गुरू दत्त के सहायक और निर्देशक बनना चाहते थे जावेद अख्तर
मनीषा शोभना
- 07 Aug 2025, 11:26 AM
- Updated: 11:26 AM
मुंबई, सात अगस्त (भाषा) जाने-माने शायर, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने खुलासा किया है कि दिवंगत अभिनेता-निर्देशक गुरु दत्त का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव रहा है, यहां तक कि उन्होंने निर्देशक बनने और उनके सहायक के रूप में काम करने का सपना भी संजोया था।
गुरु दत्त की जन्मशती के उपलक्ष्य में बुधवार रात यहां आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए 80 वर्षीय अख्तर ने कहा कि उनका यह सपना अधूरा ही रह गया।
अख्तर ने कहा, ‘‘ मैंने तय किया था कि ग्रेजुएशन के बाद फिल्म इंडस्ट्री जाऊंगा और कुछ वर्षों तक गुरु दत्त साहब के साथ काम करूंगा और फिर निर्देशक बनूंगा। जब आप 18 साल के होते हैं तो सब कुछ आसान और सरल लगता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मैं चार अक्टूबर 1964 को बॉम्बे (अब मुंबई) आया और दस अक्टूबर को गुरु दत्त का निधन हो गया। मैं उनसे कभी मिल ही नहीं सका।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सच में विश्वास था कि जब मैं मुंबई आऊंगा तो किसी भी तरह उनसे जुड़ूंगा, क्योंकि (शायर-गीतकार) साहिर लुधियानवी साहब गुरु दत्त के अच्छे मित्र थे और उन्होंने ‘प्यासा’ के लिए गीत लिखे थे। मुझे लगा था कि यह संबंध काम आएगा। मैंने सोचा था कि कुछ समय के लिए उनका सहायक बनूंगा, लेकिन ऐसा हो न सका।’’
‘शोले’, ‘दीवार’, ‘जंजीर’ और ‘डॉन’ जैसी फिल्मों की पटकथा सलीम खान के साथ मिलकर लिखने वाले अख्तर ने बताया कि किस प्रकार गुरु दत्त की फिल्मों में दृश्यात्मक अभिव्यक्ति ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘कॉलेज के दिनों में गुरु दत्त से मैं इतना प्रभावित था कि 17-18 साल की उम्र में मैंने कुछ बड़े सितारों की फिल्में देखना छोड़ दिया था क्योंकि मुझे लगता था कि वे अच्छे अभिनेता नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि मेरी कुछ पसंद थी। किशोरावस्था में गुरु दत्त का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा।’’
अख्तर ने कहा, ‘‘हमारे पास महबूब खान, बिमल रॉय जैसे महान निर्देशक थे, लेकिन गुरु दत्त पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने दृश्यों के माध्यम से संवाद किया। दूसरे निर्देशक अच्छे अभिनय, लोकेशन और माहौल के साथ फिल्में बना लेते थे, अच्छी पटकथा होती थी, लेकिन दृश्यात्मक भाषा में बात करना- यह हमें गुरु दत्त ने सिखाया।’’
इस सत्र में फिल्मकार सुधीर मिश्रा, हंसल मेहता, आर. बाल्की और फिल्म समीक्षक-लेखिका भावना सोमय्या सहित कई हस्तियों ने शिरकत की और जावेद अख्तर की भावनाओं से सहमति जताते हुए गुरु दत्त को श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम का समापन गुरु दत्त की बहुचर्चित फिल्म ‘प्यासा’ की विशेष स्क्रीनिंग के साथ हुआ, जिसमें दत्त के परिवार के सदस्य- उनकी नातिनें गौरी और करुणा दत्त, दिवंगत अभिनेता जॉनी वॉकर के पुत्र नासिर, फिल्मकार अनुभव सिन्हा, अभिनेता अक्षय ओबेरॉय और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
फिल्मकार सुधीर मिश्रा ने बताया कि उन्होंने ‘साहब बीबी और ग़ुलाम’ को किशोरावस्था में अपनी दादी के साथ कम से कम छह बार देखा था।
उन्होंने कहा, ‘‘गुरु दत्त एक अनुभव हैं। आप उन्हें बार-बार देख सकते हैं। केवल 22 वर्ष की उम्र में उनके काम का अर्थ कुछ और होता है और आज कुछ और। मैं बार बार उनकी फिल्में देखता हूं। मेरे जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो उनसे प्रभावित न हो। मैंने भले ही उनकी ऊंचाइयों को नहीं छुआ हो, लेकिन प्रयास करता रहा हूं। हर फिल्म जो मैंने बनाई, हर शॉट जो लिया, हर दृश्य जो लिखा, हर गीत जिसे चित्रित किया- यह सब गुरु दत्त के प्रभाव के बिना मैं सोच भी नहीं सकता। उन्होंने हमें सिखाया कि फिल्म कैसे बनाते हैं, दृश्य को कैसे देखते हैं, स्क्रिप्ट को कैसे फिल्म के रूप में दोबारा गढ़ते हैं।’’
हंसल मेहता ने बताया कि पुणे स्थित भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) में पढ़ाई के दौरान उन्होंने एक संगीत वीडियो बनाया था, जो गुरु दत्त की फिल्म 'कागज़ के फूल' के एक गीत दृश्य की ‘नकल’ था।
उन्होंने कहा, ‘‘वह एक सतही नकल थी। लेकिन मैं आशा करता हूं कि एक दिन ऐसी फिल्म बनाकर गुरु दत्त को श्रद्धांजलि दे सकूं, जो प्रेम और दिल टूटने की बात उनकी तरह करे।’’
मेहता ने कहा, ‘‘मैं उनके बारे में अपने सबसे करीबी मित्र के जरिए जानता था, जो उनका भतीजा था। मैंने उनके बारे में कहानियां सुनीं। उनकी फिल्में बाद में देखीं -‘प्यासा’ ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी। मैंने जितनी फिल्में बनाई हैं, उससे कहीं ज्यादा प्रेम किया है और दिल भी टूटा है।’’
उन्होंने कहा ‘‘गुरु दत्त ने सिखाया कि खुद पर तरस खाना भी सुंदर हो सकता है। उन्होंने आत्म-सहानुभूति को एक गुण के रूप में प्रस्तुत किया, और यह भी कि दिल टूटना भी सिनेमा का विषय हो सकता है।’’
निर्देशक आर. बाल्की ने कहा कि उनकी 2022 की फिल्म ‘चुप: रिवेंज ऑफ द आर्टिस्ट’ की प्रेरणा गुरु दत्त ही थे। यह फिल्म एक कलाकार की पीड़ा को दर्शाती है, जो गलत आलोचना का शिकार होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां संवेदनशीलता से ज्यादा सहनशीलता को सराहा जाता है। लेकिन गुरु दत्त जैसे कलाकार ने सिखाया कि संवेदनशीलता भी एक ताकत हो सकती है। वह मेरे लिए संवेदनशीलता की प्रतिमूर्ति हैं। उनके काम को देखना मुझे यह याद दिलाता है कि भावुक होना और अक्सर न समझा जाना भी ठीक है। आज के दौर में कलाकारों पर ज्यादा दबाव है। जब मैं उनकी फिल्में देखता हूं, तो मुझे तकनीक से ज्यादा उनके भावुक पक्ष की झलक मिलती है।’’
जन्मशती समारोह के अंतर्गत गुरु दत्त की फिल्मों - ‘प्यासा’ (1957), ‘आर पार’ (1954), ‘चौदहवीं का चांद’ (1960), ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ (1955), ‘साहब बीबी और ग़ुलाम’ (1962), और ‘बाज़’ (1953) का विशेष प्रदर्शन आठ से 14 अगस्त के बीच देशभर में किया जाएगा।
भाषा मनीषा