह सशस्त्र बलों को युवा बनाए रखने की नीति पर आधारित एक प्रशासनिक निर्णय था।
कर्नल गीता शर्मा की ओर से पेश हुईं गुरुस्वामी ने इससे पहले कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले का उल्लेख किया था, जो उन दो महिला अधिकारियों में से एक थीं, जिन्होंने 7 और 8 मई को ऑपरेशन सिंदूर के बारे में मीडिया को जानकारी दी थी।
महिला अधिकारियों ने न्यायालय के 2020 के उस फैसले का हवाला दिया है, जिसमें सेना को उन्हें स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने 17 फरवरी 2020 को अपने फैसले में कहा था कि सेना में स्टाफ पदों को छोड़कर, सभी पदों से महिलाओं को पूरी तरह से बाहर रखे जाने का समर्थन नहीं किया जा सकता और बिना किसी औचित्य के कमांड नियुक्तियों में उन पर विचार न करना कानूनन उचित नहीं ठहराया जा सकता।
वर्ष 2020 के फैसले के बाद से, शीर्ष अदालत ने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के मुद्दे पर कई आदेश पारित किए हैं तथा नौसेना, वायु सेना और तटरक्षक बल के मामले में भी इसी तरह के आदेश पारित किये गए।
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