ओबीसी के लिए ‘क्रीमी लेयर’ की आय सीमा में संशोधन समय की मांग : संसदीय समिति
सुभाष माधव
- 08 Aug 2025, 04:38 PM
- Updated: 04:38 PM
नयी दिल्ली, आठ अगस्त (भाषा) अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कल्याण से जुड़े विषयों पर विचार कर रही संसद की एक समिति ने कहा है कि ‘क्रीमी लेयर’ की आय सीमा को संशोधित करना ‘‘समय की मांग’’ है, क्योंकि मौजूदा सीमा पात्र ओबीसी परिवारों के एक बड़े वर्ग को आरक्षण के लाभ और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से वंचित कर रही है।
शुक्रवार को संसद में पेश की गई अपनी आठवीं रिपोर्ट में, समिति ने उल्लेख किया कि आय सीमा को 6.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये प्रति वर्ष करने संबंधी संशोधन 2017 में किया गया था।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के नियमों के अनुसार, इस सीमा की समीक्षा हर तीन साल पर या जरूरत पड़ने पर उससे पहले भी की जानी चाहिए।
भाजपा सांसद गणेश सिंह की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति ने कहा, ‘‘वर्तमान सीमा कम है, जिसके दायरे में ओबीसी का केवल एक छोटा सा हिस्सा आता है।’’ उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति और निम्न आय वर्ग की बढ़ती आय के कारण इसमें वृद्धि करना ‘‘समय की मांग’’ है।
समिति ने कहा, ‘‘समिति इस तथ्य से अवगत है कि ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर निर्धारित करने के वास्ते आय सीमा की समीक्षा हर तीन साल पर या निर्धारित अवधि से पहले भी की जानी चाहिए। हालांकि, 2017 से इसमें संशोधन नहीं किया गया है।’’
समिति की रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘समिति स्पष्ट शब्दों में वर्तमान क्रीमी लेयर सीमा की समीक्षा करने और इसमें संशोधन करने की अपनी सिफारिश दोहराती है, ताकि ओबीसी के अधिक से अधिक लोगों को इसमें शामिल किया जा सके। इससे अंततः उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को संतोषजनक स्तर तक लाने में मदद मिलेगी।’’
हालांकि, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने समिति को बताया कि क्रीमी लेयर की सीमा में संशोधन का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
समिति द्वारा उठाया गया एक और अनसुलझा मुद्दा क्रीमी लेयर की स्थिति निर्धारित करने के लिए स्वायत्त निकायों और सरकारी पदों के बीच समतुल्यता का अभाव है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की समतुल्यता के अभाव के कारण योग्य ओबीसी उम्मीदवारों, जिनमें यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले अभ्यर्थी भी शामिल हैं, को सेवा आवंटन से वंचित कर दिया गया है क्योंकि उनके माता-पिता के वेतन को पद समतुल्यता पर विचार किये बिना ही जोड़ा गया था।
समिति ने मंत्रालय से इस मामले को सुलझाने के लिए 2023 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा गठित अंतर-विभागीय समिति के साथ काम में तेजी लाने का आग्रह किया।
समिति की छठी रिपोर्ट की 12 सिफारिशों में से 10 को सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया गया था। वहीं, क्रीमी लेयर संशोधन और पद समतुल्यता की दो सिफारिशों को दोहराया गया है।
समिति ने छात्रवृत्ति लाभार्थियों की संख्या में भारी गिरावट पर भी चिंता व्यक्त की है। प्री-मैट्रिक (मैट्रिक पूर्व) योजना के तहत, लाभार्थियों की संख्या 2021-22 में 58.6 लाख से घटकर 2023-24 में 20.29 लाख हो गई, जबकि व्यय 218.29 करोड़ रुपये से घटकर 193.83 करोड़ रुपये रह गया।
मैट्रिक-बाद लाभार्थियों की संख्या 38.04 लाख से घटकर 27.51 लाख हो गई, जबकि इसी अवधि में व्यय 1,320 करोड़ रुपये से घटकर 988 करोड़ रुपये रह गया।
समिति की आठवीं रिपोर्ट में, राज्यों के अधूरे या विलंबित प्रस्ताव, धीमी गति से धनराशि का उपयोग, और ‘आधार’-आधारित प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) तथा ऑनलाइन पोर्टल में परिवर्तन संबंधी समस्याओं को प्रमुख कारण बताया गया है।
बजट आवंटन के संबंध में, समिति ने कहा कि मंडल आयोग के अनुसार, ओबीसी भारत की जनसंख्या का 52 प्रतिशत है, फिर भी उन्हें केंद्रीय अनुदान अनुसूचित जातियों, जिनकी जनसंख्या लगभग 16.6 प्रतिशत है, की तुलना में बहुत कम मिल रहा है।
हालांकि, ‘पीएम-यशस्वी’ जैसी ओबीसी योजनाओं के लिए आवंटन 2022-23 में 1,581 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 2,190 करोड़ रुपये हो गया है, लेकिन समिति समुदाय के आकार और जरूरतों को प्रतिबिंबित करने के लिए आनुपातिक वृद्धि चाहती है।
रिपोर्ट में धनराशि का समय पर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कड़ी निगरानी, स्थानीय भाषाओं में अधिक जागरूकता अभियान और राज्यों के साथ बेहतर समन्वय की सिफारिश की गई है।
भाषा सुभाष