संसद में गतिरोध बरकरार, सरकार का एसआईआर पर चर्चा से इनकार
हक हक वैभव
- 06 Aug 2025, 05:35 PM
- Updated: 05:35 PM
नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर पिछले कई दिनों की तरह बुधवार को भी संसद के दोनों सदनों में गतिरोध बरकरार रहा, वहीं सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए दो टूक कहा कि अदालत में विचाराधीन मामलों पर सदन में चर्चा नहीं कराई जा सकती।
विपक्ष ने गतिरोध खत्म करने के लिए बीच का रास्ता सुझाते हुए सरकार को संदेश दिया है कि एसआईआर के बजाय चुनाव सुधारों पर चर्चा कराई जा सकती है, हालांकि सरकारी सूत्रों का कहना है कि चुनाव सुधारों पर भी चर्चा की संभावना नहीं है।
कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने उपसभापति हरिवंश को पत्र लिखकर आग्रह किया कि विशेष गहन पुनरीक्षण पर चर्चा की अनुमति दी जाए क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बुनियादी महत्व से जुड़ा विषय है।
उपसभापति को लिखे अपने पत्र में खरगे ने कहा कि 21 जुलाई, 2023 को राज्यसभा के तत्कालीन सभापति धनखड़ ने व्यवस्था दी थी, ‘‘...यह सदन एक दायरे में रहकर दुनिया की हर चीज़ पर चर्चा कर सकता है...।’’
विपक्षी दलों ने एसआईआर के मुद्दे को बुधवार को दोनों सदनों में पुरजोर ढंग से उठाया और संसद के बाहर पत्रकारों से बातचीत में निर्वाचन आयोग की इस कवायद को वोटों की ‘‘डकैती’’ करार दिया और कहा कि इस विषय पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा कराना देशहित के लिए जरूरी है।
खरगे ने विपक्ष के कई नेताओं के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यदि सरकार एसआईआर पर चर्चा कराने के लिए तैयार नहीं होती तो समझा जाएगा कि वह लोकतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं करती है।
उनका कहना था कि एसआईआर पर चर्चा की मांग को लेकर समूचा विपक्ष एकजुट है।
खरगे ने कहा, ‘‘सभी विपक्षी पार्टियां एसआईआर पर चर्चा चाहती हैं। सभी पार्टियों ने लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उप सभापति और सरकार से बार-बार कहा है कि ‘वोट चोरी’ पर चर्चा की जाए। मौजूदा सरकार को जहां समझ आता है, वहां वे वोट बढ़ा लेती है और अब वो बिहार में वोट काट रही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें एसआईआर पर चर्चा करने का मौका मिलना चाहिए, ताकि जहां गड़बड़ी हुई है, असंवैधानिक तरीके से काम किया जा रहा है, उस बारे में बात हो और लोगों के अधिकार सुरक्षित हो सकें।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, मनरेगा कामगारों के नाम मतदाता सूची से कट रहे हैं। जो गरीबों का हक छीनना चाहते हैं, वो चोर ही हो सकते हैं।’’
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने लोकसभा में कहा कि एसआईआर का मुद्दा उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और लोकसभा के कार्य संचालन और प्रक्रियाओं के नियमों एवं परिपाटी के तहत इस मुद्दे पर सदन में चर्चा नहीं हो सकती।
रीजीजू ने एसआईआर के मुद्दे पर कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के सदस्यों के शोर-शराबे के बीच कहा कि सरकार किसी भी मुद्दे पर सदन में चर्चा करने के लिए तैयार है और समय-समय पर यह आश्वासन भी देती रही है, लेकिन संसद में किसी भी विषय पर चर्चा संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिए और सदन के कार्य संचालन और प्रक्रिया के नियमों के तहत होनी चाहिए।
मंत्री ने कहा कि विपक्ष जो विषय उठाने का प्रयास कर रहा है वह स्पष्ट रूप से अदालत में विचाराधीन है, इसलिए इस पर सदन में चर्चा नहीं हो सकती।
रीजीजू ने कहा कि 14 दिसंबर 1988 को जब एक सदस्य ने निर्वाचन आयोग पर सवाल उठाने की कोशिश की थी तो तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने व्यवस्था दी थी कि निर्वाचन आयोग के कामकाज और फैसलों पर सदन में टिप्पणी नहीं की जा सकती।
जवाब में लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि सदन में निर्वाचन आयोग और चुनाव सुधारों से जुड़े विषयों पर चर्चा के कई उदाहरण हैं।
उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘1961 में राज्यसभा में चुनाव संचालन नियमों में संशोधन पर चर्चा हुई थी, इस चर्चा का नेतृत्व तत्कालीन कानून मंत्री गोपाल स्वरूप पाठक ने किया था।’’
उन्होंने कहा कि 1991 में उच्च सदन में मौजूदा चुनाव कानूनों में संशोधन की तत्काल आवश्यकता पर बहस हुई थी, 2015 में राज्यसभा के तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने अनिवासी भारतीयों के लिए ‘प्रॉक्सी’ और ‘ई-पोस्टल’ मतदान पर एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश किया था।
गोगोई के अनुसार, हाल में 2019 में चुनाव सुधारों पर एक अल्पकालिक चर्चा में तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी भाग लिया था।
भाषा हक हक