लंबे समय तक गोद में लैपटॉप और जेब में फोन रखने से टूट सकता है पिता बनने का सपना: अध्ययन
धीरज देवेंद्र
- 06 Aug 2025, 08:04 PM
- Updated: 08:04 PM
कोलकाता, छह अगस्त (भाषा) कलकत्ता विश्वविद्यालय (सीयू) के प्राणि विज्ञान विभाग की आनुवंशिकी अनुसंधान इकाई और कोलकाता स्थित प्रजनन चिकित्सा संस्थान (आईआरएम) द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन में दावा किया गया है कि पैंट की जेब में लंबे समय तक मोबाइल फोन रखने और लैपटॉप को गोद में रखकर काम करने से पुरुष की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर होता है और यहां तक उनके नपुंसक होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
इस अध्ययन की शुरुआत 2019 में प्रोफेसर सुजय घोष (कलकत्ता विश्वविद्यालय) के नेतृत्व में हुई थी और पांच साल तक हुए अध्ययन में डॉ रत्ना चट्टोपाध्याय (आईआरएम), डॉ समुद्र पाल (कलकत्ता विश्वविद्यालय), डॉ परनब पलाधी (आईआरएम) और डॉ सौरव दत्ता (कलकत्ता विश्वविद्यालय) ने सहयोग किया।
अध्ययन के नतीजों की प्रति बुधवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को उपलब्ध कराई गई।
अनुसंधान पत्र के मुताबिक, ‘‘पुरुष बांझपन के इलाज के लिए आईआरएम आने वाले लोगों को अध्ययन में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस दौरान महिला बांझपन की वजह से संतान पैदा होने में आने वाली समस्या वाले जोड़ों और पुरुष बांझपन (शारीरिक दोषों के कारण) के मामलों को इसमें शामिल नहीं किया। अध्ययन में विशेष रूप से अज्ञात कारणों से होने वाले पुरुष बांझपन के मामलों पर ध्यान केंद्रित किया गया, विशेष रूप से एज़ोस्पर्मिया (वीर्य में शुक्राणुओं की अनुपस्थिति) या ओलिगोज़ोस्पर्मिया (शुक्राणुओं की कम संख्या) वाले मामलों पर।’’
अध्ययन का नेतृत्व करने वाले डॉ.घोष ने बताया कि अध्ययन में उन मरीजों को भी शामिल नहीं किया गया जिनमें आनुवंशिक निदान परीक्षणों से ज्ञात संक्रामक रोगों की जानकारी मिली। उन्होंने बताया कि उपरोक्त मरीजों से इतर कुल करीब 1,200 मरीजों को अध्ययन में शामिल किया गया।
प्रोफेसर घोष ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि अध्ययन में शामिल पुरुषों से एक व्यापक प्रश्नावली के माध्यम से साक्षात्कार किया गया, जिसमें जीवनशैली, आदतों, व्यसनों, आहार संबंधी प्राथमिकताओं, यौन गतिविधि, व्यवसाय और मनोवैज्ञानिक कारकों के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया - जिन्हें सामूहिक रूप से महामारी विज्ञान डेटा कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि पुनरावृत्ति और झूठी जानकारी की आशंका को समाप्त करने के लिए प्रतिक्रियाओं को उपयुक्त सांख्यिकीय परीक्षणों के माध्यम से छांटा गया।
इसके बाद प्रतिभागियों के वीर्य और रक्त के नमूने लिए गए। दोनों स्रोतों से डीएनए निकाला गया और उत्परिवर्तनों की पहचान के लिए अगली पीढ़ी के अनुक्रमण (ए हाई-थ्रूपुट जेनेटिक एनलिसिस टेक्नीक) से किया गया।
उन्होंने कहा कि कई जीन उत्परिवर्तनों की पहचान की गई, जिनका विश्लेषण उपयुक्त सांख्यिकीय मॉडलों का उपयोग करके महामारी विज्ञान और जीवनशैली संबंधी आंकड़ों के साथ किया गया।
प्रो. घोष ने बताया कि निष्कर्षों से जानकारी मिली कि जिन पुरुषों में विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन होते हैं, उनमें मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के संपर्क में आने से बांझपन का जोखिम काफी अधिक होता है।
अध्ययन में रेखांकित किया गया,‘‘यह पाया गया कि लैपटॉप को गोद में रखने या मोबाइल फोन को पैंट की जेब में रखने से उच्च-तीव्रता वाला विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। ऐसे क्षेत्रों में अंडकोषों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से - और उससे जुड़ी गर्मी से - अंडकोषों के भीतर नाजुक ऊतकों को काफी नुकसान पहुंचता है, जिससे शुक्राणु-उत्पादक कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। यह क्षति विशिष्ट जीन उत्परिवर्तन वाले व्यक्तियों में अधिक गंभीर प्रतीत होती है और विशेष रूप से युवा पुरुषों के लिए चिंताजनक है, जो ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सबसे अधिक उपयोग करते हैं।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘जो लोग इन उपकरणों के साथ लंबे समय तक सीधे शारीरिक संपर्क बनाए रखते हैं, वे सबसे अधिक असुरक्षित माने जाते हैं।’’
घोष ने कहा, ‘‘जीव प्रणालियों में सामान्यतः स्वयं को ठीक करने के तंत्र होते हैं। हालांकि, हमारे जीनोम में प्राकृतिक उत्परिवर्तन - जिनके बारे में अक्सर हमें पता नहीं होता - इन ठीक करने की प्रणालियों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों से होने वाले नुकसान से उबरने में बाधा आ सकती है। इसलिए, सावधानी बरतना आवश्यक है। हमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए और एक स्वस्थ जीवन शैली अपनानी चाहिए।’’
प्रो. घोष के मुताबिक जिन पुरुषों के नमूनों का विश्लेषण किया गया, वे 20-40 वर्ष की आयु के थे। अध्ययन टीम ने उनकी जीवनशैली, आहार, कार्यस्थल के जोखिम और किसी भी नशे की लत का अध्ययन किया।
भाषा
धीरज