अमेरिकी शुल्क के झटके के बीच भारतीय समुद्री खाद्य निर्यातकों की नज़र ब्रिटेन, अन्य बाज़ारों पर
राजेश राजेश अजय
- 07 Aug 2025, 07:13 PM
- Updated: 07:13 PM
नयी दिल्ली, सात अगस्त (भाषा) अमेरिका द्वारा भारतीय पशुधन और समुद्री खाद्य क्षेत्र के निर्यात पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने के बाद, इस क्षेत्र के निर्यातक ब्रिटेन सहित वैकल्पिक बाज़ारों की तलाश कर रहे हैं। अमेरिका द्वारा लगाये गये इस शुल्क से मूल्य प्रतिस्पर्धा पर गंभीर असर पड़ रहा है। एक उद्योग निकाय ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दीं
कंपाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (सीएलएफएमए) ऑफ इंडिया ने कहा कि हालिया शुल्क इस क्षेत्र के लिए एक ‘बड़ा झटका’ है, जिससे तटीय और ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोगों की आजीविका को खतरा हो सकता है।
सीएलएफएमए के अध्यक्ष दिव्य कुमार गुलाटी ने बयान में कहा, ‘‘ये शुल्क मूल्य प्रतिस्पर्धा पर गंभीर प्रभाव डालते हैं और लाखों लोगों की आजीविका को खतरे में डालते हैं, खासकर तटीय और ग्रामीण क्षेत्रों में जहां जलीय कृषि और पशु प्रोटीन उत्पादन स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं।’’
गुलाटी ने कहा कि भारतीय निर्यातक नौकरियों की सुरक्षा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए ब्रिटेन जैसे वैकल्पिक बाज़ारों की तलाश करके सक्रिय रूप से प्रतिक्रिया दे रहे हैं, जहां भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) अब मत्स्य उत्पादों के लिए शुल्क-मुक्त पहुंच प्रदान करता है।
गुलाटी ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि ब्रिटेन को समुद्री खाद्य निर्यात तीन गुना बढ़ जाएगा, जो अमेरिका जाने वाले निर्यात खेप में आई कमी की आंशिक भरपाई करेगा।’’
उद्योग निकाय ने सरकार से पूर्वी एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों तक पहुंच को सुगम बनाकर व्यापक बाज़ार विविधीकरण को बढ़ावा देने और अनुचित व्यापार बाधाओं को दूर करने के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और जी-20 जैसे मंचों के माध्यम से व्यापार कूटनीति को तेज़ करने का आग्रह किया।
निर्यातकों, विशेष रूप से एमएसएमई पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिए, गुलाटी ने ऋण लागत को कम करने को ब्याज समानीकरण योजना (आईईएस) को बहाल करने और उसका विस्तार करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, ‘‘आरओडीटीईपी जैसी निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को प्रभावित क्षेत्रों को विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप उच्च छूट प्रदान करने के लिए पुनर्संयोजित किया जाना चाहिए। ये हस्तक्षेप व्यवहार्यता बहाल करने और वैश्विक बाज़ारों में भारत की उपस्थिति बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।’’
गुलाटी ने कहा कि उत्पादन स्तर पर, प्रजातियों के विविधीकरण की ओर रुझान बढ़ रहा है - उदाहरण के लिए, एल. वन्नामेई से ब्लैक टाइगर झींगा तक - जिससे भारत विशिष्ट, कम प्रतिस्पर्धी बाज़ारों की ज़रूरतें पूरी कर सकेगा।
उन्होंने आगे कहा कि प्रसंस्करण के मोर्चे पर, पके और ब्रेडेड झींगे जैसे मूल्यवर्धित उत्पादों की ओर ज़ोरदार रुझान है, जहां भारत अपनी लागत और क्षमता संबंधी लाभ का बेहतर फायदा उठा सकता है।
उन्होंने कहा कि दीर्घकालिक टिकाऊपन बनाने के लिए, उद्योग को घरेलू प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे को मज़बूत करना होगा और एएससी और बीएपी जैसी प्रमाणन प्रणालियों के साथ-साथ मैंग्रोव संरक्षण और सख्त जीवाणुरोधी नियंत्रण जैसे उपायों के ज़रिये टिकाऊ जलीय कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना होगा।
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