न्यायालय ने ‘मां’ शब्द की परिभाषा को उदार बनाने का आग्रह किया
देवेंद्र सुरेश
- 07 Aug 2025, 10:02 PM
- Updated: 10:02 PM
नयी दिल्ली, सात अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को ‘‘मां’’ शब्द की उदार व्याख्या की वकालत की, ताकि पारिवारिक पेंशन समेत सामाजिक कल्याण योजनाओं के तहत लाभ प्रदान करने में सौतेली माताओं को भी शामिल किया जा सके।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने केंद्र और भारतीय वायुसेना (आईएएफ) से कहा कि नियमों में मां की परिभाषा को उदार बनाया जाना चाहिए ताकि सौतेली मां को भी इसमें शामिल किया जा सके।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें ‘मां’ शब्द को उदार बनाने की जरूरत है। इसमें सौतेली मां शब्द भी शामिल होना चाहिए, खासकर जब पारिवारिक पेंशन समेत सामाजिक कल्याण योजनाओं के तहत लाभ देने की बात हो। सौतेली मां वास्तव में मां ही होती है।’’
उच्चतम न्यायालय एक महिला की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने अपने सौतेले बेटे की जैविक मां की मृत्यु के बाद उसका पालन-पोषण किया था और वह पारिवारिक पेंशन की मांग कर रही थी।
न्यायमूर्ति कांत ने केंद्र के वकील से पूछा कि यदि एक महीने के बच्चे की मां का निधन हो जाता है और पिता दूसरी शादी कर लेता है तो क्या सौतेली मां को वास्तविक मां नहीं माना जाएगा।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘कानून में आप उसे सौतेली मां कह सकते हैं, लेकिन वह वास्तव में वास्तविक मां है, क्योंकि पहले दिन से ही उसने अपना जीवन बच्चे के लिए समर्पित कर दिया।’’
हालांकि, वकील ने भारतीय वायुसेना के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि मां की परिभाषा में सौतेली मां शामिल नहीं है।
न्यायमूर्ति कांत ने केंद्र के वकील से कहा कि वे सौतेली मां के पेंशन या किसी अन्य लाभकारी दावे को भी इसमें शामिल करने के लिए लचीला रुख अपनाने पर विचार करें।
अदालत ने कहा, ‘‘इस उद्देश्य के लिए, इस परिभाषा को उदार बनाया जाना चाहिए।’’
महिला ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के 10 दिसंबर, 2021 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें वायुसेना में तैनात उसके बेटे की मृत्यु के बाद उसे पारिवारिक पेंशन देने से इनकार कर दिया गया था।
पिछले साल 19 जुलाई को शीर्ष अदालत ने याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी और केंद्र तथा वायुसेना को नोटिस जारी किया था।
भाषा
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