न्यायालय ने योजनाओं में मुख्यमंत्री के नाम, तस्वीर के इस्तेमाल पर रोक लगाने का आदेश रद्द किया
गोला सुरेश
- 06 Aug 2025, 05:28 PM
- Updated: 05:28 PM
नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को बुधवार को रद्द कर दिया, जिसमें तमिलनाडु की द्रमुक सरकार को कल्याणकारी योजनाओं में वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम एवं तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करने को कहा गया था।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के लिए अन्नाद्रमुक नेता सी. वी. षणमुगम पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
न्यायालय ने कहा कि तमिलनाडु की कल्याणकारी योजनाओं के लिए मुख्यमंत्री के नाम के इस्तेमाल के खिलाफ याचिका अनुचित और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
पीठ ने षणमुगम को एक सप्ताह के भीतर राज्य सरकार के पक्ष में राशि का भुगतान करने को कहा तथा स्पष्ट किया कि ऐसा न करने पर अवमानना का मुकदमा चलाया जाएगा।
पीठ ने आदेश दिया, ‘‘रिट याचिका पूरी तरह से अनुचित, क़ानूनी तौर पर ग़लत और क़ानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग भी थी। इसलिए हम विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को मंज़ूरी देते हैं और मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हैं। हम उच्च न्यायालय में लंबित रिट याचिका को भी खारिज करने के पक्ष में हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमने बार-बार कहा है कि राजनीतिक लड़ाइयों का निपटारा मतदाताओं के समक्ष होना चाहिए और इसके लिए अदालतों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।’’
शीर्ष अदालत ने अन्नाद्रमुक नेता की याचिका को उच्च न्यायालय से अपने पास स्थानांतरित कर लिया और उसे खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘जैसा कि देखा गया है कि विभिन्न राज्यों में विभिन्न नेताओं के नाम पर योजनाएं चलाई जा रही हैं... हम किसी भी राजनीतिक दल को शर्मिंदगी से बचाने के लिए अन्य योजनाओं का उल्लेख नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि ऐसी योजनाएं सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के नाम पर चलाई जा रही हैं।’’
आदेश में की गई टिप्पणियां इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि द्रमुक और राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और अभिषेक सिंघवी ने पूर्ववर्ती अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा ‘‘अम्मा’’ के नाम पर चलाई गई योजनाओं का उल्लेख किया।
आदेश में कहा गया है, ‘‘हम याचिकाकर्ता (षणमुगम) की चिंता को समझ नहीं पा रहे हैं। उन्होंने केवल एक राजनीतिक दल और उसके नेताओं को चुना। अगर याचिकाकर्ता को राजनीतिक दलों द्वारा सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की इतनी चिंता थी, तो वह ऐसी सभी योजनाओं को चुनौती दे सकते थे।’’
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा द्रमुक और उसकी सरकार की योजनाओं को निशाना बनाने के पीछे की मंशा पर सवाल उठाए और उच्च न्यायालय में जल्दबाजी में याचिका दायर करने पर भी सवाल उठाए।
इसने अन्नाद्रमुक नेता द्वारा 18 जुलाई को भारत के निर्वाचन आयोग में द्रमुक की मान्यता निलंबित करने या वापस लेने के लिए दायर किए गए अभ्यावेदन का भी हवाला दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘सबसे पहले, निर्विवाद रूप से तमिलनाडु राज्य में कोई आदर्श आचार संहिता लागू नहीं है। इसलिए पहला सवाल यह उठता है कि निर्वाचन आयोग के समक्ष ऐसा अभ्यावेदन मान्य है या नहीं।’’
इसके बाद न्यायालय ने कहा कि निर्वाचन आयोग को अभ्यावेदन पर निर्णय लेने का अवसर दिए बिना ही याचिकाकर्ता ने अभ्यावेदन के तीन दिन के भीतर ही 21 जुलाई को उच्च न्यायालय में अपील दायर कर दी।
सुनवाई के दौरान रोहतगी ने उन निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें कल्याणकारी योजनाओं के लिए वर्तमान प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों और राज्यपालों की तस्वीरों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई थी।
मद्रास उच्च न्यायालय ने 31 जुलाई को तमिलनाडु सरकार को किसी भी नयी या पुनः पेश की गयी जन कल्याणकारी योजना का नाम जीवित व्यक्तियों के नाम पर रखने से रोक दिया।
अदालत ने ऐसी योजनाओं के प्रचार के विज्ञापनों में पूर्व मुख्यमंत्रियों, नेताओं या द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के किसी भी प्रतीक, चिह्न या झंडे के चित्रों के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी थी।
मुख्य न्यायाधीश मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की खंडपीठ ने षणमुगम द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया था।
सांसद षणमुगम ने सरकार के जनसंपर्क कार्यक्रम ‘उंगलुदन स्टालिन’ (आपके साथ, स्टालिन) के नामकरण और प्रचार को चुनौती देते हुए आरोप लगाया था कि यह स्थापित मानदंडों का उल्लंघन करता है।
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया था कि आदेश राज्य को किसी भी कल्याणकारी योजना को शुरू करने, लागू करने या संचालित करने से नहीं रोकता है, लेकिन उसने कहा कि पाबंदियां केवल ऐसी योजनाओं से जुड़े नामकरण और प्रचार सामग्री पर लागू होती हैं।
भाषा
गोला